मैरिटल रेप केस में सुप्रीम कोर्ट चार हफ्ते बाद करेगा सुनवाई

नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने वैवाहिक दुष्कर्म के मामलों में पतियों को दी गई छूट को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई बुधवार को चार सप्ताह के लिए टाल दी। प्रधान न्यायाधीश 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।सीजेआई ने कहा कि दिवाली की छुट्टियों पर शीर्ष अदालत के बंद होने से पहले यदि सुनवाई पूरी नहीं हुई तो वह सुनवाई पूरी नहीं कर पाएंगे और फैसला नहीं सुना पाएंगे।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी वकीलों को मामले में दलीलें पेश करने के लिए इच्छित समय दिया जाना चाहिए। पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई चार सप्ताह बाद किसी अन्य पीठ द्वारा की जानी तय की।
इस मामले में सुनवाई 17 अक्तूबर को शुरू हुई थी। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के अनुसार, यदि कोई पति अपनी पत्नी, जो नाबालिग नहीं है को अपने साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है तो उसे दुष्कर्म के अपराध के लिए अभियोजन से छूट दी जाती है।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत, जिसे अब निरस्त कर दिया गया है और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है, पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, यदि पत्नी नाबालिग न हो, दुष्कर्म नहीं है।
यहां तक कि नए कानून के तहत भी, धारा 63 (दुष्कर्म) के अपवाद 2 में कहा गया है कि पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध, यदि पत्नी 18 वर्ष से कम आयु की न हो, दुष्कर्म नहीं है।
केंद्र ने कहा कि तेजी से बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना मुश्किल होगा कि सहमति थी या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानूनी सहायता व्यवस्था के कामकाज की सफलता के लिए जागरूकता होना महत्वपूर्ण है। साथ ही यह भी कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए कि विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रचारित लाभकारी योजनाएं सभी तक पहुंचें।
कैदियों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के मुद्दे पर कई निर्देश पारित करते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि थानों और बस स्टैंड जैसे सार्वजनिक स्थानों पर पास के कानूनी सहायता कार्यालय का पता और फोन नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
पीठ ने आगे कहा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) राज्यों और जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के सहयोग से यह सुनिश्चित करेगा कि जेल में कैदियों को कानूनी सहायता सेवा तक पहुंच के लिए मानक संचालन प्रक्रिया का सही तरीके से पालन हो। न्यायमूर्ती गवई ने कहा, ‘हमने यह भी कहा है कि कानूनी सहायता व्यवस्था की सफलता के लिए जागरूकता महत्वपूर्ण है।
अदालत ने कहा, एक मजबूत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए तथा समय-समय पर इसे अपडेट किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रचारित विभिन्न लाभकारी योजनाएं देश के कोने-कोने तक पहुंचें, विशेषकर उन लोगों तक जिनकी शिकायतों का समाधान करने का कार्य प्राधिकरण को करना है।
जुलाई में मामले की सुनवाई के दौरान, एनएएलएसए ने शीर्ष अदालत को बताया था कि 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जेलों में बंद लगभग 870 अपराधी मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में सूचित होने के बाद अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर करना चाहते हैं। शीर्ष अदालत जेलों में कैदियों की संख्या बढऩे के मुद्दे पर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

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