बड़ी कठिन है 24 की चुनावी डगर
कांग्रेस बनाएगी नई रणनीति
- विपक्ष के अन्य दल भी बढ़ाएंगे अपनी अहमियत
- अन्य दलों के तेवर भी करेंगे प्रभावित
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। बिहार की धरती से गंाधी जी ने पूर्वी चंपारण जिले से अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई का विगुल फूंका था, तो इसी धरती से जय प्रकाश नारायण ने 1975 में समग्र क्रांति का नारा देकर तत्कालीन इन्दरा सरकार की चूले हिला दी थीं। अब एकबार फिर ये धरती नई ईबारत लिख सकती है। अबकी बार यहां से वर्तमान सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा विरोधी लगभग सभी दल एकजुट हो चुके हैं। 23 जून को इस पर चर्चा हुई और आगे शिमला में इसी पर एकबार फिर सारे दल बैठेंगे। इस बीच सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि कांग्रेस सभी सहयोगियों के मुद्दों पर विचार के लिए अपनी पार्टी स्तर पर चर्चा करेगी। बिहार सत्याग्रह की भूमि रही है। इस धरती ने देश के राजनीतिक इतिहास को प्रभावित किया। ममता बनर्जी ने ठीक ही कहा कि बिहार से जो जनआंदोलन शुरू होता है, वह सफल होता है। चंपारण सत्याग्रह एक जन आंदोलन था। हालांकि 24 की राह सत्ता व विपक्ष दोनों के लिए आसान होने वाली नही है।
पटना में विपक्षी एकता की बैठक संपन्न हो चुकी है। पहली नजर में यह एक सफल बैठक नजर आती है लेकिन इसके कुछ विरोधाभास भी हैं। संभव है कि शिमला में जब विपक्षी एकता की अगली बैठक हो, तो यह विरोधाभास कुछ अधिक नजर आए। क्योंकि पाटलिपुत्र और शिमला के तापमान में सब दिन अंतर रहा है और आज भी यह अंतर बना हुआ है। ममता बनर्जी ने विपक्षी एकता के लिए अपने निजी महत्वाकांक्षाओं को त्याग करने का आह्वान किया। लेकिन उन्होंने विपक्षी एकता की महत्वपूर्ण धुरी कांग्रेस की भूमिका पर सवाल भी उठाए। उनके हिसाब से बंगाल में कांग्रेस की भूमिका सही नहीं है। ऐसे में निजी हत्वाकांक्षाओं को त्याग करने का उनका आह्वान कितना सार्थक हो पाएगा यह भी शिमला में होने वाली बैठक में साफ हो जाएगा। वैसे ममता ने यह ठीक ही कहा है कि विपक्षी एकता के लिए निजी महत्वाकांक्षाओं को त्यागना होगा।
सरकार के खिलाफ करना होगा जन आंदोलन
चंपारण सत्याग्रह हो या जेपी क्रांति, यह सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिए किया गया जन आंदोलन नहीं था। इसने सामाजिक परिवर्तन लाने का भी काम किया। विपक्षी एकता की बैठक में शामिल होने पटना आए तमाम दिग्गज नेताओं को चंपारण सत्याग्रह और जेपी क्रांति की याद आई। बिहार हमेशा प्रतिरोध की आवाज का एक केंद्र रहा है। सत्ता भले ही बिहार को भूल जाए लेकिन सत्ता विरोधी कभी बिहार को नहीं भूलते। लेकिन विडंबना यही है कि सत्ता विरोधी भी जब सत्ता में शामिल होते हैं तो बिहार को भूल जाते हैं। विपक्षी एकता की बैठक के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने बड़ा कड़वा बयान दिया। उन्होंने कहा कि यह ठग ऑफ गठबंधन है। यह गठबंधन पूरे देश को मूर्ख बनाने का प्रयास कर रहा है। सभी भ्रष्टाचारी हैं। नीतीश कुमार को अपने भ्रष्टाचार का मॉडल दिखाना चाहिए। इन्हें पता नहीं कि पीएम का चेहरा कौन है। सभी के मन में लड्डू फूट रहे हैं। सभी पीएम बनने का सपना देख रहे हैं। एक-दूसरे को टोपी पहना रहे हैं।
बिहार में भाजपा की गुटबाजी का मिल सकता है लाभ
सम्राट चौधरी के भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद बाहरी और भीतरी के मुद्दे पर पार्टी कई गुटों में बंटी हुई नजर आ रही है और एक गुट दूसरे गुट को पटखनी देने की हर संभव कोशिशें कर रहा है। बिहार में पिछली बार की तरह शानदार जीत के लिए भाजपा को इस विरोधाभास को दूर करना होगा।
केजरीवाल- महबूबा-अखिलेश के अपने-अपने सवाल
