दवेंद्र फडणवीस की कुर्सी के पाए हुए कमजोर, अपनों कि बगावत से महाराष्ट्र में भूकंप !

महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक घमासान के बीच आखिरकार देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली....

4पीएम न्यूजे नेटवर्कः महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक घमासान के बीच आखिरकार देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली…. पिछली गठबंधन सरकार में देवेंद्र फढणवीस उप मुख्यमंत्री थे…. आपको बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति की जीत में बीजेपी की सबसे बड़ी भूमिका होने के बावजूद पिछले कुछ दिनों से ये चर्चा चल रही थी…. कि फडणवीस महाराष्ट्र के सीएम बनेंगे या शिवसेना के शिंदे गुट के नेता एकनाथ शिंदे…. लेकिन अब फडणवीस के सीएम और एकनाथ शिंदे और अजित पवार के डिप्टी सीएम बनने से ये बहस ख़त्म हो गई है…. देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने हैं…. लेकिन उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं…. मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने के बाद से उनकी परेशानियां और बढ़ गई है… महाराष्ट्र सीएम पद आसान नहीं है… फडणवीस की राह कांटो भरी है… और अब उनको तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा… वहीं अपनों की बगावत का भी सामना करना पडेगा… बता दें कि जिस तरह से एकनाथ शिंदे दूरी बनाए हुए है… जिसको देखकर ऐसा लगता है कि महायुति में सब ठीक नहीं चल रहा है…

आपको बता दें कि एकनाथ शिंदे ने राजनीतिक दबाव में आकर डिप्टी सीएम पद की शपथ तो ले लिया है… लेकिन पूरी तरह से वो साथ नहीं है… और उनके मन में कहीं न कहीं अलगाव की स्थिति को देखा जा सकता है… इसका अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि उनकी कुर्सी देवेंद्र फडणवीस के बगल में लगी थी… लेकिन वो वहां पर नहीं बैठे औऱ पीछे जाकर बैठे…. वही जब शपथ लेने के लिए उठे तो पूरा पंडाल तालियों और नारों से गूंज उठा… वहीं उतनी तालियां और नारे न ही पीएम मोदी के मंच पर आने पर लगे न हीं देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के शपथ लेने पर लगे थे… तो इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है… कि शिंदे को लेकर नेताओं और विधायकों के साथ आम जनता में कितना क्रेज है…, वहीं अब जब सारी अटकलों पर विराम लग गया है… और सीएम पद का शपथ ग्रहण हो गया है…. लेकिन साथियों के बीच मतभेद बना हुआ है… वहीं एकनाथ शिंदे को अगर मन चाहा विभाग और मंत्री पद नहीं मिलता है… तो आने वाले समय में महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ अलग ही माहौल देखने को मिलेगा….

बता दें कि देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद पर आसीन होते ही कई मुद्दो पर जूझना पड़ सकता है…. आपको बता दें कि मुख्यमंत्री के तौर पर देवेंद्र फडणवीस का पहला कार्यकाल अच्छा माना जाता है…. दो हजार चौदह में जब वो पहली बार मुख्यमंत्री बने थे…. तो राज्य में प्रशासन चलाने का उन्हें कोई अनुभव नहीं था…. लेकिन उन्होंने इस कार्यकाल में कई अहम फैसले लिए…. इनमें महाराष्ट्र के किसानों को साल भर पानी मुहैया कराने के लिए जलयुक्त शिविर योजना… और मुंबई-नागपुर को जोड़ने के लिए पचपन हजार करोड़ रुपये की एक्सप्रेस परियोजना शामिल है…. बता दें कि सात सौ एक किलोमीटर के इस रूट के किनारे कृषि और सहायक उद्योगों से जुड़े अट्ठारह शहर विकसित किए गए….. ये एक्सप्रेस-वे दस जिलों से प्रत्यक्ष… और चौदह जिलों से अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हैं…. कहा जा रहा है कि इस एक्सप्रेस-वे से इन ज़िलों के विकास को गति मिली है…. देवेंद्र फडणवीस ने अपने इस कार्यकाल में मुंबई में मेट्रो नेटवर्क के विस्तार को मंजूरी दी थी….. उस दौरान मुंबई और मुंबई महानगर क्षेत्र में तीन सौ किलोमीटर मेट्रो नेटवर्क का निर्माण किया गया…. देवेंद्र फडणवीस को अपने तीसरे कार्यकाल में भी महाराष्ट्र में विकास कार्यों पर अच्छा-खासा खर्च करना होगा….. जबकि राज्य की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है….. राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है….. साथ ही राज्य के शहरी और ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर ज्यादा है…. पूंजीगत खर्चों में कमी आई है…. और राजस्व भी घटता जा रहा है….

वहीं देवेंद्र फडणवीस और उनकी सरकार के लिए महाराष्ट्र में मराठा रिजर्वेशन बड़ी चुनौती साबित हो सकता है….. क्योंकि मराठा आंदोलन के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रहे…. मनोज जरांगे पाटिल को चुनाव के दौरान ये वादा किया गया कि राज्य में मराठा आरक्षण लागू किया जाएगा….. जिसको लेकर जरांगे ने कहा था कि अगर बीजेपी ने मराठा आरक्षण लागू करने का वादा नहीं किया तो वो चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे….. कहा जा रहा है कि आश्वासन मिलने बाद जरांगे ने ये इरादा छोड़ दिया…. हालांकि उन्हें विश्वास में लेने में एकनाथ शिंदे की भूमिका ज्यादा अहम बताई जाती है…. लेकिन मराठा आरक्षण लागू करने को लेकर राजनीतिक पेच भी कम नहीं हैं….. आपको बता दें कि मराठा आरक्षण के मुद्दे पर ओबीसी समुदाय में असंतोष दिख रहा है….. ओबीसी समुदाय के लोगों को लग रहा है…. कि उनके आरक्षण का हिस्सा काट कर मराठों को दे दिया जाएगा….. वहीं फडणवीस के सामने दोनों समुदायों की मांगों के बीच संतुलन बिठाना एक बड़ी चुनौती होगी…. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि रिजर्वेशन का मुद्दा देवेंद्र फडणवीस को परेशान नहीं करेगा….

