भाजपा और कांग्रेस ही बनेंगे धूरी

2024 लोक सभा चुनाव की बिछी बिसात

  • क्षेत्रीय पार्टियों पर बढ़ेगा दबाव
  • बढ़ रही है राहुल सर्वमान्यता
  • मोदी-शाह को करनी होगी कड़ी मेहनत
  • छोटे दलों को चाहिए बड़ों का साथ

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पटना। आज पटना में विपक्ष का महाबैठक हुई। लगभग 15 से ज्यादा दल इसमें शामिल हुए। सभी का मकसद 2024 में लोक सभा सीटों पर बढ़त लेकर सत्ता में आना और मोदी सरकार की विदाई करना। जिस तरह से वह एकजुट हो रहे हैं उससे कुछ उम्मीद तो है कि वे कामयबा हो सकते हैं। हालांकि जानकारों का मानना है कि अगर भाजपा से नाराज चल रहे एनडीए के कुछ दलों को भी विपक्ष अपनी ओर कर ले तो अगला चुनाव जीतना उसके लिए आसान हो सकता है। ऐसा होगा अभी इसपर कुछ बोलना जल्दबाजी होगा। पर जिस तरह से विपक्ष ने सक्रियता दिखाई उसके बाद से बीजेपी के खेमें में बेचैनी बढ़ गई तभी तो उसके नेता कांग्रेस समेत नीतीश, केजरीवाल पर हमले कर रहे हैं। खैर आगे क्या होगा ये तो जनता जनादर्न ही जाने पर इसमे कोई शक नहीं कि आगामी चुनाव बहुत ही दिलचस्प और कांटे का होने वाला है।
भाजपा जैसे-जैसे मजबूत हो रही है वैसे-वैसे ही एनडीए गठबंधन कमजोर होता जा रहा है। वहीं जहां-जहां कांगे्रस मजबूत हो रही क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिती कमजोर हो रही है। कर्नाटक जीत के बाद कांग्रेस उत्साह में है ऐसे में हो दूसरे दलों पर दबाव बना सकती है। भाजपा अपने अधिकांश पुराने साथियों की एनडीए से विदाई कर चुकी हैं। मगर 2024 के लोकसभा चुनाव में संघर्ष कड़ा होता देख भाजपा को फिर से एनडीए के साथियों की याद आने लगी है। इसीलिये भाजपा फिर अपने पुराने साथियों को एनडीए में लाने का प्रयास कर रही है। लेकिन भाजपा की फितरत से वाफिक दल शायद ही फिर एनडीए में लौटें। फिलहाल तो ऐसा ही लग रहा है।

कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए बना था एनडीए

कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, बालासाहेब ठाकरे, जॉर्ज फर्नांडीस, शरद यादव, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, जे. जयललिता, प्रकाश सिंह बादल, शिबू सोरेन, ममता बनर्जी और प्रमोद महाजन जैसे दिग्गज नेताओं ने एनडीए का गठन किया था। 1998 में कांग्रेस से मुकाबला करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस विरोधी राजनीतिक दलों को एक छतरी के नीचे लाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का गठन किया था। जॉर्ज फर्नांडिस को इसका संयोजक बनाया गया था। 1998 के लोकसभा चुनाव से पूर्व गठित एनडीए में शामिल 16 दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बना ली थी। जो मात्र एक साल बाद ही अन्नाद्रमुक के समर्थन वापस लेने से गिर गई थी।

कुछ दल फिर भाजपा से जुड़ने को तैयार

तेलुगू देशम पार्टी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की जनता दल (सेकुलर), बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, हरियाणा जनहित कांग्रेस, तमिलनाडु की डीएमडीके, बिहार में जीतन राम मांझी व ओपी राजभर की सुभासपा फिर बीजेपी की और झुक गई हैं। अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात, गोवा, हरियाणा, मध्य प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं। वहीं सिक्क्मि में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के प्रेम सिंह तमांग, नागालैंड में नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के नेफ्यू रियो, मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी के कानराड संगमा, महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे) गुट के एकनाथ शिंदे, पुडुचेरी में अखिल भारतीय एनआर कांग्रेस के एन रंगास्वामी मुख्यमंत्री हैं।

कईयों ने छोड़ा भाजपा का साथ

कहने को तो केंद्र में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन की सरकार चल रही है। मगर सरकार में शामिल दलों की सूची देखें तो एनडीए के नाम पर इक्का-दुक्का छोटे दलों को छोडक़र कोई भी बड़ी पार्टी केंद्र सरकार में शामिल नहीं है। कभी देश के अधिकांश बड़े दल एनडीए का हिस्सा होते थे। मगर आज स्थिति उसके उलट हो गई है। अब एनडीए नाम मात्र का रह गया है। 1999 में फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी जो 2004 तक चली थी। गठन के समय एनडीए में छोटे-बड़े कुल 16 राजनीतिक दल शामिल थे। 1999 के चुनाव में 21 दल, 2004 में 12 दल, 2009 में 8 दल, 2014 में 23 दल व 2019 में 20 राजनीतिक दल एनडीए में शामिल होकर एक साथ चुनाव लड़े थे। मगर अब एनडीए की स्थिति बहुत कमजोर हो गई है। एनडीए में शामिल अधिकांश बड़ेे राजनीतिक दल भाजपा से गठबंधन तोड़ कर अलग हो गए हैं। वर्तमान समय में एनडीए में छोटे बड़े मिलाकर कुल 13 राजनीतिक दल शामिल हैं। जसिमें भी बहुत-सी पार्टियां नाम मात्र की ही हैं। एनडीए के कुनबे की बात करें तो इसमें भाजपा के अलावा अपना दल (सोनेलाल), ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन, नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, नेशनल पीपुल्स पार्टी, मिजो नेशनल फ्रंट, नागा पीपुल्स फ्रंट, लोक जनशक्ति पार्टी, शिवसेना (शिंदे), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, अखिल भारतीय एनआर कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, पीएमके, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) जैसी पार्टियां शामिल हैं।

2019 में बिखरा एनडीए

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद शिरोमणि अकाली दल, जनता दल (यूनाइटेड), शिवसेना, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी जैसे कई दलों ने भाजपा का साथ छोड़ दिया है। एनडीए छोडऩे वाले सभी दलों ने भाजपा नेतृत्व पर आरोप लगाया कि वह अपनी मनमानी करता है। एनडीए गठबंधन नाम मात्र का रह गया है। सारे फैसले भाजपा नेतृत्व ही करता है। 2019 में शिवसेना ने एनडीए में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। मगर बाद में राज्य विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के पद को लेकर विवाद होने के बाद शिवसेना ने एनडीए छोडक़र राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में महा विकास आघाडी बनाकर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार बना ली। हालांकि भाजपा ने शिवसेना में ही फूट डलवा कर एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनवा दिया। इसी तरह बिहार में मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी के तीनों विधायकों को तोडक़र भाजपा में विलय करा लिया। उत्तर प्रदेश में भी ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी एनडीए से बाहर निकल गई थी। कभी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की द्रमूक, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र  समिति, दूर जा चुकी हैं।

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