सियासत है, करनी तो पड़ेगी! गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार पर घमासान
1800 पुस्तकों की अब तक 92 करोड़ से अधिक प्रतियां कर चुका है प्रकाशित
- भाजपा ने जयराम पर साधा निशाना
- सबकी नजर सिर्फ वोट बैंक पर
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। गीता प्रेस को गांधी शांति पूरस्कार दिये जाने के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश के इस बयान पर कि यह सम्मान गोडसे को सम्मान देना जैसे,, पर बावल मच गया है। वह केवल भाजपा के ही निशाने पर नहीं आ गए हैं बल्कि अपनी पार्टी के कुछ नेताओं के आलोचना के शिकार बन गए हैं। मौके की नजाकत को समझते हुए कांग्रेस ने भी इससे किनारा कर लिया। वहीं भाजपा ने जयराम रमेश की तूलना मओवादी सेे कर दी है। ऐसे में जब लोकसभा चुनाव होने में एक साल रह गए हैं तो इसका चुनावी मुद्दा बनना तय था, सो सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष ने इस पर गाल बजाना शुरू कर दिया है। कहते है न सियासत है करनी तो पड़ेगी।
आजादी के अमृतकाल में स्व-संस्कृति, स्व-पहचान एवं स्व-धरातल को सुदढ़ता देने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा एक करोड़ रुपए का गांधी शांति पुरस्कार सौ साल से सनातन संस्कृति की संवाहक रही गीता प्रेस, गोरखपुर देने की घोषणा। हालांकि गीता प्रेस ने विवाद के बाद से पुरस्कार की धनराशि वापस करने की घोषण कर दी है। लेकिन विडम्बना है कि ऐसे मामलों को भी राजनीतिक रंग दे दिया जाता है। हर मुद्दे को राजनीतिक रंग देने से राजनीतिक दलों और नेताओं को कितना फायदा या नुकसान होता है यह अलग बात है लेकिन सही बात तो यह है कि ऐसे विवादों का खमियाजा देश को जरूर उठाना पड़ता है। 1800 पुस्तकों की अब तक 92 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित करने वाले गीता प्रेस को इस पुरस्कार के लिये चुना जाना एक सराहनीय कार्य है। यह सम्मान मानवता के सामूहिक उत्थान, धर्म-संस्कृति के प्रचार-प्रसार, अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया है।
सौ वर्षों से गीता प्रेस छपाई में लगी
गीता प्रेस सौ वर्षों संस्कृति-निर्माण के कार्य में जुटी है। गीता प्रेस की पत्रिका है कल्याण। कल्याण की लोकप्रियता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अब तक इस पत्रिका के कई विशेषांकों (पहले अंक) के पाठकों की मांग पर अनेक संस्करण प्रकाशित करने पड़े। चाहे जैसी स्थितियां आईं, कल्याण अपने लक्ष्य, संकल्प व दायित्वबोध के प्रति पूरी तरह सजग रही। भारत बंटवारे का विरोध किया तो जरूरत पडऩे पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू व राष्टï्रपिता महात्मा गांधी का ïभी मार्गदर्शन किया।
जयराम रमेश के बयान से कांग्रेस ने पल्ला झाड़ा
ऐसा ही ताजा विवादित बयान कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस पुरस्कार को लेकर दिया है। रमेश ने कहा कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना गोडसे और सावरकर को सम्मान देने जैसा है। हालांकि उनके बयान से उनकी ही पार्टी ने किनारा कर लिया है।
ऐसे राजनीतिक लोग आकाश में पैबंद लगाना चाहते हैं और सछिद्र नाव पर सवार होकर राजनीतिक सागर की यात्रा करना चाहते हैं। क्योंकि सब जानते हैं कि गीता प्रेस प्रतिदिन सत्तर हजार प्रतियां प्रकाशित कर घर-घर में धर्म-संस्कृति-राष्ट्रीयता का दीप जला रहा है। अपनी किताबों के माध्यम से समाज में संस्कार परोसने व चरित्र निर्माण का काम भी यह संस्था कर रही है।
ऐसी संस्था को लेकर जब यह बयान आता है तो यह भी सवाल उठता है कि क्या जयराम रमेश के इस बयान का कांग्रेस पार्टी समर्थन करती है? यह सवाल इसलिए भी क्योंकि जयराम रमेश कांग्रेस के जिम्मेदार नेता हैं और केन्द्र में मंत्री भी रह चुके हैं।
धर्म प्रचार करने का संविधान से मिला है अधिकार
