गुजरात में किसानों ने दूध बहाकर सरकार से पूछा सवाल, हमारी मेहनत सस्ती क्यों?

गुजरात के बनासकांठा और साबरकांठा में दूध की सही लागत मूल्य न मिलने पर नाराज किसानों ने दूध को सड़क पर फेंक दिया...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों गुजरात के साबरकांठा जिले से एक बड़ा आंदोलन सामने आया है…… जहां डेयरी किसान अपनी मेहनत का सही दाम मांगने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं……. उनकी मांग है कि दूध की खरीद की कीमत को बढ़ाया जाए……… ताकि उनकी लागत और मेहनत का उचित मुआवजा मिल सके…….. लेकिन इस प्रदर्शन ने एक नया मोड़ ले लिया है…… क्योंकि किसानों का गुस्सा केवल दूध के दाम तक सीमित नहीं है……. उनका सवाल है कि जब उनकी मेहनत को सस्ते में खरीदा जा रहा है…….. तो दूसरी तरफ भारत सरकार अमेरिकी डेयरी उत्पादों के लिए भारतीय बाजार क्यों खोल रही है…….. क्या यह कदम उनके हितों को और नुकसान पहुंचाएगा……

आपको बता दें कि 20 जुलाई को गुजरात के साबरकांठा जिले में साबर डेयरी के बाहर डेयरी किसानों ने जोरदार प्रदर्शन किया……. ये किसान अपनी मेहनत का सही दाम मांग रहे थे……. प्रदर्शन के दौरान सैकड़ों लीटर दूध सड़कों पर बहा दिया गया……. ताकि उनकी मांगों को गंभीरता से लिया जाए……. लेकिन यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण नहीं रहा……. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई……. जिसमें पथराव और आंसू गैस का इस्तेमाल हुआ……..

पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों ने हिंसा की…….. जिसमें तीन पुलिसकर्मी घायल हुए और चार पुलिस वाहन क्षतिग्रस्त हो गए…….. पुलिस ने लगभग 1,000 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है…….. जिसमें से 47 लोगों को गिरफ्तार किया गया है…….. इसमें कांग्रेस के पूर्व विधायक जशुभाई पटेल भी शामिल हैं…….. जो साबर डेयरी के निदेशक हैं……. दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष इसुदान गढ़वी ने सरकार और पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं…….

बता दें कि गुजरात भारत का डेयरी हब है…… यहां अमूल और साबर डेयरी जैसे सहकारी संगठन देश के दूध उत्पादन में अहम भूमिका निभाते हैं……. गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन अमूल ब्रांड का संचालन करता है…….. दुनिया की शीर्ष 20 डेयरी कंपनियों में 8वें स्थान पर है…….. यह हर दिन औसतन 310 लाख लीटर दूध का प्रॉसेसिंग करता है और 36 लाख किसानों को जोड़ता है……

लेकिन डेयरी किसानों का कहना है कि उनकी लागत लगातार बढ़ रही है…….. चारे की कीमत, पशुओं की देखभाल…… और अन्य खर्चों में इजाफा हुआ है…….. लेकिन दूध की खरीद की कीमत उनकी मेहनत के अनुरूप नहीं बढ़ी…….. साबरकांठा के किसानों का कहना है कि दूध की कीमत इतनी कम है कि वे नुकसान उठा रहे हैं…….. उनकी मांग है कि दूध की खरीद की कीमत को बढ़ाया जाए……. ताकि वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें……

इसके साथ ही किसानों का यह भी आरोप है कि डेयरी सहकारी समितियां……. और सरकार उनकी बात को गंभीरता से नहीं ले रही हैं……… सड़कों पर दूध बहाने का उनका कदम एक आखिरी हताश कोशिश थी…….. ताकि उनकी आवाज सुनी जाए……. लेकिन इस प्रदर्शन ने न केवल स्थानीय स्तर पर…….. बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान खींचा है……

वहीं अब बात करते हैं उस बड़े सवाल की……. जो किसानों के गुस्से को और भड़का रहा है…….. अमेरिका भारत पर अपने सस्ते डेयरी उत्पादों को भारतीय बाजार में बेचने के लिए दबाव डाल रहा है…….. इन पोस्ट्स में कहा गया है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजार को अमेरिकी दूध…… और डेयरी उत्पादों के लिए खोले…….. अगर ऐसा हुआ…… तो इसका सीधा असर भारतीय डेयरी किसानों पर पड़ सकता है……

अमेरिका में डेयरी उद्योग बड़े पैमाने पर मशीनीकृत…… और सब्सिडी पर आधारित है……. वहां दूध का उत्पादन लागत कम होती है…….. जिसके कारण उनके उत्पाद भारतीय बाजार में सस्ते हो सकते हैं…….. वहीं अगर भारतीय बाजार में सस्ते अमेरिकी डेयरी उत्पादों की बाढ़ आती है……. तो स्थानीय किसानों को और नुकसान होगा…….. उनकी मेहनत और लागत का मूल्य पहले ही नहीं मिल रहा…….. और अब विदेशी उत्पादों से प्रतिस्पर्धा उनके लिए और मुश्किल खड़ी कर सकती है……

हालांकि, यह दावा अभी पूरी तरह से प्रमाणित नहीं है…….. न तो भारत सरकार और न ही अमेरिकी सरकार ने इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी किया है….. फिर भी चल रही चर्चा और किसानों का गुस्सा इस बात की ओर इशारा करता है कि यह मुद्दा उनके लिए गंभीर चिंता का विषय है…….

