प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया
4PM न्यूज़ नेटवर्क: प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर बड़ी खबर सामने आ रही है। प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। इस मामले में कई याचिकाएं पहले से लंबित हैं। कांग्रेस पार्टी ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। मामले में 17 फरवरी को सुनवाई होगी, वहीं कांग्रेस का कहना है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए यह अधिनियम जरूरी है। कांग्रेस ने अपनी याचिका में इस कानून को भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिए आवश्यक बताया है।
पार्टी ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के के खिलाफ दायर मामलों में दखल की मांग की है। दरअसल, उपास्थना स्थल कानून (विशेष प्रावधान) अधिनियम की वैधता के विरुद्ध कई मामले दायर किए गए हैं। बता दें कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 धार्मिक स्थलों के चरित्र को उसी रूप में संरक्षित करता है, जैसा वे 15 अगस्त 1947 को थे। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट दूसरी याचिकाओं को सुनते हुए 12 दिसंबर को अंतरिम आदेश जारी कर चुका है। उस आदेश में देश भर की अदालतों से फिलहाल धार्मिक स्थलों के सर्वे का आदेश न देने को कहा गया था।
इससे पहले इस मामले में जमीयत उलेमा ए हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम भी 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुकी है। सीपीएम ने देश भर में मस्जिदों और दरगाहों के हिंदू मंदिर होने का दावा करते हुए दाखिल हो रहे मुकदमों का विरोध किया है। पार्टी ने इसे धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा बताया है।
जानिए क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट?
आपको बता दें कि 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि देश के हर धार्मिक स्थल की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी, उसे बदला नहीं जा सकता। इस कानून को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई हैं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध समुदाय को अपना अधिकार मांगने से वंचित करता है। किसी भी मसले को कोर्ट तक लेकर आना हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है।
महत्वपूर्ण बिंदु
- ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ नागरिकों को इस अधिकार से वंचित करता है।
- यह न सिर्फ न्याय पाने के मौलिक अधिकार का हनन है, बल्कि धार्मिक आधार पर भी भेदभाव है।