जगद्गुरु रामभद्राचार्य की शिक्षाएं और डिग्रियां, एक मार्गदर्शक व्यक्तित्व

रामानंद संप्रदाय के मौजूदा जगद्गुरु में से एक, जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज, चित्रकूट में स्थित तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख हैं।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: रामानंद संप्रदाय के मौजूदा जगद्गुरु में से एक, जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज, चित्रकूट में स्थित तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख हैं। उनकी शास्त्रों में गहरी पकड़ और जीवनदृष्टि उन्हें एक अत्यंत सम्मानित गुरू बनाती है।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज अपने वक्तव्यों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहते हैं. हाल ही में उन्होंने प्रेमानंद महाराज पर टिप्पणी की थी. उनकी टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया पर काफी बातें हुईं. तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके बचपन का नाम गिरिधर था. महज 2 साल की आयु में इनकी नेत्रदृष्टि नष्ट हो गई. तब से वह न तो पढ़ सकते हैं और न लिख सकते हैं. वे केवल सुनकर सीखते हैं और बोलकर लिपिकारों द्वारा अपनी रचनाएं लिखवाते हैं. उन्होंने 240 से ज्यादा किताबें लिखी हैं.

रामभद्राचार्य जी बचपन से ही बहुत तीव्र बुद्धि के हैं, उनकी याददाश्त असाधारण है, महज 5 साल की उम्र में उन्होंने संपूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता को याद कर लिया था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके दादाजी, पंडित सूर्यबली मिश्र ने उनको दी थी. इसके बाद उन्होंने वेद, उपनिषद, भागवत पुराण और व्याकरण का अध्ययन किया. वे 22 भाषाएं बोल सकते हैं.

तीन वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी और अपने पिता को सुनाई. पांच वर्ष की आयु में उन्होंने 15 दिनों के अंदर श्लोक संख्या सहित 700 श्लोकों वाली सम्पूर्ण भगवद्गीता याद कर ली. इस दौरान उनके पिता ने उनकी मदद की. 7 साल की उम्र में उन्होंने सिर्फ 60 दिनों में रामचरितमानस के लगभग 10,900 छंद याद कर लिए और संपूर्ण पाठ भी किया. उनकी इस असाधारण प्रतिभा ने उन्हें सबसे अलग बनाया.

आपको बता दें,कि सन् 1971 में उन्होने वाराणसी के सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत व्याकरण में शास्त्री (Graduation) के लिए दाखिला लिया. 1974 में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए और पांच स्वर्ण पदक जीते. सन् 1976 में आचार्य (Acharya) की डिग्री प्राप्त की, सात स्वर्ण पदकों और कुलाधिपति स्वर्ण पदक के साथ. विश्वविद्यालय ने उनके चतुर्मुखी ज्ञान को देखते हुए उन्हें सभी अध्यापित विषयों में आचार्य घोषित किया. सन् 1981 में उन्होंने शोध कर पीएच.डी. (PH.D) की उपाधि प्राप्त की. सन् 1997 में उन्होंने डी.लिट् (D.LIT.) की उपाधि प्राप्त की.

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