उर्दू पर विवाद गेम प्लान का हिस्सा!
4पीएम की परिचर्चा में प्रबुद्घजनों ने किया मंथन
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। भारत एक लोकतंत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है। जहां हर कोई अपनी बात खुलकर रखता है और सभी को कुछ भी करने की आजादी है लेकिन कई बार हमारे आस-पास कुछ ऐसा घटित हो जाता है जब इस फ्रीडम को ताक पर रख दिया जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ लोकप्रिय कंपनी हल्दीराम के साथ, जहां हल्दीराम के पैकेट में उर्दू पर लिखे होने से हंगामा मच गया। आखिर कहां जा रहा है हमारा देश? इस मुद्ïदे पर वरिष्ठï पत्रकार अशोक वानखेड़े, विनोद अग्निहोत्री, डॉ. राकेश पाठक, उमाशंकर दुबे, सुशील दुबे, कुर्बान अली, प्रो. लक्ष्मण यादव और 4पीएम के संपादक संजय शर्मा ने एक लंबी परिचर्चा की।
कुर्बान अली ने कहा, ये आज का मामला नहीं है। इसके पीछे पूरा गेम प्लान है। जिसे 2014 से इस देश पर लागू किया गया और अभी तो इत्तिदा इश्क है, आगे-आगे देखिए होता है क्या। इस देश को जो हिन्दू राष्टï्र बनाने का प्लान है, जिसके लिए संघ परिवार मैसेज करता रहता है कि इस मुल्क में हिन्दू सर्वश्रेष्ठï है और बाकी जो है, वे दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। उनको रहना है तो सिर झुका के रह सकते हैं।
विनोद अग्निहोत्री ने कहा, ये सब चल तो 1925 से रहा है, उतार-चढ़ाव आते रहे। हां, 2014 से इसमें तेजी आई है। महिला पत्रकार सवाल पूछ रही है, उसे पहले संविधान पढऩा चाहिए। संविधान में सभी भाषाएं है और उर्दू को वे केवल मुसलमानों की भाषा बता देते हैं और जिन सज्जन ने वीडियो डाला, उनका तो यह एजेंडा है।
अशोक वानखेड़े ने कहा, क्या इस देश में स्वदेश या जो संघ की पत्रिका निकलती है वहीं तय करेगी पत्रकारिता या बाकी भी पत्रकारिता है। उस पत्रकार ने ये सवाल पूछकर एक तरीके से फ्रंट खोल दिया है। आज उर्दू को मुसलमानों की भाषा समझते हैं। फिलहाल कई उदाहरण है, मगर ये जो है एकतरफा नहीं है, दोनों ओर है। डॉ. राकेश पाठक ने कहा, हमारा धर्म मानव धर्म है, जब तक हम जैसे लोग ये लड़ाई नहीं लड़ेंगे, धर्म की बेडिय़ों को नहीं तोड़ पाएंगे। सुशील दुबे ने कहा, अगर नुक्ता नहीं है तो सारी भाषाएं बेकार हैं। सारे जहां से हिंदोस्तां हमारा क्यों कहते है, क्यों नहीं कहते भारत हमारा। उर्दू से अगर दिक्कत हैं, तो उर्दू जिस पे लिखी है उसे खाना छोड़ दे। बहुत सी बातें हैं। हां, कुछ घटनाएं है, उनकी निंदा होनी चाहिए। उमाशंकर दुबे ने इस मुद्ïदे पर पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी के जरिए अपने विचार रखे। प्रो. लक्ष्मण यादव भी परिचर्चा में शामिल हुए।