पिता का पता लगाने जबरदस्ती बच्चे का डीएनए टेस्ट नहीं कर सकते : हाईकोर्ट
- रेप पीड़िता की मंजूरी जरूरी, दुष्कर्म केस में बड़ा फैसला
लखनऊ। दुष्कर्म की वारदात के बाद जन्मे बच्चे के पिता का पता लगाने के लिए उसका डीएनए टेस्ट कराने के लिए पीड़िता को मजबूर नहीं किया जा सकता। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक अहम फैसले में यह बात कही। कोर्ट ने पॉक्सो कोर्ट के उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें रेप पीड़िता के बच्चे के पिता का पता करने का आदेश दिया गया था। आदेश जस्टिस संगीता चंद्रा की एकल पीठ ने रेप पीड़िता की मां की ओर से दाखिल याचिका को मंजूर करते हुए दिया। कोर्ट ने कहा कि सवाल यह नहीं था कि अभियुक्त पीड़िता के बच्चे का पिता है या नहीं, बल्कि पॉक्सो कोर्ट को यह तय करना था कि अभियुक्त ने पीड़िता से रेप किया है या नहीं।
बता दें कि 2017 में सुल्तानपुर की कोतवाली देहात थाने में पीड़िता की मां ने एफआईआर दर्ज कराई थी। इसमें आरोप लगाया था कि अभियुक्त ने उसकी 14 साल की बेटी का 7 महीने पहले रेप किया था, जिससे उसकी बेटी गर्भवती है। जांच के बाद पुलिस ने आरोप-पत्र दाखिल किया। हाईकोर्ट ने आदेश को खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता की सहमति के बिना बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता था। यह हो सकता है कि डीएनए टेस्ट से इंकार करना पीड़िता के खिलाफ जाए, फिर भी बिना सहमति के डीएनए टेस्ट का आदेश देना कानूनी तौर पर ठीक नहीं है।
मंत्री के बेटे आशीष को जमानत के लिए मिली एक और तारीख
लखनऊ। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे और लखीमपुर हिंसा मामले में मुख्य आरोपी आशीष मिश्र उर्फ मोनू की जमानत याचिका आज फिर खारिज हो गई। लखनऊ बेंच में हुई सुनवाई में उसे राहत नहीं मिली। उसकी जमानत याचिका पर सुनवाई न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार की एकल पीठ ने की।
जमानत याचिका पर 29 नवंबर को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार को 10 दिनों में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था। उसकी जमानत इसके पूर्व सत्र अदालत से खारिज हो चुकी है। इसके बाद उसने हाईकोर्ट की शरण ली है। बता दें कि 3 अक्टूबर को लखीमपुर में हिंसा भड़की थी। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी का आरोपी बेटा आशीष मिश्र ने 4 अक्टूबर को कोर्ट में सरेंडर किया था।