भाजपा, आप नेताओं ने एक सुर से की मीडिया टयल की कड़ी आलोचना

  •  दिल्ली प्रेस क्लब में Óमीडिया ट्रायल और चरित्र हननÓ कार्यक्रम

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी (आप) के नेता समेत बुद्घिजीवियों ने सनसनीखेज हत्या, बलात्कार और हाल ही में चर्चा में आए मीटू के मामले में खबरिया चैनलों पर आरोपी व संदिग्धों के खिलाफ चलने वाले मीडिया ट्रायल की कड़ी आलोचना की। दिल्ली प्रेस क्लब में Óमीडिया ट्रायल और चरित्र हननÓ के विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे राज्यसभा सांसद और आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने कहा टीआरपी की होड़ में टीवी न्यूज चैनलों द्वारा किए जाने वाले मीडिया ट्राल से मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। उन्होंने कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि बेबुनियाद आरोपों को लेकर मीडिया में चली खबरों से उन्हें किस प्रकार उन्हें मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ी। संजय सिंह पहली बार सार्वजनिक रूप से बोले मीडिया में उन पर लगे आरोपों के बाद उनकी मां और बेटी ने भी उनसे सवाल किया। उन्होंने बताया कि उन पर जब आतंकियों से उनके संबंध होने के आरोप मीडिया में लगाए गए तो उनकी बेटी ने उनसे सवाल किया था। कार्यक्रम पहुंचे भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता आदित्य झा ने भी कुछ उदाहरणों का उल्लेख किया, जिनमें मीडिया ट्रायल के चलते संदिग्धों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। मीडिया ट्रायल और पुलिस पर बढ़ते दबाव के कारण कभी-कभी बेबुनियाद सबूतों के आधार पर चार्जशीट बन जाती है। ऐसे मामलों में सुनवाई में तेजी लाने के लिए यह देखा गया है कि अक्सर न्याय नहीं मिलता है। या तो दोषी व्यक्ति स्वतंत्र रूप से चलता है या एक निर्दोष व्यक्ति को दंडित किया जाता है। कार्यक्रम में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रमोद कुमार दुबे, वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा और विनीता यादव ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन विनीता यादव ने किया।

अदालती कार्यवाही पर पड़ता है असर

कार्यक्रम में विचार रखते हुए दुबे ने बताया मीडिया में साक्ष्यों की जांच-परख किए बगैर चलने वाली खबरों के चलते अदालती कार्यवाही पर असर पड़ता है। दीपक शर्मा ने कहा मजबूत कानून-व्यवस्था और न्याय-प्रणाली के बगैर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व वाले जीवंत समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। क्योंकि प्रगतिशील समाज के लिए यह बेहद जरूरी है। हालांकि, सनसनीखेज हत्या, बलात्कार और हाल ही में चर्चा में रहे मी टू के हाई प्रोफाइल मामलों में अक्सर चर्चा इतनी अधिक होती है कि कानून को अमल में लाने वाली एजेंसियोंं और यहंा तक कि न्यायपालिका भी इस ढंग से दबाव में आ जाती है, जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और टीआरपी के लालचीज खबरिया चैनल अक्सर मामले के सच को तोड़मरोड़ कर पेश करते हैं। कभी-कभी हालात ऐसे बन जाते हैं कि नॉन-स्टॉप मीडिया ट्रॉयल चलने लगता है, जिससे आखिरकार झूठी कहानी गढ़ी जाती है या फिर संदिग्ध या आरोपी की छवि पेश की जाती है, जिसका वास्ताविकता से कोई नाता नहीं होता है।

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