वैसे भी हर धर्म व उससे जुड़ी संस्थाओं को अपने कामकाज के प्रचार-प्रसार का पूरा हक है। गीता प्रेस के बारे में देश के तमाम बड़ेे नेताओं और धर्मगुरुओं की राय सकारात्मक ही रही है। संस्था ने सकारात्मकता की एक ओर मिसाल पेश करते हुए किसी प्रकार का दान स्वीकार न करने के अपने सिद्धांत के तहत एक करोड़ रुपए की पुरस्कार राशि लेने से इंकार कर दिया है। साथ ही सरकार से अनुरोध किया है कि वह इस राशि को कहीं और खर्च करे। गीता प्रेस जैसे सांस्कृतिक एवं धार्मिक अभियान के साथ इस विसंगतिपूर्ण आलोचना की बात सोचना ही विध्वंसात्मक सोच है। इस तरह की आलोचना राजनीतिक आग्रह, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह के साथ बुद्धि का दिवालियापन है। हर मामले को राजनीतिक रंग में डुबोने की ताक में रहना राजनेताओं की फितरत-सी बनती जा रही है। लोकतंत्रीय पद्धति में किसी भी विचार, कार्य, निर्णय और जीवनशैली की आलोचना पर प्रतिबंध नहीं है। किन्तु आलोचक का यह कर्तव्य है कि वह पूर्व पक्ष को सही रूप में समझकर ही उसे अपनी आलोचना की छेनी से तराशे। किसी भी तथ्य को गलत रूप में प्रस्तुत कर उसकी आक्षेपात्मक आलोचना करना उचित नहीं है।
गांधी-नेहरू से भी जुड़ी हैं यादें
भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा कल्याण के रूप में रोपा गया पौधा आज वटवृक्ष बन चुका है। लोगों का धर्म-संस्कृति के क्षेत्र में मार्गदर्शन कर रहा है। भाईजी व गांधीजी के बीच प्रेमपूर्ण संबंध थे। ‘कल्याण’ का पहला अंक 1926 में प्रकाशित हुआ था, इसमें गांधीजी का लेख भी छपा था। भाईजी यह अंक गांधीजी को भेंट करने गए थे। उन्होंने न सिर्फ कल्याण की प्रशंसा की, बल्कि यह आग्रह भी किया था कि कल्याण या गीता प्रेस से प्रकाशित होने वाली किसी पुस्तक में बाहरी विज्ञापन न प्रकाशित किया जाए, इससे कल्याण व पुस्तकों की शुचिता बनी रहेगी। इसका पालन आज भी गीता प्रेस करता है। कल्याण के विभिन्न अंकों में गांधीजी के लेख छपते रहे। आज भी गांधीजी द्वारा लिखा गया पत्र गीता प्रेस में सुरक्षित रखा गया है। गांधीजी के जीवन पर इस पत्रिका का अनूठा प्रभाव रहा है और उन्हीं के नाम पर दिये जाने वाले पुरस्कार के लिये गीता प्रेस से अधिक उपयुक्त पात्र कोई और हो नहीं सकता, यह बात जयराम रमेश को भलीभांति समझ लेनी चाहिए। सस्ती राजनीतिक वाह-वाही के लिये ऐसे बयानों से जयराम रमेश ने अपनी ही पार्टी एवं उसकी ऐतिहासिक विरासत को आहत किया है।
निणार्यकों की मर्जी से होते हैं फैसले : दिग्विजय
गोरखपुर की गीता प्रेस को साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित करने के मुद्दे पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि गांधी के विचारों का विरोध करने वाले को गांधी पीस प्राइस दें, यह ज्यूरी पर निर्भर है। पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने कहा कि गीता प्रेस देश की सबसे पुरानी प्रेस है। उस समय वह महात्मा गांधी के विचारों से सहमत नहीं थे। इस बात का उल्लेख जयराम रमेश ने किया है। अब गांधी पीस प्राइस उस प्रेस को दी जाए, जिसने गांधीजी की विचारधारा का विरोध किया है। यह तो ज्यूरी पर ही निर्भर करता है।
कांग्रेस से क्या उम्मीद की जा सकती : रविशंकर
कांग्रेस से क्या उम्मीद की जा सकती है जिसने राम मंदिर निर्माण की राह में रोड़े अटकाए? जो तीन तलाक का विरोध करती है … गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार पर उनकी टिप्पणी से ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है? हम इसकी निंदा करते हैं। मैं भारी मन से कहना चाहता हूं कि देश पर शासन करने वाली पार्टी में अब माओवादी मानसिकता वाले लोग हैं, वे राहुल गांधी के भी सलाहकार हैं और इसका पूरे देश को विरोध करना चाहिए।
घमंड में चूर है कांग्रेस : बिसवा सरमा
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिसवा सरमा ने भी कांग्रेस पर हमला बोला है। हिमंता ने कहा कि कर्नाटक में जीत के साथ ही कांग्रेस ने अब खुले तौर पर भारत के सभ्यतागत मूल्यों और समृद्ध विरासत के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया है, चाहे वह धर्मांतरण विरोधी कानून को रद्द करने या गीता प्रेस के खिलाफ आलोचना के रूप में हो। हिमंता ने कहा कि कर्नाटक में मिली चुनावी जीत के घमंड में चूर होकर कांग्रेस अब भारतीय संस्कृति पर खुला प्रहार कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत की जनता कांग्रेस को सही जवाब देगी।