चुनावी बॉन्ड पर मोदी सरकार को सुप्रीम झटका

  • विपक्ष के निशाने पर आई बीजेपी सरकार
  • शीर्ष अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया
  • सीजेआई बोले- गोपनीयता व मतदाता के अधिकार का उल्लंघन
  • एसबीआई 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी दे

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को चुनावी बॉन्ड मामले में कें द्र की मोदी सरकार को कररा झटका दिया है। शीर्ष अदालत ने सरकार की इस योजना को रद्द कर दिया और कहा कि यह संविधान प्रदत्त सूचना के अधिकार और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। इस फैसले के बाद राजनीति प्रतिक्रिया भी आनी शुरू हो गई है। विपक्ष ने इसे एक अच्छा फैसला बताया है। कुछ नेताओं ने इसे बीेजपी का स्कैम बताया है। ज्ञात हो कि प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले सुनाए। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है।
चुनावी बॉन्ड योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि चुनावी बांड योजना, आयकर अधिनियम की धारा 139 द्वारा संशोधित धारा 29(1)(सी) और वित्त अधिनियम 2017 द्वारा संशोधित धारा 13(बी) का प्रावधान अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि चुनावी बांड जारी करने वाला बैंक, यानी भारतीय स्टेट बैंक, चुनावी बांड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण और प्राप्त सभी जानकारी जारी करेगा। उन्हें 6 मार्च तक भारत के चुनाव आयोग को सौंप देगा। ईसीआई इसे 13 मार्च तक आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा। साथ ही राजनीतिक दल इसके बाद खरीददारों के खाते में चुनावी बांड की राशि वापस कर देंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के कई मायने हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकार पर भी असर पड़ेगा।

चुनाव आयोग 13 मार्च तक डाले सब जानकारी

चुनाव आयोग को 13 मार्च तक इस जानकारी को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करना होगा। राजनीतिक दल इसके बाद खरीददारों के खाते में चुनावी बांड की राशि वापस कर देंगे। इस योजना से सत्ताधारी पार्टी को फायदा उठाने में मदद मिलेगी। चुनावी बांड योजना को यह कहकर उचित नहीं ठहराया जा सकता कि इससे राजनीति में काले धन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। दानदाताओं की गोपनीयता महत्वपूर्ण है, लेकिन पूर्ण छूट देकर राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता हासिल नहीं की जा सकती।

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?

चुनावी बांड ब्याज मुक्त धारक बांड या मनी इंस्ट्रूमेंट था जिन्हें भारत में कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता था। ये बांड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में बेचे जाते थे। किसी राजनीतिक दल को दान देने के लिए उन्हें केवाईसी-अनुपालक खाते के माध्यम से खरीदा जा सकता था। राजनीतिक दलों को इन्हें एक निर्धारित समय के भीतर भुनाना होता था। दानकर्ता का नाम और अन्य जानकारी दस्तावेज पर दर्ज नहीं की जाती है और इस प्रकार चुनावी बांड को गुमनाम कहा जाता है। किसी व्यक्ति या कंपनी की तरफ से खरीदे जाने वाले चुनावी बांड की संख्या पर कोई सीमा नहीं थी। सरकार ने 2016 और 2017 के वित्त अधिनियम के माध्यम से चुनावी बांड योजना शुरू करने के लिए चार अधिनियमों में संशोधन किया था। ये संशोधन अधिनियम लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम , 1951, (आरपीए), कंपनी अधिनियम, 2013, आयकर अधिनियम, 1961, और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम, 2010 (एफसीआरए), 2016 और 2017 के वित्त अधिनियमों के माध्यम से थे। 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को वित्त विधेयक के रूप में सदन में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की अधिसूचना जारी की गई थी।

राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक : चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कॉर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य से है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है।

कितना पैसा और कौन लोग देते हैं इसका खुलासा होगा : जया ठाकुर

चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने कहा, अदालत ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को कितना पैसा और कौन लोग देते हैं इसका खुलासा होना चाहिए। 2018 में जब यह चुनावी बॉन्ड योजना प्रस्तावित की गई थी तो इस योजना में कहा गया था कि आप बैंक से बॉन्ड खरीद सकते हैं और पैसा पार्टी को दे सकते हैं जो आप देना चाहते हैं लेकिन आपका नाम उजागर नहीं किया जाएगा, जो कि सूचना के अधिकार के खिलाफ है। इन जानकारियों का खुलासा किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने असीमित योगदान को भी खत्म कर दिया : प्रशांत भूषण

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वकील प्रशांत भूषण ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है और इसे लागू करने के लिए किए गए सभी प्रावधानों को रद्द कर दिया है। उन्होंने कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को दिए जा रहे असीमित योगदान को भी खत्म कर दिया है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, चुनावी बॉन्ड से जुड़ी राजनीतिक फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित करती है और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।

राजनीतिक वित्तपोषण के लिए था बॉन्ड : सरकार

केंद्र सरकार ने इस योजना का बचाव करते हुए कहा कि धन का उपयोग उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है। सरकार ने आगे तर्क दिया कि दानदाताओं की पहचान गोपनीय रखना जरूरी है, ताकि उन्हें राजनीतिक दलों से किसी प्रतिशोध का सामना न करना पड़े।

भाकपा व कॉमन काज ने दायर की थी याचिका

इस योजना को जनवरी 2018 में घोषित होने के तुरंत बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी), कॉमन कॉज और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) सहित कई पार्टियों द्वारा चुनौती दी गई थी। कॉमन कॉज और एडीआर का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया था कि नागरिकों को वोट मांगने वाली पार्टियों और उम्मीदवारों के बारे में जानकारी पाने का अधिकार है। हालांकि कंपनियों के वित्तीय विवरण कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं, जो सैद्धांतिक रूप से किसी को दान के स्रोत को जानने की अनुमति दे सकते हैं। भूषण का कहना था कि भारत में लगभग 23 लाख पंजीकृत कंपनियां हैं। भूषण ने तर्क दिया था कि इस पद्धति का उपयोग करके यह पता लगाना कि प्रत्येक कंपनी ने कितना दान दिया है, एक सामान्य नागरिक के लिए संभव नहीं होगा। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने योजना में और अधिक कथित कमियों पर प्रकाश डाला। उनका कहना था कि इस योजना में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके लिए दान को चुनाव प्रक्रिया से जोड़ा जाना आवश्यक हो। उनका कहना था कि एसबीआई के स्वयं के एफएक्यू अनुभाग में कहा गया है कि बांड राशि को किसी भी समय और किसी अन्य उद्देश्य के लिए भुनाया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), कांग्रेस नेता जया ठाकुर भी शामिल है। केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की थी।

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