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने हाल के वर्षों में गुजरात के डेयरी सेक्टर को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं……. 2022 में पीएम मोदी ने साबरकांठा में साबर डेयरी के विस्तार…… और कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया था……. इनमें 300 करोड़ रुपये की लागत से बना दुग्ध पाउडर संयंत्र…… और एसेप्टिक मिल्क पैकेजिंग प्लांट शामिल हैं…….. सरकार का दावा है कि इन परियोजनाओं से स्थानीय किसानों की आय बढ़ेगी…… और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा…….

इसके अलावा अमूल ने जनवरी 2025 में दूध की कीमतों में 1 रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी……… ताकि उपभोक्ताओं को राहत मिले…….. अमूल गोल्ड की कीमत 66 रुपये से घटकर 65 रुपये…….. और अमूल ताजा की कीमत 54 रुपये से घटकर 53 रुपये प्रति लीटर हो गई…….. GCMMF के प्रबंध निदेशक जयेन मेहता ने कहा कि यह कदम उत्पादन लागत में कमी……. और बेहतर प्रबंधन के कारण संभव हुआ……. लेकिन यह कटौती उपभोक्ताओं के लिए राहत भरी हो सकती है……. पर किसानों के लिए यह चिंता का विषय है…… उनकी लागत बढ़ रही है…….. और दूध की कीमतों में कमी उनके मुनाफे को और कम कर सकती है…….

दूसरी ओर मदर डेयरी ने अप्रैल 2025 में दिल्ली-एनसीआर में दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी…….. इसका कारण कच्चे दूध की खरीद लागत में वृद्धि बताया गया……. इससे साफ है कि डेयरी उद्योग में लागत का दबाव बढ़ रहा है…….. लेकिन इसका लाभ किसानों तक नहीं पहुंच रहा…….

डेयरी किसानों के सामने कई चुनौतियां हैं…… सबसे बड़ी चुनौती है बढ़ती लागत…… चारे की कीमतें, पशुओं के रखरखाव……. और अन्य खर्चों में पिछले कुछ वर्षों में भारी वृद्धि हुई है……. GCMMF के प्रबंध निदेशक जयेन मेहता ने खुद स्वीकार किया कि पिछले एक साल में लागत में 15% की वृद्धि हुई है……. लेकिन दूध की खरीद की कीमत में उतनी बढ़ोतरी नहीं हुई……. जितनी किसानों की जरूरत है…….

अमूल और मदर डेयरी जैसे बड़े ब्रांड्स के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण दूध की कीमतें कम रखने का दबाव रहता है……. लेकिन इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है……… तीसरी और सबसे बड़ी चिंता है विदेशी डेयरी उत्पादों का खतरा……. अगर भारत सरकार अमेरिकी डेयरी उत्पादों के लिए बाजार खोलती है…….. तो स्थानीय किसानों को और नुकसान हो सकता है……

तो सवाल यह है कि इस समस्या का समाधान क्या है? डेयरी किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए सरकार और सहकारी समितियों को मिलकर काम करना होगा…… सरकार और डेयरी सहकारी समितियों को किसानों की लागत को ध्यान में रखते हुए दूध की खरीद की कीमत बढ़ानी चाहिए……. इससे किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिलेगा…… चारे और पशुओं की देखभाल के लिए सब्सिडी दी जा सकती है…….. इससे किसानों की लागत कम होगी और वे कम कीमत पर भी मुनाफा कमा सकेंगे……

सरकार को भारतीय बाजार में विदेशी डेयरी उत्पादों के आयात पर सख्त नियम लागू करने चाहिए……. इससे स्थानीय किसानों को सुरक्षा मिलेगी…… किसानों को आधुनिक तकनीकों और पशुपालन के वैदिक उपायों के बारे में प्रशिक्षित किया जा सकता है…….. ताकि वे कम लागत में अधिक दूध उत्पादन कर सकें……. अमूल और साबर डेयरी जैसे सहकारी संगठनों को और मजबूत करना होगा…… ताकि किसानों को उनकी मेहनत का पूरा लाभ मिले……

वहीं इस पूरे मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है……. AAP और कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर किसानों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है…….. वहीं, बीजेपी का कहना है कि वह डेयरी सेक्टर को मजबूत करने के लिए लगातार काम कर रही है……. केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने हाल ही में आणंद में डेयरी किसानों……. और विशेष रूप से महिलाओं से मुलाकात की थी……. लेकिन सवाल यह है कि क्या ये मुलाकातें और परियोजनाएं किसानों की वास्तविक समस्याओं का समाधान कर पाएंगी…….

आपको बता दें कि किसानों का यह आंदोलन केवल दूध की कीमतों तक सीमित नहीं है…… यह एक बड़े सवाल को उठाता है कि क्या भारत सरकार अपने किसानों की मेहनत को सही मूल्य दे रही है……… जब देश का डेयरी सेक्टर दुनिया में अपनी पहचान बना रहा है……… तो क्या यह उचित नहीं कि इसके पीछे की मेहनत करने वाले किसानों को भी इसका लाभ मिले……..

गुजरात के डेयरी किसानों का यह प्रदर्शन एक चेतावनी है…….. अगर उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया गया…….. तो यह आंदोलन और उग्र हो सकता है……. सरकार को चाहिए कि वह किसानों के साथ संवाद स्थापित करे……. और उनकी समस्याओं का समाधान निकाले……… साथ ही, भारतीय बाजार को विदेशी उत्पादों के लिए खोलने से पहले स्थानीय किसानों के हितों को प्राथमिकता देनी होगी……

 

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