समय का पहिया घूमा, ‘लाल सलाम’ से गूंजा जेएनयू कैंपस

- एबीवीपी पर भारी पड़ा लेफ्ट जेएनयू छात्र संघ में फिर परचम
- उम्मीदवारों ने भारत ‘जोड़ो यात्रा’ के सहारे लड़ा था चुनाव
- अध्यक्ष समेत चार पदों पर लेफ्ट उम्मीदवार जीते
- एबीवीपी की नहीं चली हिंदूवादी राजनीतिक तिकड़मबाजी
- दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता ने लगाया था एबीवीपी की जीत के लिए पूरा जोर
- राहुल गांधी की छात्र संसद का दिखा असर
- प्रेसीडेंशियल डिबेट में महंगाई, रोजगार और अर्थव्यवस्था पर धनंजय ने मांगे थे वोट
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। जब दिल्ली की आबो हवा में भगवा परचम पूरी शिद्दत के साथ लहरा रहा हो तब ऐसे समय में लेफ्ट की लाल लहर में दिल्ली का डूब जाना महज संयोग नहीं छात्रों का प्रयोग लगता है। जी हां जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जेएनयू छात्र संघ चुनाव में आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विधायर्थी परिषद को करारी हार मिली है और वहां लेफ्ट का लाल सलाम गूंजा हैं। देर रात आये चुनावी परिणाम में अध्यक्ष पद पर लेफ्ट के धनंजय ने एबीवीपी के उमेश चंद्र अजमीरा को हरा दिया है।
लेफ्ट के अविजीत घोष उपाध्यक्ष पद के लिए चुने गए। सचिव पद पर लेफ्ट के उम्मीदवार मोहम्मद साजिद ने जीत दर्ज की है। गौरतलब है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने भी जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी की जीत के लिए पूरा जोर लगाया था। उन्हें मुख्यमंत्री यही सोच कर बनाया गया था कि जेएनयू में एबीवीपी को निर्णायक बढ़त मिले। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और एबीवीपी चारो खाने चित हो गयी। सूत्रों की माने तो रेखा गुप्ता की राजनीति को जेएनयू चुनाव में मिली हार आने वाले समय में प्रभावित कर सकती है।
जीत का अंतर आधे से ज्यादा
अध्यक्ष पद पर चुनाव जीते धनंजय को 2598 वोट मिले हैं जबकि दूसरे नंबर पर एबीवीपी के उमेश चन्द्र अजमीरा रहे। उन्हें कुल 1676 वोट मिले। वाइस प्रेसिडेंट के पद पर लेफ्ट के कैंडिडेट अविजीत घोष ने बाजी मारी है उन्हें 2409 वोट मिले जबकि रनरअप रही एबीवीपी की दीपिका शर्मा को कुल 1482 वोटों से ही संतोष करना पड़ा।
‘जीत कैंम्पस इवेंट नहीं’
जेएनयू में वामपंथ की यह जीत प्रतीकात्मक है और यह दर्शाती है कि देश में अब भी सोचने वाले लोग बचे हैं। यह जीत उन विचारों की जीत है जो भारत को समावेशी, प्रगतिशील और लोकतांत्रिक बनाना चाहतें है। छात्रों का स्पष्ट संदेश। यह इस चुनाव को महज़ एक कैम्पस इवेंट नहीं बल्कि भारत के लोकतंत्र का महत्वपूर्ण पड़ाव बना रहा हैं।
इस बार हुई रिकार्ड वोटिंग
जेएनयू में 2019 में 67.9 प्रतिशत, 2018 में 67.8 प्रतिशत, 2016-17 में 59 प्रतिशत, 2015 में 55 प्रतिशत, 2013-14 में 55 प्रतिशत और 2012 में 60 प्रतिशत मतदान हुआ था। जेएनयूएसयू के केंद्रीय पैनल के लिए कुल 19 उम्मीदवार मैदान में थे, वहीं स्कूल काउंसिलर के लिए 42 लोगों ने किस्मत आजमाई। छात्र संघ अध्यक्ष पद के लिए आठ उम्मीदवारों के बीच मुकाबला था।
रोजगार के संकट पर पड़े वोट
