कांग्रेस करेगी बीजेपी के भ्रष्टाचार पर वार

कर्नाटक में झटका खा सकती है बोम्मई सरकार

  • सिद्धारमैया का पलड़ा भारी, बढ़ रही जनता में पैठ
  • येदियुरप्पा और देवेगौड़ा का भी पड़ेगा प्रभाव
  • अलग-अलग लग रहे कयास

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
बेंगलुरु। दक्षिण के दंगल का बिगुल बज गया है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही पार्टियों ने कमर कस ली है। अभी तक जिस तरह का माहौल बन रहा है उसमें कांग्रेस की स्थिती मजबूत लग रही है। वहां की बीजेपी सरकार को भ्रष्टाचार के मामले में जैसे वह घेर रही उससे जनता के बीच उसकी छवि मजबूत हो रही जबकि भाजपा को बगले झांकनी पर रही हैै। राज्य के जनता के बीच हुए सर्वे में कांग्रेस का पलड़ा भारी लग रहा है। बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर का भी नुकसान उठाना पड़ सकता हैं।
हालांकि कई तरह के सर्वे किए गए कहीं पर दोनों में टक्कर भी दिख रहा है। खैर 13 मई को पता चल जाएगा किसका पलड़ा भारी पड़ता है। कर्नाटक में भले ही अभी बीजेपी की सरकार है लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव का नतीजा त्रिशंकु रहा था। 2008 में भी कर्नाटक में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों की ओर से दावों का दौर शुरू हो गया है। सीएम बसवराज बोम्मई ने कहा है कि बीजेपी फिर बहुमत से सरकार बनाएगी। उधर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार कह रहे हैं कि कांग्रेस पूरी तरह तैयार है। वहीं जेडीएस भी मैदान में दावेदारी ठोक रही है। आइए जानते हैं कर्नाटक में आए हाल के कुछ सर्वे में किस पार्टी को कितनी सीटें मिल रही हैं।
लोक पोल के ओपिनियन पोल में कांग्रेस कर्नाटक में सरकार बनाती दिख रही है। कांग्रेस को इस सर्वे में 116 से 123 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। वहीं बीजेपी को 77 से 83 और जेडीएस को 21 से 27 सीटें मिल सकती हैं। अन्य के खाते में एक से 4 सीटें जा सकती हैं। लोक पोल का दावा है कि इस सर्वे के लिए 45 हजार लोगों की राय ली गई और 45 दिन तक चुनावी विश्लेषकों के रिसर्च के बाद इसके नतीजे आए हैं। वोट प्रतिशत की बात करें तो इस सर्वे में कांग्रेस को 39 से 42 प्रतिशत वोट मिलते दिख रहे हैं। वहीं बीजेपी को 33-36 प्रतिशत और जेडीएस को 15 से 18 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं। पॉपुलर पोल्स एजेंसी के ओपिनियन पोल में कर्नाटक में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने का अनुमान है। इस सर्वे के मुताबिक 224 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। इस सर्वे के मुताबिक कर्नाटक की सत्ता पर काबिज बीजेपी को 82 से 87 सीटें मिल सकती हैं। राज्य में बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा 113 का है। पापुलर पोल्स के सर्वे में कांग्रेस को भी बीजेपी के बराबर 82 से 87 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। वहीं 2018 के चुनाव के बाद कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनाने वाली एचडी कुमारस्वामी की जेडीएस को 42 से 45 सीटें मिल सकती हैं।

51 आरक्षित सीटें चुनाव में निभातीं हैं महत्वपूर्ण भूमिका

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में 12 मई को हुआ था। 224 सीटों के उस चुनाव में बीजेपी ने 104 सीटें जीती थीं। लेकिन कांग्रेस ने एचडी कुमारस्वामी की जेडीएस और अन्य के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। बाद में जेडीएस और कांग्रेस के कई विधायक अलग हो गए थे और बीजेपी बीएस येदियुरप्पा की अगुवाई में सरकार बनाने में सफल हो गई थी। बेंगलुरु-कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। साथ ही 224 विधानसभा क्षेत्रों में हलचल बढ़ गई है। राज्य सियासी समीकरण तेज हो गए हैं। कर्नाटक में 51 आरक्षित सीटें चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 2008 से अंतिम परिसीमन किया गया था। इस परिसीमन के विश्लेषण से पता चलता है कि जिस पार्टी ने सबसे अधिक आरक्षित सीटें जीतीं, उसी ने कर्नाटक में हमेशा सरकार बनाई है। कर्नाटक में 51 सीटों में से 15 अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 36 अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित हैं। जेडीएस ने 2008, 2013 और 2018 के चुनावों के रिजल्ट देखें तो जेडीएस को खास आरक्षित सीटों पर जीत नहीं मिली थी। वहीं कांग्रेस और बीजेपी तीन सीटों के अंतर से कांटें की टक्कर पर थी। जितनी बार कांग्रेस ने सरकार बनाई, आरक्षित सीटों की संख्या के मामले में बीजेपी के मुकाबले उसका प्रदर्शन कहीं बेहतर रहा।

