उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर मोदी-शाह में बेचैनी, संघ के करीबी सांसद करेंगे क्रॉस वोटिंग!
उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर गुजरात लॉबी में भारी बेचैनी... मोदी-शाह के बीच मचा हड़कंप... मोदी-शाह से नाराज संघ के करीबी सांसद करेंगे क्रॉस वोटिंग...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर गुजरात लॉबी में भारी बेचैनी और हड़कंप की स्थिति बनी हुई है…… आशंका जताई जा रही है कि मोदी-शाह से नाराज संघ के कुछ करीबी सांसद क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं….. जिससे मोदी-शाह के दबदबे को भी बड़ा झटका लग सकता है….. गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टी व्हिप लागू नहीं होती…… सांसदों को अपने विवेक से मतदान करने की स्वतंत्रता होती है….. और मतदान भी गुप्त होता है….. यही कारण है कि संघ ने इस आपदा में अवसर ढूँढते हुए अपने व्यक्ति को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का दबाव बढ़ा दिया है….. वहीं अब देखना होगा कि मोदी-शाह संघ के दबाव में क्या निर्णय लेते हैं…..
दोस्तों भारत का उपराष्ट्रपति चुनाव हमेशा से ही सियासी गलियारों में चर्चा का विषय रहा है…… लेकिन इस बार 2025 के उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी हलचल कुछ ज्यादा ही तेज है…… खासकर गुजरात लॉबी में भारी बेचैनी और हड़कंप मचा हुआ है…… खबरें आ रही हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीच कुछ मुद्दों पर तनातनी चल रही है…… इस तनाव का असर उपराष्ट्रपति चुनाव पर पड़ सकता है……. आशंका है कि कुछ सांसद संघ के करीबी माने जाते हैं…… क्रॉस वोटिंग कर सकते हैं…… इसका सीधा असर मोदी-शाह की सियासी ताकत और उनके दबदबे पर पड़ सकता है……
आपको बता दें कि भारत में उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य मिलकर करते हैं……. ये लोग एक इलेक्टोरल कॉलेज बनाते हैं….. जिसमें कुल 788 सांसद शामिल होते हैं….. जिसमें लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 245 सांसद होते हैं…… इसमें नामांकित सांसद भी वोट डाल सकते हैं…. वहीं चुनाव में खास बात ये है कि इसमें पार्टी व्हिप लागू नहीं होता……. यानी कोई भी राजनीतिक दल अपने सांसदों को ये आदेश नहीं दे सकता कि उन्हें किसे वोट देना है……. हर सांसद अपने विवेक और इच्छा के आधार पर वोट डाल सकता है……. इसके अलावा वोटिंग गुप्त होती है, यानी ये पता नहीं चलता कि किस सांसद ने किस उम्मीदवार को वोट दिया…… ये गोपनीयता क्रॉस वोटिंग की संभावना को और बढ़ा देती है……. क्योंकि कोई सांसद अपनी पार्टी लाइन से हटकर भी वोट दे सकता है…… और किसी को पता नहीं चलेगा……
उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए उम्मीदवार को साधारण बहुमत चाहिए…… यानी कुल वैध वोटों का 50 फीसदी से ज्यादा….. अगर कोई उम्मीदवार पहली बार में बहुमत हासिल नहीं करता…….. तो दूसरी प्रक्रिया में कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को हटाकर वोटों की गिनती फिर से की जाती है……. 2025 का उपराष्ट्रपति चुनाव कई मायनों में खास है……. मौजूदा उपराष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म होने वाला है…… और नए उम्मीदवार के चयन को लेकर सियासी दांव-पेंच शुरू हो गए हैं……. इस बार की सबसे बड़ी खबर ये है कि बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के गठबंधन एनडीए के भीतर ही कुछ तनाव की स्थिति बन रही है…… जिसमें नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं….. और उनके साथ आरएसएस के बीच कुछ मतभेद सामने आ रहे हैं……
ऐसा माना जा रहा है कि हाल के कुछ सालों में बीजेपी और आरएसएस के बीच कुछ मुद्दों पर राय अलग-अलग रही है…… आरएसएस, बीजेपी का वैचारिक आधार माना जाता है……. संगठन के स्तर पर ज्यादा नियंत्रण चाहता है……. वहीं मोदी और शाह की जोड़ी ने बीजेपी को एक मजबूत, केंद्रीय नेतृत्व वाली पार्टी बनाया है…… कुछ लोग मानते हैं कि आरएसएस को लगता है कि उनकी सलाह को उतना महत्व नहीं दिया जा रहा, जितना पहले मिलता था….. वहीं उपराष्ट्रपति का पद देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है……. ये न सिर्फ सियासी तौर पर अहम है, बल्कि प्रतीकात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण है…… खबरों के मुताबिक, आरएसएस अपने किसी करीबी व्यक्ति को इस पद पर देखना चाहता है…… ऐसा उम्मीदवार जो उनकी विचारधारा को मजबूती से आगे बढ़ाए…… लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी शायद किसी ऐसे व्यक्ति को चुनना चाहती है……. जो उनकी रणनीति और सियासी गणित के हिसाब से फिट बैठे……
चूंकि उपराष्ट्रपति चुनाव में व्हिप लागू नहीं होता और वोटिंग गुप्त होती है……. इसलिए कुछ सांसदों के क्रॉस वोटिंग करने की आशंका है……. खासकर वो सांसद जो आरएसएस के करीबी माने जाते हैं……. लेकिन बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से नाराज हैं…… अगर ऐसा हुआ तो ये मोदी-शाह के लिए बड़ा झटका हो सकता है……. क्योंकि इससे उनकी सियासी ताकत और एकजुटता पर सवाल उठ सकते हैं…… गुजरात लॉबी का मतलब है वो नेता और सांसद जो गुजरात से आते हैं या जिनका नरेंद्र मोदी और अमित शाह से गहरा सियासी और व्यक्तिगत रिश्ता है….. इस लॉबी का बीजेपी में काफी प्रभाव रहा है….. लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि इस लॉबी का ज्यादा दबदबा होने की वजह से पार्टी के भीतर और आरएसएस में कुछ असंतोष है…… उपराष्ट्रपति चुनाव इस असंतोष को सामने लाने का एक मौका बन सकता है……..
