आसान नहीं होगी दीदी की राह

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल विधानसभा ने मंगलवार को अस्थायी समिति की रिपोर्ट का समर्थन करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें विधान परिषद के गठन की बात कही गई है। इसके साथ ही विपक्षी दल भाजपा ने इसका विरोध किया है। राज्य के विधायी कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी ने सदन के कामकाज के संचालन की प्रक्रिया के नियम 169 के तहत प्रस्ताव पेश किया- विधान परिषद के गठन की सिफारिश पर विचार के लिए अस्थायी समिति की रिपोर्ट पर विचार करें । विधान परिषद के गठन के समर्थन में मतदान हुआ, जिसका सदन में मौजूद 265 सदस्यों में से 196 ने समर्थन दिया और 69 ने विरोध किया।
इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए भाजपा विधायक दल ने कहा कि टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) पिछले दरवाजे से राजनीति करना चाहती है ताकि विधानसभा चुनाव में हार होने पर भी नेता चुने जाएं। भाजपा ने यह भी कहा कि इस कदम से राज्य के राजस्व पर दबाव पड़ेगा। आईएसएफ के एकमात्र विधायक नौशाद सिद्दीकी ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया तो भाजपा के सुर गूंज उठे। इन सबके बीच अहम सवाल यह है कि क्या ममता का यह दशक पुराना प्रस्ताव हकीकत के धरातल पर उतर पाएगा?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा, ज्यादातर राज्यों में या तो उच्च सदन नहीं है या फिर उन्हें पहले ही समाप्त कर दिया गया है। टीएमसी की योजना के पीछे असली वजह उन नेताओं को वापस लाना है जो विधानसभा चुनाव हार गए थे। एक तरफ राज्य कह रहा है कि उसके पास फंड नहीं है, लेकिन इस विधान परिषद के गठन से हर साल 90-100 करोड़ रुपये का अतिरिक्त दबाव पड़ेगा।
हम देखेंगे कि संसद के दोनों सदनों में इसे कैसे पारित किया जाता है । 1952 से 1969 तक जब राज्य विधानसभा में विधान परिषद थी, तब 436 विधेयकों में से केवल दो विधेयक पारित हुए। दूसरी ओर टीएमसी के प्रस्ताव पर पार्थ चटर्जी ने कहा कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से समाज की प्रसिद्ध हस्तियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जाता है। जो लोग राज्य के खजाने को लेकर बहुत चिंतित हैं, उन्हें पहले केंद्र से जीएसटी फंड जारी करने के लिए कहना चाहिए । भाजपा सरकार को महामारी के दौरान पहले सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को रोकना चाहिए और फिर दूसरों को लेक्चर देना चाहिए।
वर्ष 2011 में सत्ता में आने के बाद टीएमसी सरकार ने विधान परिषद की स्थापना के लिए राज्य विधानसभा में प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया और इस संबंध में एक समिति का गठन भी किया गया। साथ ही समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी थी और निर्णय लिया गया था कि विधान परिषद का गठन करने के लिए प्रस्ताव लाया जाएगा।
अब इस प्रस्ताव को राज्यपाल से मंजूरी की जरूरत होगी और उसके बाद संसद में एक विधेयक पारित किया जाएगा। इसके बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजना होगा ताकि विधान परिषद का गठन किया जा सके। वर्तमान में छह राज्यों में विधान परिषद है जिसमें महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और बिहार शामिल हैं।

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