सवालों से भागने का हथियार तो नहीं हंगामा!

  • बजट सत्र के दूसरे चरण का दो हफ्ता ठप
  • भाजपा की साजिश में फंसी कांग्रेस

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। बजट सत्र के दूसरे चरण के दो हफ्ते हंगामें व शोरशराबे की भेंट चढ़ गए। विडंबना यह रही कि पहली बार ऐसा हुआ कि सत्तापक्ष ही बहस करवाने के मूड में नहीं लगी। 13 मार्च से शुरू हुए इस दूसरे चरण में हर दिन सिर्फ तारीख बदलती है, लेकिन दोनों सदनों के अंदर के हालात एक जैसे रहे। सत्ता पक्ष एक ओर जहां राहुल गांधी के माफी मांगने की अपनी मांग पर अड़ा रहा, तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर जेपीसी बनाने की मांग को लेकर डटा रहा।
हालांकि, हमेशा ये कहा जाता है कि विपक्ष संसद को नहीं चलने दे रहा, लेकिन इस बार विपक्ष के नेता बोलना चाह रहे हैं, लेकिन सत्ता पक्ष खुद हंगामा खड़ा करके सदन की कार्यवाही को नहीं चलने दे रहा है। एक ओर सरकार राहुल से माफी की मांग कर रही है, दूसरी ओर जब राहुल गांधी संसद में बोलने की इजाजत मांगते हैं तो भाजपा के सदस्य उन्हें बोलने ही नहीं दे रहे हैं। आखिर सरकार खुद क्यों नहीं सदन की कार्यवाही को चलने दे रही है और राहुल के बोलने से मोदी और उनकी सरकार को किस बात का डर है। दरअसल, सदन की कार्यवाही न चलने देना ये सरकार की एक सोची-समझी साजिश है। सरकार खुद ये नहीं चाहती कि सदन चले। क्योंकि जाहिर सी बात है कि अगर सदन की कार्यवाही चलेगी तो सरकार को विपक्ष के सवालों के जवाब देने होंगे, या कोई नया बिल व विधेयक लाना होगा। लेकिन सरकार इन दोनों ही बातों से भाग रही है। उल्टे राहुल गांधी के लंदन में दिए बयानों पर माफी की मांग करके और इस बात को लेकर सदन में हंगामा करके वो जनता का ध्यान हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और अपनी नाकामियों से भटकाना चाह रही है। साथ ही 2024 से पहले राहुल की छवि और कांग्रेस पर ऐसे आरोप लगाकर लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को देशभक्तिसे जोडक़र अपना फायदा उठाना चाह रही है।

सरकार को मिल सकता है फायदा

यानी मोदी की सरकार और उसके सदस्य एक सोची समझी साजिश के तहत जानबूझकर सदन की कार्यवाही नहीं चलने देना चाह रही है। क्योंकि इसका फायदा भी सरकार को ही मिल रहा है, सदन के सातवें दिन भी राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को सभापति ने बोलने की अनुमति दी थी। लेकिन खरगे जैसे ही बोलने के लिए उठे, वैसे ही सभी भाजपा सांसद नारे लगाने लगे, और हंगामा करने लगे, जिसके चलते खरगे अपनी बात को नहीं रख सके। नतीजन लगातार बढ़ते हंगामे को देखकर सदन की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया। ऐसा ही मंजर लोकसभा में भी देखने को मिला। दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित होने के बाद सभी विपक्षी दलों ने संसद की पहली मंजिल पर प्रदर्शन किया। सभी सांसदों के हाथ में बैनर-पोस्टर थे… वे अडाणी-हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर संसद की जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) की मांग को लेकर नारेबाजी कर रहे थे.। वहीं ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के सांसदों ने कांग्रेस से अलग प्रदर्शन किया, वे अडाणी मुद्दे पर प्रधानमंत्री से चुप्पी तोडऩे की मांग कर रहे थे। आज सातवें दिन भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक बार फिर दोहराया कि लंदन के केंब्रिज यूनिवर्सिटी में दिए बयान पर राहुल गांधी संसद में माफी नहीं मांगेंगे। उन्होंने कहा कि हम अडाणी मामले पर जेपीसी से जांच की मांग बार-बार करेंगे जब तक हमें कोई जवाब नहीं मिलता। राहुल की माफी की मांग सिर्फ मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए है। उन्होंने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि हमारे दूतावासों पर हमले हो रहे हैं, लेकिन सरकार इन हमलों की निंदा करने के लिए कुछ भी नहीं कह रहे और अब देशभक्ति की बात कर रहे है।
वहीं इससे पहले कल राहुल गांधी ने भी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर सदन में बोलने देने की अनुमति मांगी थी। उन्होंने अपील की है कि उन्हें ब्रिटेन में दिए गए बयान को लेकर सदन में अपनी बात रखने का मौका दिया जाएज् अब ये देखना होगा कि आज अगर आगे लोकसभा की कार्यवाही चलती है तो क्या राहुल को बोलने का मौका मिलता है या नहीं.। वैसे इसकी संभावना कम ही नजर आती है। बजट के दूसरे चरण को शुरू हुए सात दिन हो चुके हैं। लेकिन कार्यवाही एक भी दिन नहीं चल सकी।

