सांसदों-विधायकों के आपराधिक मामलों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

  • ईडी-सीबीआई से पूछा, चार्जशीट में देरी क्यों
  • जांच एजेंसियों को मामले को लंबित नहीं रखने के दिए निर्देश
  • आपराधिक मामलों के ट्रायल की याचिका पर की सुनवाई

4पीएम न्यूज नेटवर्क. नई दिल्ली। सासंदों और विधायकों के आपराधिक मामलों के जल्द ट्रायल और निपटारा करने की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने ईडी और सीबीआई से पूछा कि विधायक-सांसदों के मामलों में चार्जशीट दाखिल करने में देरी क्यों हो रही है। सीजेआई ने कहा कि अगर जांच में कुछ मिलता है तो चार्जशीट दाखिल कीजिए इसे लंबित मत रखिए। सीजेआई ने कहा कि हम जांच एजेंसियों को निराश नहीं करना चाहते हैं इसलिए कुछ कह नहीं रहे हैं। जांच एजेंसियों पर दबाव है तो कोर्ट के ऊपर भी मामलों का दबाव है। एक सीबीआई कोर्ट में 900 मामले हैं। सीजेआई ने कहा कि हमने भारत सरकार से स्पेशल कोर्ट मुहैया कराने की मांग की थी, लेकिन सरकार ऐसा कर नहीं पाई। इंफ्रास्ट्रक्वर बड़ा मसला है। मैंनेे दो जजों से भी कहा था कि वे इस मामले को देखें और सुझाव दें। यह देश के लिए भी अच्छा है कि देश में रेशनलाइजेशन पॉलिसी हो। यह रिपोर्ट अच्छी नहीं है। 10-15 सालों से चार्जशीट या कुछ और दाखिल न करना गलत है। एक केस ऐसा है जहां आपने 200 करोड़ की संपत्ति अटैच की लेकिन कुछ भी फाइल नहीं किया गया। सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि 15-20 साल से कई अहम मुकदमे लंबित हैं लेकिन ये एजेंसिया कुछ नहीं कर रही हैं। खासतौर से ईडी तो सिर्फ संपत्ति जब्त कर रही है। यहां तक कि कई मामलों में वर्षों बीत जाने के बावजूद चार्जशीट तक दाखिल नहीं की गई है। हमारा मानना है कि मुकदमों को ऐसे ही लटका कर न रखें। चार्जशीट दाखिल करें या फिर बंद करें। गौरतलब है कि सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की तीन जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है।

निगरानी समिति गठित करने का सुझाव

सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों में तेजी से सुनवाई की मांग वाली याचिका पर वरिष्ठ वकील व एमिकस क्यूरी विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल की। एमिकस क्यूरी ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया कि शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश या हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति गठित की जाए जो सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की ओर से मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों की जांच में देरी के कारणों का मूल्यांकन करे। एमिकस क्यूरी ने रिपोर्ट में सुझाव दिया कि समिति में सीबीआई और ईडी के प्रमुख और गृह सचिव भी शामिल हों। समिति जांच को समय पर पूरा करने के लिए निर्देश जारी कर सकती है। हंसारिया ने कोर्ट को बताया कि देश भर की विशेष सीबीआई अदालतों में मौजूदा और पूर्व सांसदों व विधायकों के खिलाफ कुल 121 मामले लंबित हैं। 58 मामलों में आजीवन कारावास का प्रावधान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपी सरकार ने न्यायमित्र को सूचित किया है कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित 510 मामले मेरठ क्षेत्र के पांच जिलों में 6,869 आरोपियों के खिलाफ दर्ज किए गए थे। इनमें से 175 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किया गया, 165 मामलों में अंतिम रिपोर्ट पेश की गई 170 मामलों को वापस लिया गया। मामलों को वापस लेते का राज्य सरकार ने कोई तर्कपूर्ण आदेश नहीं दिया।

मांगा स्पष्टïीकरण

सीजेआई ने फटकार लगाते हुए कहा कि हम एसजी तुषार मेहता से सीबीआई और ईडी से इन लंबित मामलों के बारे में स्पष्ट स्पष्टीकरण देने को कह रहे हैं। एजेंसियों ने इन मामलों में देरी के कारणों के बारे में विस्तार से नहीं बताया है। कोर्ट की इस फटकार के बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आप हाईकोर्ट को इसमें तेजी लाने का निर्देश दे सकते हैं।

आजीवन प्रतिबंध पर संसद को करना चाहिए गौर

सुनवाई के दौरान वकील विकास सिंह की तरफ से कहा गया कि यदि कोई नेता गंभीर अपराध में दोषी पाया जाता हैं तो उसे सजा के बाद 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इस पर सीजेआई ने कहा कि आजीवन प्रतिबंध एक ऐसी चीज है जिस पर संसद को गौर करना चाहिए, अदालत को नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग पर भी विचार करने की सहमति जताई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर और मैनपावर कोर्ट के लिए मसला है।

 

कल्याण सिंह के निधन पर शोक संदेश देकर घिरे एएमयू के कुलपति, विरोध में लगे पर्चे

  • विश्वविद्यालय प्रशासन ने हटवाएं पर्चे, मामले की होगी जांच
  • पर्चे में शोक संवेदना दिए जाने की छात्रों ने की थी निंदा

4पीएम न्यूज नेटवर्क. लखनऊ। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के निधन पर शोक संदेश देकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति तारिक मंसूर निशाने पर आ गए है। शोक संवेदना व्यक्त किए जाने की एएमयू के छात्रों ने निंदा की है और परिसर में कई जगह पर्चे भी चिपकाए गए हैं। पर्चों में कुलपति तारिक मंसूर के खिलाफ बातें लिखीं गई हैं। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने पर्चे हटवा दिए हैं। पर्चे में कहा गया है कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस तरह शोक संवेदना व्यक्तकरना भावनाओं को आहत करने वाला है क्योंकि पूर्व में जो हुआ है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। यह पर्चे हिंदी उर्दू और अंग्रेजी भाषा में हैं। इस संबंध में विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर प्रोफेसर वसीम अली कहते हैं कि कुछ शरारती तत्वों द्वारा इस तरह के पर्चे दो-तीन जगह चिपकाए गए थे, जिनको हटवा दिया गया है। एएमयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष फैजुल हसन ने बताया कि नोटिस कैंपस के किसी जगह लगा था इसमें किसी का नाम नहीं है। कोई भी इस तरह का पोस्टर लगा सकता है। वहीं मामले में अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि इस मामले की जांच की जा रही है। जो भी दोषी होगा उस पर कार्रवाई की जाएगी। 

क्या है मामला

22 अगस्त को कल्याण सिंह के निधन पर एएमयू के जनसंपर्क विभाग की तरफ से कल्याण सिंह के निधन पर एएमयू कुलपति ने जताया शोक के नाम से प्रेस नोट भेजा गया था। इसमें उन्होंने कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह के निधन पर गहरा शोक व्यक्तकिया है। प्रोफेसर मंसूर ने कहा है कि कल्याण सिंह ने देश के सार्वजनिक जीवन और उत्तर प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके परिवार को इस अपार दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। 

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