Gujrat में बढ़ाई गई UCC की समय सीमा, सरकार ने एक महीने का दिया Extension
गुजरात में यूसीसी की बढ़ाई गई समय सीमा... गुजरात सरकार ने एक महीने का दिया एक्सटेंशन.... 4 फरवरी को गठित की गई थी 5 सदस्यों की टीम...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात में समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में एक नया मोड़ आया है……. गुजरात सरकार ने हाल ही में UCC ड्राफ्ट तैयार करने वाली समिति की समय सीमा को 45 दिनों के लिए और बढ़ा दिया है……. इस समिति का गठन 4 फरवरी 2025 को किया गया था…… जिसको शुरू में 45 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी……. लेकिन अब इसकी समय सीमा बढ़ाकर जून 2025 तक कर दी गई है…… इस कदम ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है……. बल्कि विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इसे बीजेपी की रणनीति पर सवाल उठाने का अवसर बना लिया है……. आलोचकों का कहना है कि यह कदम बीजेपी की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है……. जिसका उद्देश्य धार्मिक और सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देना…… और स्थानीय निकाय चुनावों से पहले जनता का ध्यान भटकाना है……
आपको बता दें कि गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने 4 फरवरी 2025 को घोषणा की थी कि……. UCC के लिए एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया जा रहा है……. जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना देसाई करेंगी…….. इस समिति में रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सी.एल. मीणा, वरिष्ठ वकील आर.सी. कोडेकर, शिक्षाविद् दक्षेश ठाकर….. और सामाजिक कार्यकर्ता गीता श्रॉफ शामिल हैं……. समिति का मुख्य कार्य गुजरात में UCC की आवश्यकता का आकलन करना…… और इसके लिए एक ड्राफ्ट तैयार करना है…… जिसको लेकर मुख्यमंत्री ने दावा किया कि यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समान अधिकारों के दृष्टिकोण को लागू करने की दिशा में उठाया गया है……. समिति को विभिन्न समुदायों, धार्मिक नेताओं, और सामाजिक संगठनों से सलाह-मशविरा करके एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया गया है……..
बता दें कि 3 मार्च 2025 को गुजरात सरकार ने घोषणा की कि UCC समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए अतिरिक्त 45 दिन का समय दिया गया है…… इस फैसले की घोषणा के साथ ही समिति ने अपनी परामर्श प्रक्रिया शुरू कर दी है…… समिति ने गांधीनगर में अपनी पहली बैठक आयोजित की, जिसमें जैन, हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, और स्वामीनारायण समुदायों के आध्यात्मिक नेताओं के साथ-साथ कांग्रेस, बीजेपी…… और बहुजन समाज पार्टी के प्रतिनिधियों से मुलाकात की……. इसके अलावा, डॉक्टरों, वकीलों, और इंजीनियरों जैसे पेशेवरों से भी सुझाव लिए गए……. समिति ने एक ऑनलाइन पोर्टल (http://uccgujarat.in) भी लॉन्च किया है…… जहां लोग अपने सुझाव दर्ज कर सकते हैं……
हालांकि, समय सीमा बढ़ाने का यह कदम कई सवाल खड़े करता है……. आलोचकों का कहना है कि बीजेपी सरकार ने यह निर्णय इसलिए लिया…….. क्योंकि वह UCC को लागू करने के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं कर पाई है……. कुछ का मानना है कि यह कदम स्थानीय निकाय चुनावों से पहले जनता का ध्यान बुनियादी मुद्दों जैसे बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा से हटाने की रणनीति का हिस्सा है……..
वहीं विपक्षी दलों ने इस कदम को बीजेपी की विभाजनकारी राजनीति का हिस्सा करार दिया है…… कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार बुनियादी मुद्दों जैसे महंगाई और बेरोजगारी से ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है…… UCC समिति का गठन और अब डेडलाइन का विस्तार सिर्फ एक राजनीतिक नाटक है…… और उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर बीजेपी वास्तव में समानता के लिए प्रतिबद्ध है…… तो वह शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में समान नीतियां क्यों नहीं ला रही है……
आम आदमी पार्टी के गुजरात प्रमुख इसुदान गढ़वी ने भी बीजेपी पर निशाना साधा….. और उन्होंने कहा कि UCC का मुद्दा हर बार चुनाव से पहले उठाया जाता है……. गुजरात में 27 आदिवासी सीटें हैं……. और बीजेपी को डर है कि अगर UCC लागू हुआ तो आदिवासी समुदाय के रीति-रिवाजों पर असर पड़ेगा……. जिससे उनका वोट बैंक प्रभावित होगा…… गढ़वी ने यह भी दावा किया कि बीजेपी इस मुद्दे को हिंदू-मुस्लिम के चश्मे से देख रही है……. जो देश की एकता के लिए खतरनाक है…….
आपको बता दें कि कांग्रेस विधायक इमरान खेड़ावाला ने समिति में मुस्लिम समुदाय के धार्मिक नेताओं को शामिल न करने पर सवाल उठाए…… और उन्होंने कहा कि UCC लागू करने वाली समिति में सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए……. बीजेपी की मंशा साफ है कि वह इस मुद्दे को धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल करना चाहती है…..
