योगी के राडार पर 73 लापरवाह अफसर
लखनऊ। यूपी में योगी सरकार ने जनता की समस्याओं का निराकरण नहीं करने पर अफसरों पर कड़ा रुख आख्तियार किया है। इन लापरवाह अफसरों की वजह से जनता के बीच सरकार की छवि धूमिल हो सकती है। चुनाव 2024 नजदीक है। इसी के तहत योगी आदित्यनाथ सरकार ने जनता की शिकायतों का समाधान करने में विफल रहने वाले 73 अफसरों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब तलब किया है। स्थानीय प्रशासन, पुलिस आदि द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजी गई गोपनीय रिपोर्ट, जन सुनवाई पोर्टल और सीएम हेल्पलाइन पर प्राप्त फीडबैक के आधार पर नोटिस जारी किए गए हैं। जिन अधिकारियों को नोटिस भेजे गए हैं उनमें 10 विभागाध्यक्ष, 5 आयुक्त, 10 जिला मजिस्ट्रेट, 5 विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष, 5 नगर आयुक्त और 10 तहसीलदार शामिल हैं। साथ ही 3 एडीजी, और आईजी, 5 आईजी और डीआईजी, 10 कमिश्नरेट, एसएसपी एसपी के साथ ही 10 पुलिस थानों से भी स्पष्टीकरण मांगा गया है। जन शिकायतों और मुद्दों को संबोधित करने के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले विभागों की पहचान कर्मियों, आयुष, तकनीकी शिक्षा, कृषि विपणन, बुनियादी ढांचे और औद्योगिक विकास, आवास और शहरी नियोजन, व्यावसायिक शिक्षा, नमामि गंगे और ग्रामीण जल आपूर्ति और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के रूप में की गई है। सरकारी प्रवक्ता के अनुसार मुख्यमंत्री ने राज्य के 73 अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर उनसे लापरवाही के आरोप में स्पष्टीकरण मांगा है। नोटिस जुलाई महीने की एक रिपोर्ट के आधार पर जारी किए गए हैं। उन्होंने सभी विभागों, प्रशासन और पुलिस के साथ कई बैठकें की हैं, जिसमें सभी अवसरों पर यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी स्तर पर लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
राजभवन ने सात साल बाद लौटाया राज्य आंदोलनकारी आरक्षण विधेयक
देहरादून। राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने से संबंधित विधेयक को सात साल बाद राजभवन ने सरकार को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधेयक को लौटाने या इसे स्वीकृति देने का अनुरोध राजभवन से किया था। मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण दिया जाएगा। सरकार विधेयक में खामियों को दूर करेगी। नैनीताल हाईकोर्ट ने वर्ष 2011 में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर रोक लगा दी थी। 2015 में हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए इस आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2015 में विधानसभा में राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक पारित कर राजभवन को भेजा था। तब से अभी तक इस विधेयक को राजभवन की स्वीकृति नहीं मिल पाई है। यद्यपि राजभवन ने हाईकोर्ट के निर्णय को देखते हुए विधेयक के विधिक पक्ष को लेकर विधि विशेषज्ञों से परामर्श भी किया था। वर्ष 2004 में एनडी तिवारी सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए शासनादेश जारी किया था। इस आदेश के आधार पर आंदोलनकारियों को सरकारी विभागों में नौकरी भी मिली थी। इसी वर्ष बीते अप्रैल माह में सरकार ने हाईकोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर राज्य आंदोलनकारियों का आरक्षण देने की पैरवी की थी। हाईकोर्ट ने यह प्रार्थना पत्र भी अस्वीकार कर दिया था। अब राजभवन ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अनुरोध को स्वीकार कर इस विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा दिया। साथ में हाईकोर्ट के निर्णय को देखते हुए इस पर विचार करने को कहा है। उधर पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सरकार राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण विधेयक पर पुनर्विचार करेगी। विधेयक की खामियों को दूर किया जाएगा। सरकार आंदोलनकारियों को आरक्षण देने के बारे में कृतसंकल्प है।
सपा और रालोद मिलकर लड़ेंगे नगर निकाय चुनाव
मेरठ। सपा व राष्टï्रीय लोकदल जिस तरह से विधानसभा चुनाव -2022 गठबंधन में लड़े थे उसी तरह से नगर निकाय चुनाव भी साथ लड़ेंगे। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष के बयान से तीन दिन तक भ्रम रहने व गठबंधन में असमंजस की स्थिति पैदा होने के बाद गुरुवार को पार्टी की ओर से आधिकारिक तौर पर स्पष्ट किया गया है। रालोद के प्रदेश मीडिया संयोजक व पार्टी की तरफ से नगर निकाय चुनाव के लिए गठित पर्यवेक्षकों की टीम के सदस्य सुनील रोहटा ने विज्ञप्ति जारी करके यह स्पष्ट किया है कि नगर निकाय चुनाव सपा व रालोद मिलकर लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष ने हाल ही में बयान दिया था जिसको लेकर दोनों पार्टियों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। अब वह पार्टी की तरफ स्पष्ट कर रहे हैं कि दोनों दल साथ हैं और साथ ही चुनाव लड़ेंगे। रालोद की पंद्रह पर्यवेक्षकों की टीम भले ही प्रत्याशी चयन एवं अन्य चुनावी रणनीति को लेकर रिपोर्ट तैयार कर रही है। लेकिन समय आने पर साझी रणनीति की घोषणा होगी। इस संबंध में प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय से बात की गई। उन्होंने कहा कि उनके बयान को ठीक से नहीं समझा गया। उनके कहने का आशय यह था कि दोनों दल चुनाव की तैयारी अभी अलग-अलग कर रहे हैं लेकिन समय आने पर चुनाव मिलकर लड़ेंगे। दोनों दलों का गठबंधन है।