ढोल की थाप के साथ जय भीम और लाल सलाम के नारें इस बार कैंम्पस में जमकर गूंजे। छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर विजय दर्ज कराने वाले धनंजय ने अपने पहले भाषण में कहा था कि हम केवल छात्र नहीं हैं हम देश के भविष्य हैं। यदि हमारी आवाज़ को आज कुचल दिया गया तो कल संसद में सन्नाटा होगा। इस चुनाव में किसानों की आत्महत्या, अनुसूचित जातियों पर हो रहे अत्याचार, विश्वविद्यालयों में बढ़ती फीस, और रोजगार के संकट जैसे मुद्दे उठाए गए। इस बार का जेएनयू चुनाव इसलिए भी खास रहा कि इस बार से ज्यादा वोटिंग चुनावी इतिहास में कभी नहीं हुई। इस बार 73 फीसदी मतदान हुआ। जेएनयू चुनाव दो चरणों में हुए। 7,700 से ज्यादा रजिस्टर्ड मतदाताओं ने गुप्त मतदान के जरिए अपना वोट डाला। मतदान के लिए विभिन्न अध्ययन केंद्रों में कुल 17 मतदान केंद्र बनाए गए थे।
देश की राजनीति पर पड़ेगा असर
जेएनयू चुनाव परिणामों का असर आने वाले समय में देश की राजनीति पर पडऩा तय है। राजनीतिक पार्टियों को यह समझना होगा कि छात्र और युवा वर्ग केवल राष्ट्रवाद, मंदिर/मस्जिद या विदेश नीति से नहीं, बल्कि शिक्षा, आर्थिक न्याय, और सामाजिक समावेशिता जैसे मुद्दे चाहता है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, या आम आदमी पार्टी—सभी को अपनी रणनीति में इन्हें हर हाल में शामिल करना होगा। भाजपा के लिए यह एक चेतावनी है कि विचारधारा थोपी नहीं जा सकती। उसे अर्जित करना पड़ता है। और यदि कैंपस के युवाओं ने आपका विचार नकार दिया, तो भविष्य में संसद और विधानसभाओं में भी आपकी राह आसान नहीं होगी।
एनडीए सरकार को झटका, ईडी को फटकार
- सोनिया गांधी व राहुल गांधी को नोटिस जारी करने से कोर्ट ने किया इनकार
- नेशनल हेराल्ड मामला : अदालत ने 2 मई को तय की अगली सुनवाई
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अन्य को नोटिस जारी करने से फिलहाल इनकार कर दिया है। अदालत ने अगली सुनवाई 2 मई को तय की है। अदालत ने ईडी से और अधिक प्रासंगिक दस्तावेज लाने और खामियों को दूर करने को कहा है। प्रवर्तन निदेशालय ने तर्क दिया कि नए कानूनी प्रावधानों के तहत, आरोपी को सुने बिना शिकायत (आरोप पत्र) पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता। ईडी ने अदालत से आग्रह किया कि हम नहीं चाहते कि यह आदेश लंबा खिंचे। नोटिस जारी किया जाए।
हालांकि, न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि अदालत को पहले इस तरह के नोटिस जारी करने की आवश्यकता के बारे में आश्वस्त होना चाहिए, उन्होंने टिप्पणी कि वह संतुष्ट होने तक ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकता। जज ने कहा अदालत को मामले में कमियों को दूर करना चाहिए। अहलमद (कोर्ट रिकॉर्ड कीपर) द्वारा बताए गए आरोपपत्र में गायब दस्तावेजों को उजागर करते हुए, जज ने ईडी को आवश्यक दस्तावेज जमा करने का निर्देश दिया।
अदालत के धैर्य की परीक्षा न लें दिल्ली सरकार और डीडीए
जिला न्यायिक अधिकारियों के लिए सरकारी आवासों के निर्माण में हो रही देरी पर हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को आड़े हाथ लिया है। दिल्ली सरकार और डीडीए को फटकार लगाते हुए चेतावनी दी कि अदालत के धैर्य की परीक्षा न लें। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि अदालत के पूर्व के अनुरोध पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और अदालत को वस्तुत: भीख मांगनी पड़ती है। उक्त टिप्पणी के साथ अदालत ने आयुक्त (भूमि प्रबंधन) को न्यायिक अधिकारियों के लिए वैकल्पिक फ्लैटों की उपलब्धता सहित उसके आदेशों के अनुपालन के लिए उठाए गए कदमों पर एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। साथ ही डीडीए के निदेशक (संस्थागत भूमि) को मई में होने वाली अगली सुनवाई में उपस्थित रहने को कहा।




