गुजरात वोटर लिस्ट में 17 लाख मृत मतदाता, लोकतंत्र पर उठे सवाल
गुजरात में लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी मतदाता सूची अब सवालों के घेरे में है। Special Intensive Revision (SIR) के दौरान सामने आया ताज़ा खुलासा लोगों को चौका देता है। राज्य की वोटर लिस्ट में 17 लाख से ज़्यादा मृत मतदाता अभी भी दर्ज पाए गए।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: गुजरात में लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी मतदाता सूची अब सवालों के घेरे में है। Special Intensive Revision (SIR) के दौरान सामने आया ताज़ा खुलासा लोगों को चौका देता है। राज्य की वोटर लिस्ट में 17 लाख से ज़्यादा मृत मतदाता अभी भी दर्ज पाए गए।
यह आंकड़ा न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही दिखाता है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। आम तौर पर मतदाता सूची को पवित्र दस्तावेज माना जाता है, क्योंकि इसी के आधार पर देश के भविष्य का फैसला होता है। लेकिन जब सूची में ही ऐसी बड़ी गड़बड़ी मिल जाए, तो लोकतंत्र की नींव हिलना स्वाभाविक है।
गुजरात में हाल ही में SIR कार्यक्रम शुरू किया गया था ताकि वोटर लिस्ट को अपडेट किया जा सके। अधिकारियों ने घर-घर जाकर Form वितरित किए, जिनका उद्देश्य था असली मतदाताओं की पहचान करना, मृतकों के नाम हटाना, और नए मतदाताओं को जोड़ना। लेकिन जब ये सत्यापन शुरुआत में हुआ, तभी कई जिलों के अधिकारी सन्न रह गए, क्योंकि मृत मतदाताओं की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में थी। हर जिले से ऐसी रिपोर्टें आती रहीं कि सूची में ऐसे नाम हैं जिनके धारक कई साल पहले गुजर चुके हैं, लेकिन उनका नाम अब भी वोटर रोल में सक्रिय है।
एक तरफ़ चुनाव आयोग दावा करता है कि वोटर लिस्ट वैज्ञानिक ढंग से तैयार होती है, डिजिटल अपडेट होती है, और हर साल संशोधित की जाती है। लेकिन सच्चाई इससे कई कदम दूर है। अगर एक राज्य में 17 लाख मृत लोगों के नाम सक्रिय मिलते हैं, तो यह सिर्फ आंकड़ा नहीं एक चेतावनी है कि प्रणाली में कितनी खामियां हैं। माना जाता है कि यह संख्या वर्षों से जमा गलतियों का परिणाम है। मृतकों के नाम हटाने की प्रक्रिया धीमी रही, परिवारों की ओर से जानकारी नहीं दी गई, और प्रशासन के स्तर पर भी सक्रियता कम रही।
इस बड़ी गड़बड़ी के अलावा, लिस्ट में ऐसे लोगों के नाम भी दर्ज थे जो गुजरात छोड़कर स्थायी रूप से अन्य राज्यों में जा चुके थे। इसके अलावा लगभग तीन लाख के करीब नाम डुप्लीकेट पाए गए मतलब वही व्यक्ति दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में दर्ज था। यह स्थिति बेहद खतरनाक है, क्योंकि इससे न सिर्फ फर्जी वोटिंग की संभावना बढ़ जाती है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया पर जनता का भरोसा भी कम होता है।
सरकार की ओर से कहा गया कि यह SIR का ही परिणाम है कि इतनी गड़बड़ियाँ अब सामने आई हैं। लेकिन सवाल यह है कि इतने सालों तक यह गलतियां छिपी कैसे रहीं? क्यों हर साल की सूची संशोधनों में ये त्रुटियाँ पकड़ी नहीं गईं? क्या यह सिर्फ प्रशासनिक चूक थी, या इस व्यवस्था को जानबूझकर साफ नहीं किया गया? क्या यह सिर्फ डेटा की समस्या है या चुनावी राजनीति का भी कहीं न कहीं योगदान है? इन सवालों का जवाब जनता चाहती है क्योंकि लिस्ट में गलत नामों का होना सीधे-सीधे वोट की पवित्रता पर चोट है।
गुजरात के कई राजनीतिक दलों ने इस खुलासे को गंभीर माना है। विपक्षी दलों का कहना है कि अगर वोटर लिस्ट इतनी गड़बड़ है, तो पिछले चुनावों की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े होते हैं। अगर मृत मतदाता लिस्ट में हैं, गायब लोग लिस्ट में हैं, और डुप्लीकेट नाम भी सक्रिय हैं, तो निष्पक्ष चुनाव का दावा कितना सही है? विपक्ष ने ये भी आरोप लगाया कि ऐसी गड़बड़ियों का फायदा हमेशा सत्ता पक्ष को मिलता है, इसलिए सूची में सुधार को वर्षों तक गंभीरता से नहीं लिया गया।
वहीं सत्ता पक्ष की ओर से कहा गया कि SIR प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता से चालू है और यह सब डेटा जनता के सामने इसलिए आया है क्योंकि सरकार इसे साफ करना चाहती है। लेकिन जनता का सवाल यह है कि अगर लिस्ट में इतनी बड़ी मात्रा में गलतियां थीं, तो क्या अब तक हुए चुनाव वास्तव में लोगों की वास्तविक इच्छा को दर्शाते थे?
