आम आदमी पार्टी बनी पंजाब की सरदार
- केजरीवाल मॉडल पर पंजाब की जनता ने लगाई मुहर
लखनऊ। पंजाब विधानसभा चुनावों के नतीजों के शुरुआती रुझानों से साफ है कि आम आदमी पार्टी स्पष्ट बहुमत के साथ राज्य में सरकार बनाने जा रही है। पार्टी का चुनावी एजेंडा बेरोजगारी, नशे के कारोबार पर रोक, भ्रष्टाचार मुक्त सरकार जैसे वादों पर केंद्रित था। पार्टी ने दिल्ली के अपने मॉडल को दिखाकर भी मतदाताओं का भरोसा जीतने की कोशिश की। पंजाब में परंपरागत रूप से कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल का ही दबदबा रहा है। इस बार हालात अलग थे। कांग्रेस, आप, शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन और भाजपा-पंजाब लोक कांग्रेस गठबंधनों ने ज्यादातर सीटों पर मुकाबलों को बहुकोणीय बना दिया। चुनाव से ठीक एक महीने पहले आप ने संगरूर के सांसद भगवंत सिंह मान को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर दिया। यह भी आप के पक्ष में गया। राज्य के मालवा प्रांत में मान एक लोकप्रिय सिख चेहरा है।
पंजाब में आप के उभरने के मुख्य कारण
सत्ता
विरोधी मत: कांग्रेस की चन्नी सरकार के खिलाफ जबरदस्त माहौल था। इससे सत्ता-विरोधी मत एकजुट हो गए। पंजाब में कांग्रेस न रोजगार के साधन दे पाई और न ही नशाखोरी से मुक्ति दिला सकी। भ्रष्टाचार भी जस का तस मुद्दा बना रहा। बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या रही है।
कांग्रेस की कलह
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में तनातनी थमी नहीं। इससे उसके वोट शेयर पर नेगेटिव असर पड़ा। पिछले साल सितंबर में अमरिंदर सिंह से इस्तीफा ले लिया गया था। इससे सिख आबादी कुछ हद तक कांग्रेस से नाराज भी थी। पंजाब कांग्रेस के प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू, मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच अनबन की खबरों से पार्टी को नुकसान हुआ।
दिल्ली मॉडल
आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली मॉडल दिखाकर पंजाब के मतदाताओं का ध्यान खींचा। 2014 लोकसभा चुनावों में पार्टी ने तीन सीट जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी।
आप का चुनावी एजेंडा
आप के 10 सूत्री चुनाव एजेंडा में बेरोजगारी, नशाखोरी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे प्रमुख थे। आप ने चुनावी घोषणा पत्र में सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति में सुधार का वादा किया था। किसानों की समस्याओं को हल करने का वादा भी आप के पक्ष में रहा।
किसानों का विरोध
केंद्र की भाजपा सरकार 2020 में तीन कृषि कानून लेकर आई तो पंजाब के किसान उन्हें रद्द करने के लिए आंदोलन करने में सबसे आगे थे। इस मुद्दे पर केजरीवाल पूरी तरह किसानों के साथ खड़े दिखाई दिए। इसका भी फायदा आप को मिला।