बसपा सुप्रीमों मायावती को ‘सुप्रीम’ राहत, सुप्रीम कोर्ट में चल रहा केस हुआ बंद
सुप्रीम कोर्ट ने BSP सुप्रीमो मायावती को बड़ी राहत दी है... मुख्यमंत्री रहते हुए सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए खर्च कर अपनी और अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी...
4पीएम न्यूज नेटवर्कः उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती को सुप्रीम कोर्ट से उनके जन्मदिन के मौके पर बड़ी राहत मिली है….. मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए खर्च कर अपनी…. और अपनी पार्टी के सिंबल हाथी की मूर्तियां बनाने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका का कोर्ट ने बुधवार 15 जनवरी को निपटारा कर दिया है…. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मायावती के खिलाफ दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई बंद कर दी है…. कोर्ट ने 15 साल पहले दाखिल याचिका को पुराना मामला मानते हुए सुनवाई बंद की….. साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट के वकील रविकांत ने याचिका दायर की थी…… जिसमें उन्होंने मांग की थी कि जनता के पैसों का दुरुपयोग करने के कारण बहुजन समाज पार्टी से वह धन वसूला जाए….. इसके अलावा याचिका में यह भी कहा गया था कि जनता के पैसे से पार्टी के चुनावी चिन्ह हाथी की मूर्तियां पार्कों में बनवाना गलत है….. और सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को BSP का चुनाव चिन्ह जब्त करने का आदेश दे…..
आपको बता दें कि मायावती ने अपने कार्यकाल के दौरान लखनऊ में और नोयडा में अपनी पार्टी के सिंबल हाथी का पार्क निर्माण कराया था…. जिसको लेकर जबरदस्त विरोध हुआ था…. उसकी जांच के लिए और धन वापसी के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी….. और मायावती पर जनता के धन का दुरूपयोग करने का आरोप लगा था…. जिसपर लगातार पंद्रह साल से सुनवाई हो रही थी…. बता दें कि मायावती ने अपने शासन काल में लखनऊ में अंबेडकर पार्क का निर्माण कराया था….. जब उसका बडे पैमाने पर विरोध हुआ था…. उसके बाद कुछ दिनों के लिए पार्क निर्माण पर रोक भी लगी थी…. और जो एजेंसियां पत्थर सप्लाई कर रही थीं….. उनपर भी जांच हुई थी…. और जब जांच पूरी हुई और कुछ दिनों के रोक के बाद से दोबारा से हाथी की मूर्तियों की सप्लाई शुरू हुई और हाथी पार्क बनकर तैयार हो गया….. जिसके बाद से दोबारा मायावती सत्ता में तो नहीं आई लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा था…. और लगातार सुनवाई हो रही थी…. वहीं कल मायावती का जन्मदिन था…. और सुप्रीम कोर्ट ने जन्मदिन पर मायावती को बड़ा तोहफा देते हुए मामले पर सुनवाई बंद कर दी है…..
हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग नहीं मानी….. जस्टिस बी वी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने दो वकीलों रविकांत….. और सुकुमार द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि अधिकांश याचिकाएं निष्फल हो गई हैं….. बेंच ने कहा कि चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं….. और मूर्तियों की स्थापना पर रोक नहीं लगाई जा सकती….. क्योंकि वे पहले ही स्थापित की जा चुकी हैं….. दरअसल जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं….. उस दौरान उन्होंने 2007 से 2012 तक अपने कार्यकाल के समय राजधानी लखनऊ और नोएडा में दो बड़े पार्कों का निर्माण करवाया था…… इन पार्कों में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, BSP के संस्थापक कांशीराम, पार्टी के चुनावी चिन्ह हाथी…… और खुद (मायावती) की कई मूर्तियां स्थापित की गई थीं….. ये मूर्तियां पत्थर और कांसे से बनाई गई थीं…..
वहीं वकीलों की तरफ से दायर याचिका में दावा किया गया था कि 52.20 करोड़ रुपये की लागत से साठ हाथी की मूर्तियां स्थापित करना सरकारी धन की बर्बादी है…… और चुनाव आयोग द्वारा जारी निर्देशों के विपरीत है….. वहीं उस समय मायावती ने कहा था कि पार्कों में हाथी की मूर्तियां महज वास्तुशिल्प डिजाइन थीं….. और उनकी पार्टी के प्रतीक का प्रतिनिधि नहीं थीं….. और उन्होंने कहा था कि मूर्तियों के लिए उचित बजट आवंटन किया गया था…… मायावती के इस काम की विरोधियों ने काफी आलोचना की थी….. उनके खिलाफ केस भी दर्ज किया गया था…. आपको बता दें कि वकीलों की ओर से दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि 2008-09 और 2009-10 के राज्य के बजट से कुल 2,000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल केवल मायावती की मूर्ति….. और चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियों को अलग-अलग जगहों पर स्थापित करने के लिए किया गया था….
वहीं वकील प्रकाश कुमार सिंह के जरिये दायर याचिका में दावा किया गया था कि 52.2 करोड़ रुपये की लागत से 60 हाथी की मूर्तियों की स्थापना न केवल जनता के पैसे की बर्बादी है….. बल्कि चुनाव आयोग द्वारा जारी सर्कुलर के भी विपरीत है….. 2 अप्रैल, 2019 को मायावती ने अपने फैसले को सही ठहराया था….. और शीर्ष अदालत को बताया था कि राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर उनकी आदमकद मूर्तियों और बीएसपी के चुनाव चिन्ह का निर्माण ‘लोगों की इच्छा’ का प्रतिनिधित्व करता है….. और उन्होंने कोर्ट को बताया कि कांग्रेस ने भी अतीत में देश भर में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पी वी नरसिम्हा राव सहित अपने नेताओं की मूर्तियां स्थापित की हैं…… उन्होंने राज्य सरकारों द्वारा मूर्तियां स्थापित करने के हालिया उदाहरणों का भी उल्लेख किया था…… जिसमें गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति, जिसे ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के रूप में जाना जाता है…..
इसके अलावा, बसपा सुप्रीमो ने कहा था कि भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी खजाने से अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची प्रतिमा का निर्माण किया है……. और उन्होंने कहा कि इस प्रकार, स्मारकों का निर्माण और मूर्तियों की स्थापना भारत में कोई नई घटना नहीं है….. और उन्होंने अदालत में दायर हलफनामे में कहा कि इसी तरह, केंद्र और राज्यों में सत्ता में रहने वाले अन्य राजनीतिक दलों ने भी समय-समय पर सरकारी खजाने से सार्वजनिक स्थानों पर विभिन्न अन्य नेताओं की प्रतिमाएं स्थापित की हैं…… लेकिन न तो मीडिया और न ही याचिकाकर्ताओं ने उनके संबंध में कोई सवाल उठाया है….. जिसके बाद कोर्ट ने 8 फरवरी, 2019 को कहा था कि मायावती को अपनी….. और अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न की प्रतिमाएं बनवाने में इस्तेमाल किए गए सार्वजनिक धन की राशि राज्य के खजाने में जमा करानी चाहिए…..