अगर कोई मतदाता मर चुका है लेकिन उसका नाम लिस्ट में है, और वह नाम कभी खराब न किया जाए, तो चुनाव के समय उस नाम का दुरुपयोग हो सकता है। वह नाम किसी के भी वोट में बदल सकता है। इस वजह से मृत मतदाताओं का इतना बड़ा आंकड़ा लोकतंत्र के लिए बेहद गंभीर खतरा बनता है। विशेषज्ञ भी कहते हैं कि भारत में वोटर लिस्ट में मृत और डुप्लीकेट नामों की समस्या कई सालों से है, लेकिन गुजरात में यह संख्या जिस स्तर पर सामने आई है, वह असाधारण है।
इस खुलासे से यह भी साबित होता है कि हमारी चुनावी प्रणाली का डेटा अपडेट काफी पीछे है। जब दुनिया पूरी तरह डिजिटल हो चुकी है, तब भी हमारे चुनाव प्रणाली के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज voter rolls अभी भी वर्षों पुरानी गलतियों को ढो रहे हैं। इस प्रक्रिया को तेज़, आधुनिक और त्वरित बनाने की आवश्यकता है। अगर अस्पतालों, नगर निगमों, पंचायतों और सरकारी रिकॉर्ड को चुनाव आयोग से जोड़ा जाए, तो मृत व्यक्तियों के नाम स्वत: हट सकते हैं। लेकिन यह काम अब तक प्राथमिकता नहीं बना।
गुजरात में SIR के दौरान यह भी पैरामीटर देखा गया कि कितने मतदाता अपने पते से गायब हैं। अधिकारियों ने घर-घर जाकर फॉर्म वितरित किए, लेकिन लाखों घर ऐसे निकले जहां या तो मतदाता अब रहते नहीं थे, या घर बंद मिला। ये लोग शायद काम के सिलसिले में दूसरे शहर चले गए थे, या स्थायी रूप से अपना निवास बदल चुके थे। पर उनके नाम अब भी उसी स्थानीय बूथ पर दर्ज थे। यह न सिर्फ डेटा एरर है बल्कि चुनावी गड़बड़ी की संभावनाओं को भी बढ़ाता है।
इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की हो रही है कि अब आगे क्या होगा। चुनाव आयोग ने कहा है कि इस SIR के बाद सूची को ‘शुद्ध’ किया जाएगा, मृतकों के नाम हटाए जाएंगे, डुप्लीकेट नामों को हटाकर एकल पहचान रखी जाएगी, और स्थायी रूप से चले गए मतदाताओं को उनकी नई जगह शामिल किया जाएगा। यह प्रक्रिया जारी है लेकिन इसमें समय लगेगा। सवाल यह है कि क्या आने वाले चुनावों से पहले यह प्रक्रिया पूरी हो पाएगी? और क्या जनता को भरोसा आएगा कि अब सूची सही और निष्पक्ष है?
लोकतंत्र की मजबूती का आधार सिर्फ वोट डालना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि वोट सही जगह से आए। जब मृत व्यक्ति का नाम भी वोटर लिस्ट में हो, तो जीते हुए उम्मीदवार की मान्यता पर भी असर पड़ता है। यह समस्या न सिर्फ गुजरात तक सीमित है देश के कई राज्यों में voter-roll साफ होने का दावा तो किया जाता है, लेकिन सच्चाई कभी-कभार ऐसे बड़े अभियानों में सामने आती है।
ये अभियान सिर्फ आंकड़े नहीं निकाल रहे, बल्कि लोकतंत्र के स्वास्थ्य की जाँच कर रहे हैं। जब इतनी बड़ी संख्या में गलतियाँ सामने आती हैं, तो यह सरकार और चुनाव आयोग दोनों के लिए एक wake-up call होना चाहिए। लोगों की इच्छा को ठीक से दर्ज करने के लिए साफ, अद्यतन और सटीक मतदाता सूची आवश्यक है।
जनता यह भी पूछती है कि कितने सालों तक ये ‘ghost voters’ यानी मृत या गायब व्यक्ति हमारी वोटिंग प्रणाली का हिस्सा बने रहे? उनकी वजह से कितनी सीटों का परिणाम प्रभावित हुआ होगा? इन सवालों का जवाब शायद कभी ना मिले, लेकिन यह साफ है कि आगे की प्रक्रिया में अत्यधिक सतर्कता और पारदर्शिता की ज़रूरत है।
यह भी ज़रूरी है कि आम नागरिक अपने वोटर विवरण खुद देखे और अपडेट करे। अगर वोटर लिस्ट में आपका पता गलत है या आपका नाम सही नहीं है, तो तुरंत उसे सही करना चाहिए। क्योंकि चुनावी प्रक्रिया तभी पारदर्शी बनेगी, जब हर नागरिक स्वयं इसमें ज़िम्मेदारी निभाए। लेकिन सरकार और चुनाव आयोग को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी गड़बड़ियाँ आगे न हों।
गुजरात में 17 लाख मृत मतदाताओं का खुलासा यह सिर्फ एक संख्या नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि हमारी प्रणाली में बहुत बड़ा सुधार जरूरी है। पारदर्शिता, डिजिटल सिंक्रोनाइज़ेशन और नियमित अपडेट के बिना लोकतंत्र सिर्फ कागज पर रहेगा, जमीन पर नहीं। अब बारी है कार्रवाई की। बारी है सुधार की। और बारी है यह सुनिश्चित करने की कि किसी भी चुनाव में मृत वोटर नहीं, बल्कि जिंदा जनता का फैसला चले।



