बीजेपी की रणनीति पर फिरा पानी, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ने बिगाड़ा खेल !
देश में लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है... लोकसभा चुनाव को लेकर सभी जगह चुनाव को लेकर चर्चा हो रही है... जनता रोज सरकार बना रही है... और रोज सरकार गिरा रही है... देखिए खास रिपोर्ट...
4पीएम न्यूज नेटवर्कः देश में लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है… लोकसभा चुनाव को लेकर सभी जगह चुनाव को लेकर चर्चा हो रही है… जनता रोज सरकार बना रही है… और रोज सरकार गिरा रही है… वहीं लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है… बता दें कि बीजेपी इस लोकसभा चुनाव में अबकी बार चार सौ पार के नारे के साथ मैदान में उतरी है… वहीं पहले चरण के मतदान में बीजेपी को मिली करारी शिक्श्त को देखते हुए… पीएम मोदी ने अपने बयान को बदल दिया है…. और जनता के बीच नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं… आपको बता दें कि शुरुआती चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार के विकास के कामों के नाम पर वोट मांगते दिखे….. लेकिन जल्दी ही उनके भाषण ध्रुवीकरण की ओर मुड़ गए…. वहीं दूसरे दौर के चुनाव से पहले दिए जा रहे उनके भाषणों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश दिखी…. तो पहले दौर के भाषणों में उनका ज़ोर जातीय गोलबंदी पर था…. और उन्नीस अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग से पहले की हर दूसरी चुनावी रैली में वो बीजेपी को पिछड़ों… और दलितों की सबसे बड़ी सरपरस्त पार्टी बता रहे थे…. लेकिन पहले चरण का मतदान खत्म होते ही पीएम मोदी सांप्रदायिक हो गए और जनता के बीच में अनर्गल बातें करने लगे…
आपको बता दें कि इसी साल फरवरी में नरेंद्र मोदी ने संसद में ख़ुद के ओबीसी होने पर बहुत ज़ोर दिया था. … और बिहार में जाति सर्वे के नतीजे आने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जब बीजेपी सरकार में ओबीसी के प्रतिनिधित्व का सवाल उठाया था…. तो अमित शाह ने उनका जवाब दिया था…. और उन्होंने कहा था कि बीजेपी और एनडीए सरकार में ओबीसी की नुमाइंदगी उन पार्टियों में ओबीसी नुमाइंदगी से कहीं ज्यादा है… जो रात-दिन ओबीसी का राग अलापती रहती हैं…. शाह ने आंकड़े देकर ये दावा किया कि बीजेपी ने अपने यहां ओबीसी… और दलित नेताओं को कितनी तवज्जो दी है…. राहुल गांधी को शाह का दिया गया ये जवाब सिर्फ एक बयान भर नहीं था… विश्वसनीय समझे जाने वाले चुनावी सर्वेक्षणों के आंकड़े बताते हैं… कि पिछले दस साल के दौरान हुए चुनावों में बीजेपी को ओबीसी और दलित वोटरों का भारी समर्थन मिला है….
