जिस कॉलेज ने ठुकराया उसी कॉलेज ने दिल से लगाया गौतम अडानी को

जय हिंद कॉलेज ने किया सबसे अमीर शख्स का सम्मान

अडानी की कंपनियां विभिन्न कारोबारों में आगे
टीचर्स-डे पर व्याख्यान में गौतम अडानी ने छात्रों को दिये टिप्स
अडानी ने किया था 16 वर्ष की उम्र में पहली सीमा तोडऩे का फैसला

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नयी दिल्ली। देश के जाने-माने उद्योगपति गौतम अडानी ने 1970 के दशक में शिक्षा के लिए मुंबई के एक कॉलेज में पढऩे के लिए आवेदन किया था, लेकिन कॉलेज ने उनके आवेदन को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने आगे की पढ़ाई नहीं की बल्कि कारोबार की ओर रुख किया और लगभग साढ़े चार दशक में 220 अरब डॉलर का साम्राज्य खड़ा किया। आज उसी कॉलेज में उन्हें शिक्षक दिवस पर छात्रों को व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया। जय हिंद कॉलेज के पूर्व छात्रों के संघ के अध्यक्ष विक्रम नानकानी ने भारत के सबसे धनाढ्य व्यक्तियों में शामिल अडाणी का परिचय देते हुए कहा कि वह 16 साल की उम्र में मुंबई चले गए थे और हीरे की छंटाई का काम करने लगे थे।
उन्होंने 1977 या 1978 में शहर के जय हिंद कॉलेज में प्रवेश के लिए आवेदन किया। लेकिन उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया। उन्होंने जय हिंद कॉलेज में आवेदन किया था क्योंकि उनके बड़े भाई विनोद पहले उसी कॉलेज में पढ़ते थे। आज अडानी की कंपनियां विभिन्न कारोबार से जुड़ी हैं। बुनियादी ढांचा क्षेत्र की उनकी कंपनी देश में 13 बंदरगाहों और सात हवाई अड्डों का भी संचालन करती है। आज उनका समूह बिजली के क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी इकाई है। इतना ही नहीं, उनकी कंपनी सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक है, देश की दूसरी सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी चलाती है, एक्सप्रेसवे का निर्माण कर रही है और एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती का पुनर्विकास कर रही है। कुछ लोगों ने इसे भारत की नई पीढ़ी के उद्यमियों में सबसे आक्रामक बताया है। द पावर ऑफ पैशन एंड अनकन्वेंशनल पाथ्स टू सक्सेस’ विषय पर व्याख्यान देते हुए, 62 वर्षीय अडानी ने कहा कि वह केवल 16 वर्ष के थे जब उन्होंने अपनी पहली सीमा को तोडऩे का फैसला किया। उन्होंने कहा कि इसका संबंध पढ़ाई-लिखाई छोडऩे और मुंबई में एक अनजाने से भविष्य की ओर जाने से था। लोग अब भी मुझसे पूछते हैं, ‘आप मुंबई क्यों चले गए? आपने अपनी शिक्षा पूरी क्यों नहीं की?’ अडानी कई सामाजिक कामों में हिस्सा लेते रहते हैं। मुंबई के पास स्थित एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती धारावी को अडानी ग्रुप प रिडेवलप कर रहा है। इसका जिक्र करते हुए गौतम अडानी ने कहा, धारावी इंसानों की गरिमा की बात है, हमारे बिजनेस की ताकत उसका इंटिग्रेटेड मॉडल है।