विपक्षी एकता की बैठक में पीडीपी ने कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के मामले में ‘आप’ और अरविंद केजरीवाल से अपना स्टैंड क्लीयर करने को कहा। जबकि ममता ने पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाए। वहीं अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस से अपना रुख साफ करने को कहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने क्षेत्रीय नेताओं को राज्यों में नेतृत्व देने की मांग की। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि अगर इन मुद्दों पर बात नहीं बनी तो सभी दल एकजुट होकर 2024 में चुनाव लड़ेंंगे कैसे? विपक्षी एकता की बैठक से पहले ‘हम’ के जीतन राम मांझी एनडीए का दामन थाम चुके हैं। हालांकि जीतन राम मांझी के एनडीए में शामिल होने से न तो एनडीए मजबूत हो रहा है और न ही विपक्षियों के वोट बैंक पर इसका कोई असर पड़ता हुआ मुझे नजर आ रहा है। हाँ, लेकिन बिहार के दलित-महादलित समुदाय में एनडीए के प्रति माहौल बनाने में मांझी जरूर कारगर साबित हो सकते हैं। दलितों और महादलितों को लुभाने के लिए भाजपा के मयान में कई तलवारें हैं।
महत्वाकांक्षाओं को रखना होगा परे
जदयू सहित अन्य छोटे-छोटे दल जो आज नीतीश कुमार को महागठबंधन का संयोजक बनाने पर सहमत हैं, उनके मन में आज भी इस बात के लड्डू फूट रहे हैं कि नीतीश पीएम मेटेरियल हैं। दूसरी ओर कांग्रेस है जो राहुल गांधी के अलावा शायद ही किसी अन्य को पीएम बनाने पर सहमत हो। असल में ममता दीदी जिस महत्वाकांक्षा की बात कर रही हैं, उस महत्वाकांक्षा के शिकार महागठबंधन में शामिल तमाम नेता हैं। चुनाव आने तक लाखा प्रयासों के बावजूद इन महत्वाकांक्षाओं की आपसी टकराहट भी नजर आएगी। क्योंकि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा, वैसे-वैसे ये महत्वाकांक्षाएं भी जोर मारने लगेंगी। ऐसे में संभव है कि कोई पीछे से खंजर भोंके तो कोई सामने से बंदूक ताने।
कांग्रेस शासित राज्यों में भाजपा सरकार लगा रही अड़ंगा: जयराम
वही कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की ओर से जनता को किए गए वायदों को पूरा करने में कई तरह की अड़चनें लगानी शुरू कर दी है। इसमें कर्नाटक के लोगों को अन्न भाग्य योजना के तहत लाखों लोगों को मिलने वाले लाभ से रोकने की साजिश की जा रही है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस मामले में भी बैठक कर आगे की पूरी रणनीति तय की जानी है।
कांग्रेस में सीटों पर भी होगी चर्चा
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में शिमला में आयोजित गठबंधन के दलों की अगली बैठक का भी एक रोडमैप में तैयार किए जाने का अनुमान है। इस पूरे मामले में शाम की बैठक में और किन मुद्दों पर चर्चा होगी इसको लेकर तो पार्टी के नेताओं ने खुलकर कोई बात नहीं की, लेकिन यह जरूर कहा कि कांग्रेस की सीटों के समझौते को लेकर भी जरूर चर्चा करेगी। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पटना में हुई बैठक के बात सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस की सीटों को लेकर के की जा रही है। पार्टी के नेताओं के मुताबिक पार्टी किस राज्य में कितनी सीटों के साथ अपने मजबूत तैयारी करेगी उसको लेकर के भी चर्चाएं की जानी हैं।
क्या होगा नाम-यूपीए या पीडीए
लंबे समय से कांग्रेस गठबंधन की सरकारें यूपीए के नाम से ही जानी जाती रहीं हैं। वह कहते हैं कि यूपीए का नाम बदलकर पीडीए किए जाने को लेकर एक महत्वपूर्ण चर्चा पार्टी के नेताओं के भीतर लगातार हो रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यूपीए-1 और यूपीए-2 की सरकारों के बाद पीडीए को लेकर पार्टी के नेताओं में थोड़ी असहजता जरूर देखी जा रही है। हालांकि, पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी की ओर से न सिर्फ गठबंधन बल्कि पीडीए को लेकर के भी समर्थन में सहमति जताई गई है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के भीतर सहयोगी गठबंधन के नए नाम को लेकर होने वाली चर्चा विशेष मायने नहीं रखती है। बावजूद इसके होने वाली बैठक में इसको लेकर बातचीत अवश्य की जाएगी।
कैसा होगा गठबंधन इसका पूरा रोड मैप बनाएगी कांग्रेस
प्रमुख विपक्षी पार्टियों के साथ होने वाले गठबंधन को लेकर कांग्रेस के भीतर की बैठकों का दौर जारी है। बैठक में पार्टी की रणनीति तय करने वाले वरिष्ठ नेता शामिल होंगे। पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक बैठक में यूपीए के बदले जाने वाले नाम के साथ साथ आगे के सियासी रणनीतियों पर विचार किया जाएगा। कांग्रेस पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पटना में हुई बैठक के बाद पार्टी अभी इस रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है कि किन मुद्दों के साथ गठबंधन की नई रणनीति का पूरा रोड मैप आगे बनाया जाए।