UCC को लेकर सबसे ज्यादा चिंता आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों में देखी जा रही है…… आप विधायक चैतर वसावा ने समिति के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि आदिवासी समुदायों की परंपराएं और रीति-रिवाज UCC के दायरे में आने से नष्ट हो सकते हैं…… और उन्होंने मांग की कि आदिवासियों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जाए……. वसावा ने कहा कि हम संवाद के लिए तैयार हैं……. लेकिन अगर आदिवासियों को UCC में शामिल किया गया…….. तो हम सड़क से लेकर विधानसभा तक विरोध करेंगे…..
मुस्लिम समुदाय के नेताओं ने भी UCC को लेकर अपनी आपत्तियां दर्ज की हैं……. गुजरात के मुस्लिम वकील संघ के संयोजक अरिफ अंसारी ने कहा कि जब बीजेपी पॉलिगैमी (बहुविवाह) को लेकर मुस्लिम समुदाय पर निशाना साधती है……. तो उसे यह भी देखना चाहिए कि यह प्रथा अन्य समुदायों में भी प्रचलित है……. अगर एक समुदाय को इसकी इजाजत है….. और दूसरे को नहीं…… तो यह समान नागरिक संहिता नहीं है…….
गुजरात की UCC समिति का गठन उत्तराखंड के मॉडल से प्रेरित है…… जहां 27 जनवरी 2025 को UCC लागू किया गया था…… उत्तराखंड में लागू UCC में शादी और तलाक के लिए अनिवार्य पंजीकरण, लिव-इन रिलेशनशिप्स को नियंत्रित करने वाले नियम……. और सभी समुदायों के लिए समान विरासत अधिकार जैसे प्रावधान शामिल हैं……. हालांकि, उत्तराखंड के UCC की कुछ शर्तों, जैसे लिव-इन रिलेशनशिप्स का अनिवार्य पंजीकरण की आलोचना हुई है….. वहीं आलोचकों का कहना है कि यह निजी स्वतंत्रता पर हमला है…….
गुजरात के गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने दावा किया कि गुजरात का UCC भी उत्तराखंड की तरह आदिवासी परंपराओं को संरक्षित करेगा……. हालांकि विपक्ष का कहना है कि यह दावा खोखला है……. क्योंकि बीजेपी ने अब तक इस बात का कोई ठोस खाका पेश नहीं किया है कि आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों की परंपराएं कैसे सुरक्षित रहेंगी……
UCC को लेकर बीजेपी की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं…… यह पहली बार नहीं है जब बीजेपी ने UCC का मुद्दा उठाया है……. 2022 के गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले भी बीजेपी ने UCC को अपने घोषणापत्र में शामिल किया था…… और एक समिति गठित करने की घोषणा की थी……. आलोचकों का कहना है कि बीजेपी इस मुद्दे को बार-बार चुनावी मौसम में उठाती है……. ताकि धार्मिक और सामुदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिले…….
कांग्रेस नेता अमित छवड़ा ने कहा कि गुजरात में 14फीसदी आदिवासी आबादी है……. UCC से उनके रीति-रिवाज, धार्मिक संस्कार…….. और विवाह प्रणाली प्रभावित होगी……. बीजेपी यह जानती है……. फिर भी वह इस मुद्दे को उठाकर वोट बैंक की राजनीति कर रही है…… और उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संविधान कुछ समुदायों को अपनी संस्कृति…… और परंपराओं को बनाए रखने की स्वतंत्रता देता है…… और UCC इस स्वतंत्रता को छीन सकता है…….
UCC को लागू करना कानूनी और सामाजिक रूप से एक जटिल प्रक्रिया है……. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि राज्य नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा……. हालांकि, यह एक नीति निर्देशक सिद्धांत है….. जो बाध्यकारी नहीं है……. कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि UCC लागू करने से पहले सभी समुदायों के साथ व्यापक विचार-विमर्श जरूरी है……
आपको बता दें कि नागालैंड जैसे राज्यों में UCC के खिलाफ भारी विरोध देखा गया है……. जहां संगठनों ने इसे स्थानीय परंपराओं के लिए खतरा बताया है…… गुजरात में भी खासकर आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों में UCC के प्रति संशय बना हुआ है……. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर UCC को जबरदस्ती लागू किया गया……. तो यह सामाजिक तनाव को बढ़ा सकता है…….
गुजरात में UCC ड्राफ्ट समिति की समय सीमा बढ़ाने का फैसला कई सवाल खड़े करता है……. क्या यह बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है…… जिसका उद्देश्य धार्मिक ध्रुवीकरण और वोट बैंक की राजनीति है…….. क्या सरकार वास्तव में सभी समुदायों की परंपराओं को संरक्षित करने में सक्षम होगी……. जैसा कि उसका दावा है…… विपक्ष और सामाजिक संगठनों की चिंताएं जायज हैं…… क्योंकि UCC जैसे संवेदनशील मुद्दे को लागू करने से पहले व्यापक सहमति और विचार-विमर्श जरूरी है…….