आलोचना करने के बजाय सुधारने पर फोकस करना चाहिए

गौतम अडानी ने कहा, आप जो सपना देखते हैं, उसी को साकार करते हैं, जितनी बड़ी सीमा आप तोड़ते हैं, प्रतियोगिता उतनी ही कम होती है। वर्तमान परिस्थितियों की आलोचना करना आसान है, लेकिन इसे सुधारना उतना ही मुश्किल है। हमें किसी चीज की आलोचना करने के बजाय उस चीज को सुधारने पर फोकस करना चाहिए। जो इन मुश्किलों को पार कर जाता है, कामयाबी उसी को मिलती है। उन्होंने कहा कि हर किसी का रोल मॉडल होता है। जो आपको आपके संघर्ष के समय मोटिवेट करता है, कच्चे रास्तों को पार करकर आप आखिरकार अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं। अडानी ने कहा, हर किसी के लिए कामयाबी के नुस्खे अलग-अलग होते हैं, मेरे लिए कामयाबी के नुस्खे एक ही हैं- जुनून और अलग राह पर चलने की ताकत ही मेरी कामयाबी का नुस्खा है। हिंडनबर्ग रिसर्च पर गौतम अडानी ने कहा कि वित्तीय हमले के बाद हमने अपना जज्बा दिखाया। ये महज वित्तीय हमला नहीं था। बल्कि दोतरफा वार था। इसका मकसद हमें अधिकतम नुकसान पहुंचाना था। लेकिन हमने इसी खराब दौर में सबसे अच्छा कारोबार किया। इस हमले के बीच हमारे रिकॉर्ड हमारी क्षमता के इंडिकेटर साबित हुए।

बड़ा सोचने के लिए मुंबई ने मुझे सिखाया : अडानी

अडानी ने कहा कि इसका उत्तर सपने देखने वाले हर युवा के दिल में है जो सीमाओं को बाधाओं के रूप में नहीं बल्कि चुनौतियों के रूप में देखता है जो उसके साहस की परीक्षा लेती हैं। उन्होंने कहा कि मुझे यह महसूस हुआ था कि क्या मुझमें हमारे देश के सबसे महत्वपूर्ण शहर में अपना जीवन जीने का साहस है। कारोबार के लिए मुंबई उनका प्रशिक्षण स्थल था क्योंकि उन्होंने हीरों की छंटाई और व्यापार करना सीखा था। कारोबार करने का क्षेत्र एक अच्छा शिक्षक बनाता है। मैंने बहुत पहले ही सीख लिया था कि एक उद्यमी अपने सामने मौजूद विकल्पों का अत्यधिक मूल्यांकन करके कभी भी स्थिर नहीं रह सकता। यह मुंबई ही है जिसने मुझे सिखाया ‘बड़ा सोचने के लिए। आपको पहले अपनी सीमाओं से परे सपने देखने का साहस करना होगा। अडानी ने 1980 के दशक में संघर्षरत लघु उद्योगों को आपूर्ति के लिए पॉलिमर आयात करने के लिए एक व्यापारिक संगठन का गठन किया। उन्होंने कहा कि जब मैं 23 साल का हुआ, तो मेरा कारोबारी उद्यम अच्छा कर रहा था। उन्होंने 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद पॉलिमर, धातु, कपड़ा और कृषि-उत्पादों में काम करने वाले एक वैश्विक कारोबारी घराने की स्थापना की। तब वह सिर्फ 29 साल के थे। दो साल के भीतर, हम देश में सबसे बड़ा वैश्विक कारोबारी घराना बन गये। तब मुझे गति और पैमाने दोनों का संयुक्त मूल्य समझ में आया।

दलदली बंजर भूमि का किया कायाकल्प

अडानी ने 1990 के दशक के मध्य में, वैश्विक जिंस व्यापारी कारगिल ने उनसे गुजरात के कच्छ क्षेत्र से नमक के निर्माण और स्रोत के लिए साझेदारी के लिए संपर्क किया था। उन्होंने कहा कि हालांकि, साझेदारी सफल नहीं हो पाई, लेकिन हमारे पास लगभग 40,000 एकड़ दलदली भूमि और नमक के निर्यात के लिए मुंदड़ा (गुजरात में) में निजी उपयोग को लेकर जेट्टी (घाट) बनाने की मंजूरी रह गई। जिसे अन्य लोग दलदली बंजर भूमि के रूप में देखते थे, उसे उन्होंने कायाकल्प का इंतजार कर रहे एक बड़े क्षेत्र के रूप में देखा। वह क्षेत्र अब भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह है। मुंदड़ा में आज भारत के सबसे बड़े बंदरगाह, सबसे बड़े औद्योगिक विशेष आर्थिक क्षेत्र, सबसे बड़े कंटेनर टर्मिनल, सबसे बड़े तापीय बिजली संयंत्र, सबसे बड़ी सौर विनिर्माण सुविधा केंद्र, सबसे बड़े तांबा संयंत्र और सबसे बड़ी खाद्य तेल रिफाइनरी है। इतना ही नहीं, मुंदड़ा अंत में जो बनेगा, हम उसका केवल 10 प्रतिशत ही उपयोग कर रहे हैं। अब वह कच्छ में दुनिया का सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा पार्क बना रहे हैं और मुंबई में धारावी झुग्गी-बस्ती का पुनर्विकास कर रहे हैं। हालांकि, हमने हवाई अड्डों, बंदरगाहों, लॉजिस्टिक, औद्योगिक पार्कों और ऊर्जा में भारत के बुनियादी ढांचे को फिर से परिभाषित करने में मदद की है, लेकिन यह जीत नहीं है जो हमें परिभाषित करती है। यह चुनौतियों का सामना करने और उन पर काबू पाने की मानसिकता है जिसने अडानी समूह की यात्रा को खूबसूरत आकार दिया है।

