SIR पर SC की सुनवाई, पुराने रिकॅार्ड को रद्द किया गया
जस्टिस बागची ने कहा कि तैयारी और संक्षिप्त संशोधन ‘निर्धारित तरीके’ शब्द से परिभाषित होते हैं. समय और स्थान के संबंध में उप-धारा 3, उप-धारा 2 को तय करती है.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: सुप्रीम कोर्ट में बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची ने कहा कि उन्होंने पहले की सूचियों को रद्द नहीं किया है. वे 2003 की सूची के अस्तित्व को पहले से ही मानते हैं. 2003 को एक मील का पत्थर माना जाता है.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर निर्वाचन आयोग के 24 जून के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा कि
SIR मतदाताओं के अनुकूल है. बिहार में पहले किए गए दस्तावेजों की संख्या सात थी.अब यह 11 है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर
निर्वाचन आयोग के 24 जून के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की.
जस्टिस बागची ने कहा कि तैयारी और संक्षिप्त संशोधन ‘निर्धारित तरीके’ शब्द से परिभाषित होते हैं. समय और स्थान के संबंध में उप-धारा 3, उप-धारा 2 को तय करती है. यह चुनाव आयोग पर निर्भर करता है कि वह ‘कहां’ ऐसा करेगा. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से वह उचित समझे’ से समय (कब करेगा) का संकेत मिलता है, यह पूरी तरह से चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में है कि वे कैसे, कब विशेष संशोधन करेंगे.
उन्होंने कहा किग हम ‘निर्धारित’ शब्द पर आपकी बात जानना चाहेंगे. जब प्राथमिक विधान ‘जिस तरीके से समझा जाए’ कहता है, लेकिन अधीनस्थ विधान ऐसा नहीं कहता तो क्या यह चुनाव आयोग को नियमों की पूरी तरह से अनदेखी न करते हुए, बल्कि विशेष संशोधन की विशिष्ट आवश्यकता से निपटने के लिए नियमों में निर्धारित प्रक्रिया से कुछ और अतिरिक्त जोड़ने का विवेकाधिकार देता है?जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जो भी योग्यता आवश्यक हो, वह प्रावधान के अनुसार की जाती है. गोपाल ने कहा कि अधिनियम विशेष गहन पुनरीक्षण की बात नहीं करता. नियमों में ‘नए सिरे से’ शब्द है – जिसका अर्थ है तैयारी, पुनरीक्षण नहीं. मतदाता सूची एक बार निर्धारित होने के बाद, हमेशा निर्धारित ही रहती है.
जस्टिस बागची ने कहा कि हो सकता है कि ‘गहन’ शब्द ‘उचित समझे जाने वाले तरीके’ के आधार पर विश्लेषण के रूप में जोड़ा गया हो. जस्टिस बागची ने कहा कि उन्होंने पहले की सूचियों को रद्द नहीं किया है. वे 2003 की सूची के अस्तित्व को पहले से ही मानते हैं. 2003 को एक मील का पत्थर माना जाता है.
गोपाल ने कहा कि जैसा उचित समझा जाए का अर्थ है, क्या उप-धारा (3) चुनाव आयोग को शक्ति प्रदान करने से संबंधित है? क्या वह 2003 को वापस मिटाने के लिए इस तरह की विशाल कवायद कर सकता है? यह धारा चुनाव आयोग को ऐसा करने की अनुमति नहीं देती. क्या कानून उन्हें यह कवायद शुरू करने की अनुमति देता है? हम केवल प्रक्रिया को चुनौती नहीं दे रहे हैं. हम शुरू से ही चुनौती दे रहे हैं. वे ऐसा कभी नहीं कर सकते थे, ऐसा कभी नहीं हुआ. इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है. अगर ऐसा होने दिया गया, तो भगवान ही जाने इसका अंत कहां होगा.जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर ऐसा कभी नहीं किया जा सकता, तो उप-धारा (3) निरर्थक हो जाएगी. गोपाल शंकरनारायण की दलीलें पूरी हुईं.
सुनवाई के दौरान प्रशांतभूषण ने कहा कि अगर कोई दस्तावेज नहीं है तो हलफनामा देना होता है फॉर्म 6 में, लेकिन यहां ऐसा नहीं है. कम अवधि में एसआईआर कराने से पहली, दूसरी और तीसरी अपील का कोई मतलब नहीं रह जाता. सुप्रीम कोर्ट को ऐसी बेतुकी शक्ति को संयमित करना चाहिए.
भूषण ने कहा कि ये पहचान और जन्मस्थान के प्रमाण हैं. लाल बाबू हुसैन फैसले में स्पष्ट करते हैं कि वे इस तरह नागरिकता तय नहीं कर सकते. बड़ी संख्या में लोगों के पास एक भी दस्तावेज नहीं है. लगभग 40% लोगों के पास केवल मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र है, लेकिन कुल मिलाकर, 50% से ज्यादा लोगों के पास एक भी दस्तावेज़
नहीं है. अगर यह भी मान लें कि 10% लोगों को नोटिस दिया जाता है, तो इसका मतलब है कि प्रति निर्वाचन
क्षेत्र 30,000 लोग होंगे.
वे 20 कार्यदिवसों में सबकी सुनवाई करके फैसला कर देंगे, जब वे अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करते हैं, तो चुनौती देने का समय नहीं होता क्योंकि चुनाव होने वाले होते हैं. इस पूरी तरह से मनमाने तरीके से मतदाता सूची को अंतिम रूप देकर उन्होंने अपनी नियति पूरी कर ली है. भूषण ने 65 लाख हटाए गए लोगों की जानकारी वेबसाइट पर नहीं दिए जाने की दलील देते हुए कहा कि राहुल गांधी की प्रेसवार्ता के बाद ऐसा किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें प्रेसवार्ता के बारे में जानकारी नहीं है.
भूषण ने कहा कि वे नागरिकता पर फैसला नहीं कर सकते. वे मुद्दे को आगे बढ़ा सकते हैं, लेकिन फैसला नहीं कर सकते. राहुल गांधी द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के ठीक एक दिन बाद, चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट रोल्स में सर्च करने का विकल्प हटा दिया! जस्टिस कांत ने कहा कि हमें ऐसी किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस की जानकारी नहीं है.
जस्टिस बागची ने कहा कि वेबसाइट प्रकाशन का स्वागत है क्योंकि यह ज्यादा सुलभ है, लेकिन न्यूनतम वैधानिक आवश्यकता है. भूषण ने कहा कि अगर यह उनके लिए इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध है और इसे वेबसाइट पर डाला जा सकता है, तो उन्हें ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए? उनका कहना है कि उनके पास इसे हटाने के सटीक कारण हैं तो इसे वेबसाइट पर क्यों नहीं डाला जाना चाहिए? यह दुर्भावनापूर्ण इरादे को दर्शाता है.



