हमारी संस्कृति को कोई छिन्न-भिन्न नहीं कर पाया : बृजेश पाठक
लखनऊ। प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने एक कार्यक्रम में कहा कि हिंदी को अपनाने के लिए अभियान चलाना पड़ेगा। शायद ही कोई देश होगा जहां पर कानून होगा कि अगर वहां की भाषा नहीं बोलोगे तो दंड लगेगा। दक्षिण भारत समेत कई प्रदेश हैं जहां पर ऐसा प्रावधान है कि यदि 45 प्रतिशत कार्य हिंदी में नहीं करते हैं तो दंड लगेगा। उत्तर प्रदेश में हिंदी को लेकर कोई समस्या नहीं है। पूरे देश में हमें इस तरह की परंपरा बनानी होगी। उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा हिंदी में जो लिखा जाता है वही पढ़ा जाता है। जैसे किष्किंधा, शत्रुघ्न, माता कौशल्या जैसे लिखेंगे वैसे ही पढ़ेंगे। हिंदी भाषा प्रतिदिन अंग्रेजी शब्दों को भी अपने शब्दकोश में शामिल कर रही है, जैसे- टॉवर मोबाइल, रिचार्ज…। दूसरी तरफ यदि अंग्रेजी की बात करें तो सीएच शब्द से केमिस्ट्री भी बनती है और सीएच से चोपड़ा भी बनता है। किसी से यदि पूछो ऐसा क्यों तो वह यही कहता है कि पहले से ही परंपरा चलती आ रही है।
किसी डिक्शनरी में ऐसा नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ है। नाइफ शब्द में ‘केÓ साइलेंट है, जब साइलेंट है तो उसे लिखते क्यों हैं। ऐसा ही नॉलेज में भी होता है। ऐसे सैकड़ों शब्द हैं, इसके पीछे कोई वैज्ञानिक परीक्षण नहीं है। यही होता आया है कि अंग्रेजी में कुछ भी बोलो यही सही है। जबकि हिंदी को लेेकर लोगों में झिझक है। हमारे अंदर इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम जो कहें वही सही है। हिंदी में क्या नहीं लिखा गया। हमारे वेद, हमारी संस्कृति, हमारे पुराण हिंदी और संस्कृत में हैं। उप मुख्यमंत्री ने कहा कि 200 साल गुलामी के बाद अंग्रेजी हुकुमत हमारे दिलो-दिमाग पर इस कदर हावी हो गई थी कि भारतीयता को हम भूलने लगे, लेकिन हम अपनी परंपराओं को नहीं भूले। अंग्रेजों की गुलामी से पहले 500 साल तक हमारी संस्कृति व व्यवस्थित जिंदगी को जिस ढंग से ध्वस्त करने का प्रयास किया गया, इतिहास के पन्नों में सबकुछ दर्ज है। आराधना केंद्र को ध्वस्त किया गया गया। लेकिन हमारी संस्कृति को कोई छिन्न-भिन्न नहीं कर पाया। हमने अपनी संस्कृति अक्षुण्ण और उसे जीवित रखी।