इन चुनावों में अंतर को बड़ा करेंगे: खरगे

कांग्रेस के एक अनुसूचित जाति नेता और पूर्व मंत्री प्रियांक खडग़े ने कहा, हम इन चुनावों में अंतर को बड़ा करेंगे। उन्होंने सरकार की हालिया आरक्षण नीति और अन्य बातों के अलावा अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बीच समग्र असंतोष को कांग्रेस के विश्वास के लिए जिम्मेदार ठहराया। जबकि कांग्रेस का तर्क है कि नई नीति विभाजनकारी है और प्रमुख लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों को एक कच्चा सौदा मिला है, बीजेपी को लाभ मिलने का भरोसा है। बीजेपी एससी मोर्चा के प्रमुख चलावाडी नारायणस्वामी ने कहा, विपक्ष के मन में केवल असंतोष है और शिकारीपुरा में सोमवार की हिंसा के पीछे भी उन्हीं का हाथ है। वहीं चलावाडी ने कहा कि समुदाय बीजेपी से खुश हैं और नवीनतम नीति केवल हमारी ताकत में इजाफा करेगी। उन्होंने कहा कि हम आरक्षित सीटों पर अपनी संख्या में सुधार करेंगे और 2008 के प्रदर्शन को भी तोड़ेंगे। आरक्षण में हालिया बदलाव के बिना भी बीजेपी का प्रदर्शन कांग्रेस के लगभग बराबर हो गया है, ऐसी सीटों पर गैर-समुदाय (एससी और एसटी) वोटों के समेकन के लिए अन्य बातों के अलावा जिम्मेदार ठहराया जाता है।

सेंट्रल-कोस्टल कर्नाटक में बीजेपी आगे

इस सर्वे के मुताबिक सेंट्रल और कोस्टल कर्नाटक में बीजेपी सबसे आगे है। सेंट्रल कर्नाटक की 27 सीटों में से 17 से 19 सीटें बीजेपी के खाते में आ सकती हैं। कांग्रेस को यहां 7 से 9 और जेडीएस को 8-9 सीटें मिलने का अनुमान है। कोस्टल कर्नाटक में विधानसभा की 19 सीटें हैं। यहां बीजेपी को 12 से 14 जबकि कांग्रेस को 5 से 7 सीटें मिल सकती हैं। 28 सीटों वाले बेंगलुरु क्षेत्र में कड़ी टक्कर है। सर्वे के मुताबिक यहां पर कांग्रेस 14 से 16 सीटें जीत सकती है। वहीं बीजेपी को 12 से 24 सीटें मिलने का अनुमान है। जेडीएस को एक से दो सीटें मिल सकती हैं।

ओल्ड मैसूर पर जेडीएस की बढ़त बरकरार

मुंबई कर्नाटक इलाके की बात करें तो यहां की 44 में से 22-24 सीटें बीजेपी के हिस्से में आ सकती हैं। वहीं कांग्रेस को 16 से 18 सीटें मिल सकती हैं। जेडीएस को इस क्षेत्र में 4 से 6 सीटें मिल सकती हैं। ओल्ड मैसूर इलाका जेडीएस का गढ़ रहा है। वोक्कालिगा समुदाय का यहां वर्चस्व है। सर्वे के मुताबिक इस क्षेत्र की 66 में से जेडीएस को 25 से 30 सीटें मिल सकती हैं। कांग्रेस को 21-23 और बीजेपी को 11 से 13 सीटें मिलने का अनुमान है। हैदराबाद-कर्नाटक इलाके में 40 सीटें हैं। कांग्रेस को यहां 20 से 22 सीटें मिल सकती हैं। बीजेपी को 12 से 15 और जेडीएस को 5 से 7 सीटें मिलने का अनुमान है।

2018 में क्या था चुनाव नतीजा

2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। पार्टी को 224 में से 104 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस ने 80 और जेडीएस ने 37 सीटें जीती थीं। मिलीं। येदियुरप्पा की वापसी के बाद हुए इस पहले विधानसभा चुनाव में बीजेपी बहुमत से 9 सीट पीछे रह गई थी। वहीं वोट प्रतिशत देखें तो बीजेपी को 36.3, कांग्रेस को 38.1 और जेडीएस को 18.3 फीसद वोट शेयर मिला था। नतीजों के बाद येदियुरप्पा ने सरकार बनाई लेकिन बहुमत न जुटा पाने से विश्वास मत पर वोटिंग से पहले ही उन्होंने इस्तीफा सौंप दिया। कांग्रेस और जेडीएस इसके बाद साथ आए। एचडी कुमारस्वामी सीएम बने लेकिन अंदरूनी खींचतान की वजह से यह सरकार भी 14 महीने ही चल सकी। कुमारस्वामी 23 जुलाई 2019 को विश्वास मत हार गए। इसके बाद येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी ने फिर से सरकार बना ली। एक दर्जन बागी विधायक बीजेपी में शामिल हुए और दोबारा उपचुनाव में जीतकर आए। चुनाव से एक साल पहले बीजेपी ने सीएम बदला। 28 जुलाई 2021 को येदियुरप्पा की जगह एक और लिंगायत चेहरे बसवराज बोम्मई ने मुख्यमंत्री की शपथ ली।

2008 का समीकरण

2008 में, जब बीएस येदियुरप्पा ने बीजेपी का नेतृत्व किया, तो भगवा पार्टी ने आरक्षित 51 में से 29 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं। 2013 में सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार सत्ता में आई। तब कांग्रेस ने कुल आरक्षित सीटों में से 27 सीटें जीती थीं, वहीं बीजेपी को महज 8 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। 2018 में कांग्रेस की 8 सीटें कम हो गईं और पार्टी ने महज 19 सीटें जीतीं। बीजेपी की सीटों की संख्या सुधरी और यह 23 पर पहुंच गई। हालांकि कांग्रेस ने जडीएस के साथ संयुक्त रूप से सरकार बनाई लेकिन यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया।

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