कैबिनेट विस्तार तो तय लेकिन मामला रेल पर अटका
नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा जोरों पर हो रही है। भाजपा में भी इसको लेकर मंथन चल रहा है तो भाजपा के सहयोगी भी इस विस्तार में अपनी हिस्सेदारी की उम्मीद कर रहे हैं। एक ओर जहां नेतृत्व पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर इस विस्तार की रणनीति तय कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर और भी बहुत से समीकरण हैं जिनको साधने की कवायद इस विस्तार में होगी।
आगामी कैबिनेट विस्तार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई समीकरणों से निपटेंगे। वे समीकरण चुनावी राज्यों से भी जुड़े होंगे, सामाजिक और राजनीतिक छोर भी जुड़ेंगे और समीकरणों के इस सार में कुछ सूरमा खुद को फिट करने में लगे हुए हैं। अहम बात यह है कि राजनीति, समीकरणों और मंत्रिमंडल विस्तार के इस मेल से रेलवे बहुतों को प्रिय हो गया है। रेल मंत्रालय पर कई राजनेताओं की निगाहें टिक गईं हैं। प्रधानमंत्री यह तोहफा किसको देंगे, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन अगर उनकी अपनी राजनीति पटरी पर आती है तो अलग-अलग सूरमाओं के पास अपनी-अपनी विरासत की गठरी तैयार है।
मौजूदा हालात की बात करें तो पीयूष गोयल 2 बड़े मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, जिनमें से एक रेल मंत्रालय भी है। इस बात की अधिक संभावना है कि रेल मंत्रालय को कैबिनेट में कोई नया चेहरा दिया जाए। बस इसी संभावना के दम पर राजनीति को पटरी पर लाने की कोशिशें तेज हो गई हैं। रेल मंत्रालय से जुड़ी विरासत और चाहत की कहानी बताने से पहले आपके लिए यह जानना जरूरी है कि रेलवे का खाका नीति स्तर पर तैयार किया गया है, अब सिर्फ एक ही व्यक्ति की जरूरत है जो नीतियों को धरातल पर लागू कर सके। तो आइए अब हम आपको बताते हैं जिसमें आपको समझ में आ जाएगा कि आखिर रेल मंत्रालय में किसकी ज्यादा दिलचस्पी है और इसके पीछे क्या विरासती तर्क दिए जा रहे हैं। इस लिस्ट में सबसे पहला नाम जदयू को लेकर है। जदयू चाहती है कि उनके कोटे से रेल मंत्री बने व उनको रेल मंत्रालय दिया जाए. इसके पीछे के तर्क जमीनी, राजनीतिक और विरासत हैं।
जमीनी तर्क यह है कि बिहार के लिए या बिहार रूट पर बड़ी संख्या में ट्रेनें चलती हैं, ऐसे में अगर जदयू बिहार की सत्ताधारी पार्टी है तो उसे यह मंत्रालय मिलना चाहिए, जिससे बिहार के मतदाताओं को जोड़ा जा सके। सबसे दिलचस्प तर्क यह है कि नीतीश बाबू ने जदयू कोटे से ट्रेन चलाई है, इसलिए एक बार फिर जदयू कोटे के मंत्री को यह मंत्रालय मिलना चाहिए।
जदयू के बाद आता है लोक जनशक्ति पार्टी का नंबर। पशुपति पारस की इच्छा लोजपा के कोटे से कैबिनेट में शामिल होने की संभावना के साथ रेल मंत्री बनने की है। लोजपा की विरासत संभालने के बाद पारस और लोजपा में एक बार फिर वही जिम्मेदारी लेने की इच्छा है, जो कभी रामविलास पासवान के पास थी। विरासत की इस सूची में अगला नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का है जिन्होंने कांग्रेस को दोहरा झटका दिया है। पहला झटका पंजे को बाय-बाय करने का है और दूसरा झटका एमपी में कांग्रेस की सरकार गिराकर बीजेपी की सरकार बनाने का है। ज्योतिरादित्य का कद राजनीति में भी बड़ा है और चूंकि वह कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, इसलिए उनके पास रेलवे जैसा बड़ा मंत्रालय चलाने का अनुभव है। सिंधिया की विरासत की बात करें तो उनके पिता माधवराव सिंधिया भी रेल मंत्री रह चुके हैं और सबसे खास बात यह है कि उनके शासनकाल में राजधानी और शताब्दी जैसी प्रीमियम ट्रेनें चलती थीं और अब देश में बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारी है।
तो रेल मंत्रालय किसे मिलेगा और रेल मंत्री कौन बनेगा, यह प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है, लेकिन इतना तो तय है कि इस बड़े मंत्रालय को पाने की तमन्ना बहुतों के मन में है. यह समीकरण किसके पक्ष में जाएगा, यह किसकी विरासत को रेल मंत्रालय के और करीब लाएगा, यह तो समय के साथ साफ हो जाएगा, लेकिन इतना तय है कि रेल मंत्रालय पर उथल-पुथल का दौर शुरू हो गया है।