आपको बता दें कि क्रॉस वोटिंग का मतलब है कि कोई सांसद अपनी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार को वोट देने की बजाय किसी….. और उम्मीदवार को वोट दे दे…… क्योंकि उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग गुप्त होती है……. इसलिए ये पता लगाना मुश्किल होता है कि किसने ऐसा किया……. पिछले कुछ चुनावों में क्रॉस वोटिंग के उदाहरण देखे गए हैं…… 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी ने दावा किया था कि 125 विधायकों और 17 सांसदों ने क्रॉस वोटिंग करके उनकी उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया था….. इससे साफ होता है कि क्रॉस वोटिंग कोई नई बात नहीं है……. और ये किसी भी दल के लिए सियासी जोखिम पैदा कर सकती है…….
वहीं अगर उपराष्ट्रपति चुनाव में अगर कुछ सांसद क्रॉस वोटिंग करते हैं……. तो इसका मतलब होगा कि बीजेपी और एनडीए के भीतर एकजुटता की कमी है…… ये न सिर्फ बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है…… बल्कि विपक्षी दलों को भी मौका दे सकता है कि वो इस कमजोरी का फायदा उठाएं…… राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लंबे समय से बीजेपी का वैचारिक और संगठनात्मक आधार रहा है……. लेकिन हाल के कुछ सालों में खासकर 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को गठबंधन सरकार चलाने की नौबत आई है……. 2024 के चुनाव में बीजेपी को 240 सीटें मिलीं……. जो बहुमत 272 से कम थीं….. हालांकि, एनडीए गठबंधन ने 293 सीटों के साथ सरकार बनाई……. लेकिन अब बीजेपी को अपने सहयोगियों, जैसे तेलुगु देशम पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ रहा है…….
ऐसे में आरएसएस को लगता है कि ये उनके लिए एक मौका है……. उपराष्ट्रपति का पद एक ऐसा संवैधानिक पद है, जो न सिर्फ सियासी तौर पर अहम है…….. बल्कि लंबे समय तक प्रभाव बनाए रखने में भी मदद करता है……. आरएसएस चाहता है कि इस पद पर कोई ऐसा व्यक्ति आए…… जो उनकी विचारधारा को मजबूती दे और उनके सियासी एजेंडे को आगे बढ़ाए…… खबरों के मुताबिक, आरएसएस ने बीजेपी के सामने अपने किसी करीबी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाने का दबाव बढ़ा दिया है…… अगर बीजेपी इस दबाव को मान लेती है, तो ये मोदी-शाह की सियासी रणनीति से समझौता हो सकता है…….. लेकिन अगर बीजेपी इस दबाव को नजरअंदाज करती है……. तो पार्टी के भीतर और गुजरात लॉबी में असंतोष बढ़ सकता है……
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने पिछले एक दशक में बीजेपी को एक ऐसी पार्टी बनाया है……. जो न सिर्फ भारत की सबसे बड़ी सियासी ताकत है……. बल्कि संगठनात्मक स्तर पर भी बेहद मजबूत है……. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद कुछ सवाल उठने शुरू हुए हैं……. बीजेपी का एकल बहुमत न आना और गठबंधन सरकार की मजबूरी ने पार्टी के सामने नई चुनौतियां खड़ी की हैं…… उपराष्ट्रपति चुनाव इस सियासी समीकरण को और जटिल बना सकता है……. अगर क्रॉस वोटिंग होती है और बीजेपी का उम्मीदवार हार जाता है…….. तो ये मोदी-शाह के नेतृत्व पर सवाल उठा सकता है……. इससे न सिर्फ पार्टी के भीतर बल्कि गठबंधन सहयोगियों और विपक्ष के बीच भी ये संदेश जाएगा कि बीजेपी उतनी एकजुट नहीं है……. जितनी वो दिखाने की कोशिश करती है……
वहीं अगर क्रॉस वोटिंग होती है तो ये बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका होगा…… ये दिखाएगा कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है…… खासकर गुजरात लॉबी और आरएसएस के बीच तनाव सामने आ सकता है…… और इंडिया गठबंधन इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश करेगा……. 2024 के चुनाव में इंडिया गठबंधन ने 234 सीटें जीती थीं……. जो बीजेपी के लिए एक मजबूत चुनौती थी……. अगर बीजेपी के भीतर टकराव बढ़ता है, तो विपक्ष इसे भुनाने की कोशिश करेगा…….. एनडीए की गठबंधन सरकार में टीडीपी और जेडी(यू) जैसे सहयोगी पहले से ही अपनी शर्तें रख रहे हैं…….. अगर बीजेपी के भीतर असंतोष बढ़ता है, तो सहयोगी दलों का दबाव और बढ़ सकता है……. अगर आरएसएस अपने उम्मीदवार को उपराष्ट्रपति बनवाने में कामयाब होता है…… तो ये उनकी सियासी ताकत का प्रदर्शन होगा……. इससे भविष्य में बीजेपी और आरएसएस के रिश्तों पर भी असर पड़ सकता है……