वहीं आमतौर पर अगड़ी जातियों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी ने पिछले दस सालों में ओबीसी जातियों…. और दलितों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए जो रणनीति अपनाई… बता दें कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की भारी जीत में ओबीसी और दलित जातियों की भूमिका काफी अहम थी… बता दें कि यूपी के बाद महाराष्ट्र में सबसे अधिक अड़तालीस सीटें है…
आपको बता दें कि पीएम मोदी ने लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से पहले महाराष्ट्र में पीएम मोदी ने तीन रैलियां की थी… और उन रैलियों के माध्यम से पीएम मोदी ने ओबीसी, दलित और आदिवासियों को साधने की पूरी कोशिश करने में जुटे थे… वहीं ओबीसी, दलित और आदिवासियों की खासी आबादी वाले पूर्वी विदर्भ की दूसरी लोकसभा सीटों पर लगातार रैलियां कर रहे थे…. और बीजेपी सरकार की नीतियों को गिना रहे थे… वहीं पहले चरण के मतदान में कम वोटिंग को देखते हुए पीएम मोदी बौखला गए और अपनी सभी नितियों को भूल कर धुव्रीकरण की राजनीति करने में जुट गए है… और अपने चुनावी भाषणों में एक विशेष जाति को टारगेट करते नजर आए… जिसका असर दूसरे चरण के मतदान में देखने को मिला… जिसके बाद से चुनावी मैदान में उतरी बीजेपी अबकी बार चार सौ पार का नारा दोहराते हुए नहीं दिखी… न ही किसी मंच से पीएम मोदी अबकी बाक चार सौ पार का नारा दोहराते हुए दिखे… क्योंकि पीएम मोदी को पहले और दूसरे चरण के मतदान के बाद पता चला गया कि मेरा सपना अब सपना ही बनकर रह चुका है…. जनता अब जागरूक हो चुकी है… और पीएम मोदी समेत बीजेपी के सभी नेता सदमे से गुजर रहे है… और यह जानने की कोशिश में जुटे है… कि आखिर भूल कहां हो गई…
बता दें कि नागपुर में बीजेपी के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है… और इसे महाराष्ट्र की दूसरी राजधानी भी कहा जाता है…. वहीं नागपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के अध्यक्ष रहे और मोदी सरकार में मंत्री नीतिन गडकरी सांसद हैं… और यहां से तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं…. बता दें कि नागपुर में बेहतरीन मेट्रो नेटवर्क,अच्छी सड़कें…. और ओवरब्रिज के निर्माण का श्रेय यहां गडकरी को देते हैं…. बता दें नागपुर में तेली जाति (ओबीसी), दलित और मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं… लेकिन गडकरी को लोग जाति से ऊपर उठ कर वोट देते हैं…. वहीं अप्रैल के दूसरे सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां एक के बाद एक तीन रैलियां चंद्रपुर, नागपुर से सटी रामटेक… और फिर नागपुर की…. इन तीनों रैलियों में पीएम मोदी ने अपने भाषण का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी सरकार की ओर से ओबीसी और दलितों के लिए किए गए काम गिनाने में खर्च किया…. नागपुर से सटी चंद्रपुर, वर्धा, रामटेक, गोंदिया-भंडारा… और गढ़-चिरौली जैसी लोकसभा सीटें ओबीसी और दलित बहुल हैं…. और बीजेपी इन वोटरों को साधने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक चुकी है… लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के बयानवाजी से जनता बहुत आहत हुए और उसका परिणाम बीजेपी को पहले और दूसरे फेज के चुनाव में दिखा दिया है… जिसको देखते हुए पीएम मोदी अब नए मुद्दे की तलाश में है…
आपको बता दें कि नागपुर में बेहतरीन इन्फ्रास्ट्रक्चर है लेकिन चंद्रपुर और वर्धा में सब गायब होते नजर आते हैं…. वर्धा महात्मा गांधी की कर्मभूमि रही है… लेकिन यहां सेवाग्राम के आस-पास भी सड़कों की स्थिति अच्छी नहीं है…. ये पूर्वी विदर्भ इलाका है और ये किसानों की आत्महत्याओं और नक्सली समस्या के लिए सुर्खियों में रहा है…. इलाके में कपास, सोयाबीन और संतरे की खेती होती है…. देश में कुल संतरों का तीस फीसदी यहीं पैदा होता है…. खेती पर निर्भर इस पूरे इलाके में कुनबियों (खेती करने वाली पिछड़ी जाति) और तेली जाति के लोगों का वर्चस्व है…. कुनबी लोग बीजेपी से खासा नाराज है… उनके मुताबिक़ खेती में उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है…. और ऊपर से मराठों को आरक्षण देने के वादे ने उनके नौकरियों के अवसर कम होने का ख़तरा बन गया है…. बीजेपी ने दो हदार चौदह में वहां के किसानों से जो वादे किए थे वे वादे आज तक भी नहीं पूरे हुए…. और किसानों की स्तिथि बद से बदतर हालात में पहुंच गई है… बता दें कि वहां के लोग कृषि पर आधारित है… लेकिन किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल पा रहा है… जिससे किसानों को तमाम प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है…
