कर्नाटक सीमा विवाद पर  महाराष्ट्र  का सियासी पारा चढ़ा : शिंदे-फडणवीस में पड़ी फूट ठाकरे बोले- भाषा या सीमा नहीं मानवता का सवाल

  • पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने शिंदे सरकार को घेरा
  • कहा- एससी में मामला लंबित रहने तक क्षेत्र को केंद्र शासित घोषित किया जाए

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
मुंबई। महाराष्ट्र व कर्नाटक के बीच सीमा विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इस मुद््दे पर राज्य में साझा सरकार चला रहे सीएम एकनाथ ङ्क्षशदे और डिप्टी सीएम देवेन्द्र फडणवीस में भी सहमति नहीं बन पा रही है। दोनों नेताओं के बीच वैचारिक मतभेद पहले ही सामने आ चुके है और इस मुद््दे मुद्दे के तूल पकडऩे के बाद फिर से दोनों में फूट दिखाई पड़़ रही है। विपक्ष के नेताओं ने आज नागपुर में विधान भवन के बाहर इसे लेकर प्रदर्शन किया। वहीं, सदन में इस बारे में लाए जा रहे प्रस्ताव पर विपक्ष के नेता व पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने कड़ा रुख अपनाया। ठाकरे ने सीएम एकनाथ शिंदे पर आरोप लगाया कि वे सीमा विवाद पर मौन है, जबकि कर्नाटक के सीएम मुखर हैं। उन्होंने कहा है कि सीमा विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला होने तक कर्नाटक के बेलगावी, कारवार व निप्पानी को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाए। विधान सभा में पारित होने वाले प्रस्ताव में इस मांग को शामिल किया जाए।

हम एक-एक इंच जमीन के लिए लड़ेंगे : फडणवीस

ठाकरे के जवाब में डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र की एक-एक इंच जमीन के लिए लड़ेंगे। महाराष्ट्र चुप नहीं बैठेगा। किसी भी हालत में हम महाराष्ट्र के सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों को अकेला नहीं छोड़ेंगे। हम एक-एक इंच जमीन के लिए लड़ेंगे, भले सुप्रीम कोर्ट हो या केंद्र सरकार। उन्होंने कहा कि सीमावर्ती लोगों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। हम प्रस्ताव लाएंगे। महाराष्ट्र चुप नहीं बैठेगा। इससे पहले महाराष्ट्र के विपक्षी दलों के नेताओं ने सीएम एकनाथ शिंदे, राज्य सरकार और कर्नाटक सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। विपक्षी नेता हाथों में तख्तियां लिए हुए थे। इसमें महाराष्ट्र सरकार से मांग की गई है कि या तो वह सीमा विवाद सुलझाए या कुर्सी खाली करें।

पीओके के बाद अब देश में केओएम आया चर्चा में

उद्धव ठाकरे ने ‘कर्नाटक के कब्जे वाले महाराष्ट्र’ शब्द का जिक्र कर सीमा विवाद हल होने तक इन क्षेत्रों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने की मांग की। बता दें, आमतौर पर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी ‘पीओके’ ही चर्चा में रहता है। लेकिन अब ‘केओएम’ नाम भी चर्चा में आ गया है। महाराष्ट्र के उच्च सदन विधान परिषद में ठाकरे ने सीमा विवाद उठाते हुए कहा कि यह मात्र भाषा या सीमा का विवाद नहीं है, बल्कि मानवता का सवाल है। पीढिय़ों से मराठी भाषी सीमावर्ती गांवों में रह रहे हैं। उनकी भाषा, जीवन शैली मराठी है। सुप्रीम कोर्ट में केस लंबित रहने तक इस इलाके को केंद्र शासित घोषित किया जाए।

65 साल से लंबित है विवाद

दोनों राज्यों के बीच सीमा का मुद्दा 1957 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद से लंबित है। महाराष्ट्र ने बेलगावी पर दावा किया है, जो तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। इसमें मराठी भाषी आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। महाराष्ट्र ने 800 से अधिक मराठी भाषी गांवों पर भी दावा किया है, जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा हैं। उधर, कर्नाटक राज्य पुनर्गठन अधिनियम और 1967 महाजन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भाषाई आधार पर किए गए सीमांकन को अंतिम मानता है।

बेलगावी सहित 814 गांवों की है महाराष्ट्र  की मांग
आजादी से पहले महाराष्ट्र को बंबई रियासत के नाम से जाना जाता था। आज के समय के कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे। आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा है। 1956 में जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने बेलगावी (पहले बेलगाम), निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन हुआ। इस आयोग ने 1967 में अपनी रिपोर्ट में निप्पणी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को देने का सुझाव दिया।

2004 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

18 साल पहले 2004 में महाराष्ट्र सरकार इस सीमा विवाद को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई थी। महाराष्ट्र सरकार ने 814 गांवों उसे सौंपने की मांग की थी। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस मसले को आपसी बातचीत से हल किया जाना चाहिए। साथ ही ये भी सुझाव दिया था कि भाषाई आधार पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे परेशानी और बढ़ सकती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 30 नवंबर को सुनवाई हुई थी।

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