1994 में कंपनी को सूचीबद्ध करवाया

अडानी ने कहा कि इसके बाद, 1994 में, हमने फैसला किया कि यह सूचीबद्ध होने का समय है और अडानी एक्सपोर्ट्स ने अपना आईपीओ (आरंभिक सार्वजनिक निर्गम) लेकर आई। इसे अब अदाणी एंटरप्राइजेज के नाम से जाना जाता है। आईपीओ लाने का निर्णय सफल रहा और इससे मुझे सार्वजनिक बाजारों का महत्व समझ में आया। उन्हें एहसास हुआ कि आगे की सीमाओं को तोडऩे के लिए, उन्हें सबसे पहले अपनी यथास्थिति को चुनौती देकर शुरुआत करनी होगी और एक ठोस आधार प्रदान करने के लिए परिसंपत्तियों में निवेश करना होगा। पीएम के डिजिटल इंडिया की सराहना करते हुए भारत के सबसे अमीर व्यक्ति अडानी ने कहा कि दुनिया को हमारे डिजिटल स्ट्रक्चर से जलन हो सकती है क्योंकि भविष्य डिजिटल का है और इसका नेतृत्व भारत के हाथ में है। अडानी ने कहा कि आने वाला समय भारत का है।

सौभाग्य से या दुर्भाग्य से कॉजेल नहीं स्वीकार कर पाया था आवेदन : विक्रम ननकानी

पूर्व छात्रों के संघ के अध्यक्ष विक्रम ननकानी ने गौतम अडानी को ‘पूर्व छात्र’ का दर्जा देते हुए कहा, ‘सौभाग्य से या दुर्भाग्य से, कॉलेज ने उनके आवेदन को स्वीकार नहीं किया और उन्होंने अपना काम करना शुरू कर दिया और एक वैकल्पिक करियर अपनाया। उन्होंने लगभग दो साल तक हीरा छांटने का काम किया। उसके बाद पैकेजिंग कारखाना चलाने के लिए अपने गृह राज्य गुजरात लौट गये। इस कारखाने को उनके भाई चलाते थे। अडानी ने 1998 में जिंसों में व्यापार करने वाली अपनी कंपनी शुरू करने के बाद कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। अगले ढाई दशक में, उनकी कंपनियों ने बंदरगाह, खदान, बुनियादी ढांचा, बिजली, सिटी गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, सीमेंट, रियल एस्टेट, डेटा सेंटर और मीडिया जैसे क्षेत्रों में कदम रखा। जय हिंद कॉलेज मुंबई, महाराष्ट्र, भारत में एक स्वायत्त कॉलेज है, जो मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध है। इसकी स्थापना 1948 में हुई थी। 2000 में, जय हिंद कॉलेज को मुंबई शहर के सबसे अच्छे और सबसे अधिक मांग वाले कॉलेजों में से एक बताया गया था। इसकी स्थापना आज़ादी के ठीक बाद, कराची, सिंध, पाकिस्तान के डी. जे. साइंस कॉलेज से विस्थापित शिक्षकों के एक छोटे समूह द्वारा डॉ. मोहिंदर-माइल्स मॉर्टन की देखरेख में की गई थी। जय हिंद कॉलेज की शुरुआत एक कला और विज्ञान महाविद्यालय के रूप में हुई। इसकी स्थापना के बाद कई नए पाठ्यक्रम और विषय शुरू किए गए – वाणिज्य संकाय 1980 में शुरू किया गया, प्रबंधन और कंप्यूटर विज्ञान 1999 में, मास मीडिया और जैव प्रौद्योगिकी 2002 में, और बैंकिंग और बीमा 2003 में शुरू किया गया।

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