महाराष्ट्र में बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) के गठबंधन ‘महायुति’ को चुनाव जिताने में ‘लाडकी बहिन’ योजना की बड़ी भूमिका मानी जा रही है…. इस योजना के तहत इक्कीस से पैंसठ साल की उम्र की उन महिलाओं को हर महीने पंद्रह सौ रुपये दिए जा रहे हैं….. जिनकी पारिवारिक सालाना आय ढाई लाख रुपये से कम है…. योजना के तहत मिलने वाली रकम को बढ़ा कर इक्कीस सौ रुपये करने का वादा किया गया है….. लेकिन पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र की वित्तीय सेहत कमजोर हुई है….. राज्य से एफडीआई बाहर गया है…. कुछ परियोजनाएं गुजरात शिफ्ट हो गई हैं… और राजस्व कम हो गया है…. राज्य में किसानों की आय घटी है…. उनमें असंतोष दिखा है…. लिहाजा ये देखना दिलचस्प होगा कि फडणवीस सरकार कल्याणकारी स्कीमों…. और राज्य के वित्तीय अनुशासन में कितना संतुलन बिठा पाती है….. महाराष्ट्र में सरकार का कर्जा बढ़कर सात लाख बयासी हजार करोड़ रुपये हो गया है….. महायुति सरकार की लोक कल्याणकारी स्कीमों की वजह से इस पर नब्बे हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा…. वहीं राज्य की कई जातियों के लिए चलाई जाने वाली स्कीमों और किसानों का कर्ज़ माफ़ी का खर्चा दो लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है….. इसलिए फडणवीस सरकार के लिए इन स्कीमों के खर्च…. और राज्यों की आय के बीच संतुलन बिठाना एक बड़ी चुनौती होगी….

वहीं प्याज, गन्ना, सोयाबीन, कपास और अंगूर जैसी कई फसलें हैं… जिनमें महाराष्ट्र की बड़ी भागदारी है….. लेकिन इन फसलों की सही कीमत न मिलने से राज्य के किसानों में नाराजगी दिखी है….. प्याज निर्यात पर पाबंदी की वजह से लोकसभा चुनाव में बीजेपी को काफी नुक़सान उठाना पड़ा….. इस नाराजगी की वजह से ‘महायुति’ गठबंधन को प्याज की पैदावार वाले इलाकों में बारह सीटों का नुकसान झेलना पड़ा था….. सोयाबीन और कपास किसानों का कहना था कि उनकी फसलों के सही दाम नहीं मिल रहे हैं….. लिहाजा विपक्षी गठबंधन ‘महाविकास अघाड़ी’ के साथ ही ‘महायुति’ गठबंधन ने भी किसानों का कर्ज़ माफ़ करने का चुनावी वादा किया था…. किसानों को संतुष्ट रखना फडणवीस सरकार के लिए एक बड़ा चैलेंज होगा….. आपको बता दें कि किसानों से किए गए वादे पूरा करना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है… अगर किसानों से किए गए वादे नहीं पूरे किए जाते हैं तो आने वाले समय में बीजेपी की राह और मुश्किल हो जाएगी… महाराष्ट्र की सत्ता में आने के लिए बीजेपी ने चुनाव से पहले जिन रेवड़ियों को जनता के बीच में बांटने का काम किया है… उसको लगातार चलाना भी एक बड़ी चुनौती है… क्योंकि राज्य पर पहले से ही कर्जा है… और इन स्कीमों को पूरा करने में सरकार का राजकोषीय घाटा और बढ़ता रहेगा… और जनता कर्ज में डूबती चली जाएगी… महंगाई, बेरोजगारी लगातार बढ़ती ही जाएगी….

विधानसभा चुनाव में हार के बाद शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने अपना पूरा ध्यान बृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव पर केंद्रित किया है… बीएमसी देश की सबसे धनी महानगरपालिका है…. और इसका बजट देश के कई छोटे राज्यों के बजट से भी ज्यादा है…. महानगरपालिका पर लंबे समय तक शिवसेना का कब्जा रहा है…. इसलिए बीजेपी के सामने इस बार बीएमसी चुनाव में उद्धव ठाकरे गुट को हराना एक बड़ा चैलेंज होगा….. बता दें कि दो हजार सत्रह  के महानगरपालिका चुनाव में शिवसेना सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी….. इसके बाद सबसे ज्यादा सीटें बीजेपी की थी…. वहीं अपने तीसरे कार्यकाल में फडणवीस के सामने बड़ी राजनीतिक चुनौतियां भी होंगी…. एकनाथ शिंदे को सीएम न बनाए जाने से शिवसेना (शिंदे गुट) में असंतोष के संकेत दिखे हैं…. इसलिए देवेंद्र फडणवीस को शिंदे गुट के साथ काफी तालमेल बिठा कर काम करना होगा…. दूसरी ओर महात्वाकांक्षी समझे जाने वाले अजित पवार के साथ भी उन्हें संतुलन बनाए रखना होगा…. वहीं चुनाव में हार का सामना करने के बाद महाविकास अघाड़ी में शामिल कांग्रेस, एनसीपीसी (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) भी आक्रामक रुख़ अख्तियार करेंगे….

 

 

 

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