इस पौधे से भी कम हो सकती है शरीर में इंफ्लेमेशन, पतंजलि की रिसर्च
शरीर में लंबे समय तक बनी रहने वाली सूजन यानी इंफ्लेमेशन कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है। हार्ट डिजीज, गठिया और कई अन्य समस्याएं इससे जुड़ी हो सकती हैं।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः शरीर में लंबे समय तक बनी रहने वाली सूजन यानी इंफ्लेमेशन कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है। हार्ट डिजीज, गठिया और कई अन्य समस्याएं इससे जुड़ी हो सकती हैं। हालांकि एलोपैथी में सूजन को कम करने के लिए दवांए दी जाती हैं, लेकिन इनके साइड इफेक्ट्स भी देखने को मिलते हैं।
इसी संदर्भ में पंतजलि अनुसंधान प्रतिष्ठान, हरिद्वारकी एक हालिया रिसर्च में दावा किया गया है कि बरडॅाक नामक पौधे में पाया जाने वाला अकर्टीजेनिन शरीर में मौजूद सूजन को प्रकृतिक रूप से कम कर सकता है। रिसर्च के अनुसार आर्क्टीजेनिन एक प्रकृतिक यौगिक है जो इंफ्लेमेशन को कम करने की क्षमता रखता है। यह न सिर्फ सूजन को कंट्रोल करता है, बल्कि इससे जुड़ी बीमारियों को भी रोकने में मदद करता है
बरडॉक पौधा भारत के कई इलाकों में आसानी से पाया जाता है और पारंपरिक रूप से इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता रहा है। अब वैज्ञानिक स्तर पर भी इसके गुणों की पुष्टि हो रही है।पतंजलि हर्बल अनुसंधान विभाग द्वारा की गई इस रिसर्च में बरडॉक को एक संभावित प्राकृतिक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, जो एलोपैथिक दवाओं के बिना भी इंफ्लेमेशन को कंट्रोल करने में सहायक हो सकता है।
इस रिसर्च को गैविन पब्लिशर्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है. इस रिसर्च के प्रमुख शोधकर्ता पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण हैं. रिसर्च में बताया गया है कि आर्क्टीजेनिन एक प्राकृतिक लिग्निन यौगिक है जो कई पौधों, विशेषकर बरडॉक (Arctium lappa) में पाया जाता है. इसके अलावा यह सौसल्सुरिया इन्वोलुक्राटा जैसे पौधों में भी मिलता है. आर्क्टीजेनिन में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-वायरल गुण होतेहैं. इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण भी होते हैं जो शरीर में मौजूद फ्री रेडिक्लस को निष्क्रिय कर सकते हैं शरीर में सेल्स को तेजी से
बढ़ने से रोक सकते हैं.
इंफ्लेमेशन शरीर के लिए कैसे है खतरनाक?
इंफ्लेमेशन ( सूजन) शरीर में अगर लंबे समय तक बनी रहती है तो यह गठिया, अल्जाइमर, पार्किसंस, हार्ट डिजीज और न्यूरो डिजनरेटिव डिसऑर्डर का कारण बन सकती है. रिसर्च में पता चला है कि आर्क्टिजेनिन शरीर में एनएफ-κबी को रोकता है, जिससे सूजन कम होती है. आर्क्टिजेनिन प्रो-इंफ्लेमेटरी साइटोकाइन्स को भी कम करता है. यह ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को भी कम करता है. यह कई प्रकार के एंजायइमों को भी कंट्रोल करता है. इससे शरीर में इंफ्लेमेशन कम होने लगती. इस कम होने से जोड़ों में दर्द में राहत मिलती है और न्यूरो डिजनरेटिव डिसऑर्डर का रिस्क भी कम होता है.
भविष्य की दिशा क्या है?
आपको बता दें,कि रिसर्च में कहा गया है कि यह शुरुआती परिणाम है. फिलहाल यह रिसर्च चूहों पर की गई है. ऐसे में अभी आर्क्टिजेनिन के फायदो को लेकर बड़े स्तर पर क्लिनिकल ट्रायल करने की जरूरत है. आर्क्टिजेनिन के फार्माकोकाइनेटिक्स पर भी अधिक रिसर्च करने की आवश्यकता है. इसकी के साथ इसकी सुरक्षा प्रोफ़ाइल और इंसानों में इसके प्रभाव के बारे में और अधिक जानने की जरूरत है.


