एलजी ने किया लोकतंत्र का अपमान: सुरिंदर चौधरी

  • उपमुख्यमंत्री बोले- माफी मांगें उपराज्यपाल, पुलिस इतनी बेलगाम तो जिम्मेदार कौन

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी ने हाल ही की घटनाओं को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे लोकतंत्र का कत्ल बताया है। उन्होंने उमर अब्दुलल्ला के साथ हुई धक्का-मुक्की की कड़ी निंदा करते हुए इसे सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे लोकतांत्रिक संस्थान की अवमानना बताया। चौधरी ने कहा यह सिर्फ उमर अब्दुल्ला साहब की इंसल्ट नहीं है, यह पूरी जम्मू-कश्मीर विधानसभा की, यहां के लोगों की, और लोकतंत्र की बेइज्जती है। जिन लोगों ने वोट डालकर सरकार बनाई, उनका अपमान हुआ है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि एलजी की यह जिम्मेदारी है कि वे कानून-व्यवस्था पर नियंत्रण रखें और यदि पुलिस बेलगाम है तो इसके लिए जिम्मेदार भी वही हैं।
चौधरी ने मांग की कि एलजी को जम्मू-कश्मीर के लोगों, विधानसभा और सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों से माफी मांगनी चाहिए। इतिहास की चर्चा करते हुए उन्होंने 13 जुलाई 1931 की शहादतों का जिक्र किया और कहा कि वह बलिदान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ था, न कि किसी राजा या राज्य के खिलाफ। उन्होंने सवाल उठाया कि आज जिस तरह की कार्रवाई की जा रही है, क्या वह अंग्रेजों की सोच और गोडसे की विचारधारा को दर्शाती है? उन्होंने राजनीतिक दलों पर भी निशाना साधा और कहा, जो राजनीतिक पार्टियां आज चुप हैं, उन्हें जनता तय करेगी कि वे लोकतंत्र के साथ हैं या भाजपा की, बी या सी टीम हैं। चौधरी ने कहा कि यह लड़ाई किसी व्यक्ति की नहीं बल्कि एक संस्था की गरिमा की है। उमर अब्दुल्ला कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि एक मुख्यमंत्री और राजनीतिक दल के प्रमुख हैं। उनके साथ किया गया व्यवहार लोकतांत्रिक मर्यादाओं के खिलाफ है।

उर्दू की अनिवार्यता के खिलाफ भाजपा के विधायकों का प्रदर्शन

नायब तहसीलदार भर्ती परीक्षा में उर्दू भाषा को अनिवार्य किए जाने के विरोध में भाजपा के सभी विधायकों ने सोमवार को सिविल सचिवालय के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। विधायकों ने दो घंटे तक धरना दिया और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। विधायकों ने प्रदेश सरकार के आदेश को जम्मू के युवाओं के साथ खुला अन्याय और क्षेत्रीय भेदभाव करार दिया। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि यह केवल भाषा का मामला नहीं है, यह अधिकार, अवसर और समान व्यवहार का सवाल है। जम्मू-कश्मीर में उर्दू एक आधिकारिक भाषा है, लेकिन एकमात्र नहीं। जब संविधान में कई भाषाओं को मान्यता है, तो सिर्फ उर्दू को अनिवार्य क्यों बनाया गया। उन्होंने बताया कि बीजेपी इस फैसले को लेकर पहले ही लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीके आजमा चुकी है। हमने उपराज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचाई, ज्ञापन सौंपे और प्रतिनिधिमंडल मिलवाए, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। एलजी ने माना कि यह मामला राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है।

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