करोड़ों रुपये पानी में बहे

आपको बता दें कि सदन की एक दिन की कार्यवाही का खर्च 1.5 करोड़ रुपए आता है… ऐसे में अब तक 6 दिन पूरी तरह से हंगामे की भेंट चढ़ चुके हैं.। यानी अबतक लगभग 9 करोड़ रुपए पानी में बह चुके हैं। अब आप खुद सोचिए कि अगर ये ही 9 करोड़ रुपए जनता की भलाई के लिए कहीं पर इस्तेमाल होते तो इसका असर कितना बड़ा होता… लेकिन मोदी सरकार को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि उनका मेन मकसद ही विपक्ष और जनता के सवालों से बचना है। इसलिए हर दिन सदन में हंगामा किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर साहेब और उनकी सरकार के सदस्य जानते हैं कि अगर राहुल गांधी को सदन में बोलने का मौका मिल गया, तो फिर वो सरकार से कुछ सवाल पूछ देंगे जिनके जवाब देना शायद सरकार को नहीं आता। क्योंकि राहुल ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद देते हुए जो सवाल सरकार और साहेब से किए थे। उन सवालों पर अब तक सरकार या साहेब की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। ऐसे में सवालों से भागने का सबसे अच्छा तरीका है कि हर दिन सदन में हंगामा खड़ा कर दिया जाए और कार्यवाही को चलने ही न दिया जाए।

सत्रावसान कराना चाहती है भाजपा

भाजपा लगातार हंगामा करके सदन की कार्यवाही को इसलिए भी नहीं चलने दे रहा है क्योंकि संभव है कि गतिरोध दूर होने की संभावना लगातार क्षीण होने के बाद बजट सत्र का दूसरा चरण समय से पहले ही खत्म हो सकता है। सरकार के सूत्रों का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो सरकार केंद्रीय बजट को पारित कराने, रेलवे, कृषि जैसे प्रमुख मंत्रालयों की अनुदान मांगों का निपटारा करने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है.। इन प्रक्रियाओं के पूरा होते ही सत्रावसान की घोषणा की जा सकती है।
बता दें कि केंद्रीय बजट को 31 मार्च तक पारित कराना जरूरी है। यानी सरकार का मकसद साफ है। सदन को एक भी दिन सुचारू रूप से चलने ही न दो, ताकि विपक्ष कोई सवाल कर सके या सरकार को किसी मुद्दे पर घेर सके, ऐसे में सवालों से बचने के लिए और अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए मोदी सरकार ने सदन में हंगामे को अपना प्रमुख हथियार बना लिया है., इसलिए जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू होती है और विपक्ष का कोई नेता बोलने के लिए खड़ा होता है सरकार के सदस्य हंगामा करना शुरू कर देते हैं और वो तब तक करते हैं, जब तक सदन की कार्यवाही को स्थगित न कर दिया जाए।
आखिर सरकार और विपक्ष दोनों को ये समझना होगा कि सदन की स्थापना किसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए या जनता के लिए कोई नए बिल व विधेयक लाने के लिए होता है… न कि हर दिन हंगामा करके सदन की कार्यवाही को बाधित करने के लिए। सदन को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है… लेकिन वर्तमान समय में सरकार और विपक्ष दोनों ने ही इस मंदिर को अखाड़ा बना रखा है… फिलहाल हम उम्मीद करते हैं कि सरकार सदन की कार्यवाही को चलने देगी न कि सवालों से बचने के लिए हंगामा करके इसको बाधित करेगी।

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