उत्तराखंड में भाजपा के लिए तैयार हो रही नई मुसीबत
नई दिल्ली। उत्तराखंड भाजपा एक और बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के स्थान पर किसी और को जिम्मेदारी दे सकती है। इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी को मदन कौशिक के साथ-साथ एक और कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करना चाहिए। माना जा रहा है कि तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे बीजेपी का हाथ है। भाजपा के भीतर दो-दो सीएम बदले गए, वहीं कांग्रेस ने अप्रत्याशित रणनीति अपनाई और एक के बजाय पांच अध्यक्ष बना दिए। इसमें भी कांग्रेस ने जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों का ध्यान रखा है। तराई में पंजाबी समुदाय का बहुमत होने के कारण कांग्रेस ने पूर्व कैबिनेट मंत्री तिलकराज बेहड़ को उधमसिंह नगर से कार्यकारी अध्यक्ष बनाया।
इसके साथ ही ब्राह्मण चेहरा रहे युवा नेता भुवन कापरी को मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की विधानसभा सीट खटीमा से कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। इसी तरह कुमाऊं से ठाकुर फेस रंजीत रावत, गढ़वाल से एससी फेस प्रो जीतराम को भी कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस ने गढ़वाल से ब्राह्मण चेहरे गणेश गोदियाल को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी। भाजपा में जाति और क्षेत्रीय संतुलन अब उतना सटीक नहीं रह गया है, जितना कांग्रेस में है।
हरिद्वार सीट से विधायक और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक मैदान मेें हैं, पहाड़ में उनकी इतनी स्वीकार्यता नहीं है। यह कमी भाजपा संगठन के भीतर ही महसूस की गई है। इस बीच तीसरे सीएम पुष्कर धामी का भी भले ही पहाड़ में जन्म हो, लेकिन उनके काम करने की जगह मैदान की खटीमा सीट रही है। इस बीच हरिद्वार से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक को भी केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो कुमाऊं के नैनीताल से सांसद अजय भट को केंद्र में राज्यमंत्री बनाया गया। इससे गढ़वाल, कुमाऊं, मैदान, पहाड़ में भाजपा की राजनीतिक परंपरा में असंतुलन पैदा हो गया। कांग्रेस की रणनीति के बाद इस असंतुलन की हवा इतनी तेज हो गई कि बीजेपी में अध्यक्ष बदलने की चर्चा ने रफ्तार पकड़ ली।
इसी साल मार्च में उत्तराखंड में जब भाजपा ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया तो उनके साथ ही प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत को संगठन में भी बदलाव कर कैबिनेट मंत्री बनाया गया। उनके स्थान पर मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कौशिक को शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय छोडऩा पड़ा। हालांकि कौशिक अभी भी इस बदलाव से खुश नहीं थे, लेकिन उन्हें पार्टी नेतृत्व ने कायल कर दिया। मदन कौशिक को अध्यक्ष बनाने के पीछे भाजपा का मकसद क्षेत्र के मतदाताओं और खासकर किसानों के आंदोलन से उपजी सत्ता विरोधी लहर को कम करना था। लेकिन इसी बीच तीरथ सिंह रावत को भी दूर ले जाया गया और उनकी जगह पुष्कर धामी को मैदान की खटीमा सीट से ले जाया गया। अब संगठन और सरकार की कमान एक तरह से क्षेत्र के प्रतिनिधियों के हाथ में है।
अगर पहाड़ की उपेक्षा की इस हवा ने कहीं चुनावी रंग पकड़ लिया तो 2022 में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बीजेपी के सामने हालात ऐसे हो गए हैं कि वह यह रिस्क नहीं ले सकते। माना जा रहा है कि जातिगत समीकरणों में सीएम ठाकुर होने के कारण गढ़वाल से ब्राह्मण चेहरे को आगे बढ़ाया जा सकता है। इनमें चमोली से विधायक और संगठन में कई पदों पर रहे उत्तराखंड आंदोलनकारी पूर्व मेयर विनोद चमोली, धर्मपुर सीट से विधायक ज्योति गैरोला, जो यूपी और बृज के समय से संगठन में सक्रिय रहे, तीन बार जिम्मेदारी निभा चुके हैं। भूषण गरोला का नाम सामने आ रहा है। इस सप्ताह उत्तराखंड का दौरा करने वाले राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष, प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम, सह प्रभारी रेखा वर्मा को भी बदलाव की इस पटकथा के पीछे मुख्य कारण माना जा रहा है। विधायक महेंद्र भट्ट ने इस दौरान राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष से भी मुलाकात की।
हालांकि बीजेपी इन सभी चर्चाओं को निरर्थक करार दे रही है। संगठन और सरकार के बीच अहम भूमिका निभाने वाले कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत का कहना है कि ऐसा कोई विचार नहीं है। कांग्रेस एक साजिश के तहत इस चीज को हवा दे रही है, जबकि दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का कहना है कि अगर भाजपा अध्यक्ष नहीं बदलते तो कांग्रेस को इससे कोई मतलब नहीं होता। लेकिन, खुद बीजेपी के नेता इस बात को हवा दे रहे हैं। अगर बीजेपी साढ़े चार साल में तीन सीएम बदल सकती है तो वह कुछ भी कर सकती है।