वहीं बीजेपी ने पिछले एक दशक के दौरान इस इलाके में पिछड़ों वोटरों को अपने पाले में करके…. यहां कांग्रेस के दबदबे को तोड़ा है…. लेकिन उपासे जैसे वोटरों से यहां पिछड़ी जातियों की बीजेपी के प्रति नाराजगी दिख जाती है…. बीजेपी ने दो हजार उन्नीस के चुनाव में विदर्भ की दस में से पांच सीटें जीत ली थीं…. और यहां की बासठ विधानसभा सीटों में से उन्तीस सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं… और ओबीसी वोटरों के नाराजगी की आशंका को देखते हुए ही बीजेपी ने तेली जाति (ओबीसी) के चंद्रशेखर बावनकुले को अपना प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है… महाराष्ट्र में जाति जनगणना नहीं हुई है… लेकिन एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ यहां मराठा जातियों की आबादी बत्तीस फीसदी और ओबीसी समुदाय के उनतालीस फीसदी है…. बता दें कि बीजेपी ने उन्नीस सौ नब्बे के दशक से अपने नेता वसंत राव भागवत की सलाह पर ‘माधव’ समीकरण पर पूरी मुस्तैदी से काम करना शुरू कर दिया…. लेकिन उसका भी कोआ खास प्रभाव देखने को नहीं मिल रहा है… औऱ जनता का रूख बीजेपी के खिलाफ है… जिसका रिजल्ट बीजेपी को दो चरण के मतदान में मिल गया है….
वहीं बाद में बीजेपी ने ओबीसी और दलित वोटरों को साधने के अन्ना डांगे, पांडुरंग फंडकर जैसे नेताओं की सहायता ली… और अपने ओबीसी वोट बैंक का और विस्तार किया… फिर एक दौर में बीजेपी ने यहां गोपीनाथ मुंडे, एकनाथ खडसे जैसे पिछड़ी जातियों को जोड़ कर ओबीसी वोट बैंक का विस्तार किया…. वहीं महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक की राजनीति में मराठों का दबदबा रहा है…. वहीं महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री यशवंत राव चह्वाण से लेकर अब तक के ज्यादातर मुख्यमंत्री मराठे रहे हैं… इससे ओबीसी समुदाय में एक राजनीतिक असुरक्षा की भावना पैदा हुई… इसका फायदा उठा कर बीजेपी ने इन जातियों में अपनी पैठ बढ़ाई…. बता दें कि पहले ओबीसी एकमुश्त बीजेपी का समर्थन करते थे…. माधव फॉर्मूले के तहत माली, धनगड़… और वंजारी एक साथ बीजेपी को वोट देते थे…. और ओबीसी में भी धनगड़ और वंजारी समुदाय को अलग से आरक्षण है…. इसका नतीजा ये हुआ कि ओबीसी मिलकर लड़ने के बजाय अलग-अलग लड़ने लगे…. जैसे कि धनगड़ जाति अनसूचित जाति के दर्जे के लिए लड़ रही है….
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में ओबीसी स्थानीय निकायों के चुनाव में रिजर्वेशन चाह रहे हैं…. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया है… जिसको लेकर ओबीसी समुदाय में खासी नाराजगी दिख रही है… और ओबीसी वोटर बीजेपी के खिलाफ हो गए है… इससे भी बीजेपी के ओबीसी वोट बैंक पर असर पड़ा है…. इस फैसले के बाद विदर्भ के कई कुनबी (खेती-बाड़ी करने वाली ओबीसी जाति) नेता बीजेपी से अलग हो गए थे…. लेकिन अब बीजेपी इनको दोबारा अपने पास लाने की कोशिश में लग गई है….
वहीं बीजेपी ओबीसी वोटरों को साधने की पूरी कोशिश कर रही है… लेकिन ये इतना आसान नहीं रह गया है…. अब जो भी कुछ बीजेपी के लिए लोगों के दिल में था वो सब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामप्रायदिक बयानबाजी से लोगों के मन में निराशा है… वहीं लोगों को बीजेपी से जो उम्मीद थी… वो उम्मीद बिल्कुल खत्म हो चुकी है… वहीं बीजेपी को जनता नकारती है… या फिर बीजेपी को ताज पहनाती है… यह आने वाला वक्त चार जून तय करेगा….