मोदी के बिगड़े बोल, पवार पर किया तीखा हमला 

देश में लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी बयानबाजी जारी है... इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पद की गरिमा को भूल बैठे हैं... और विपक्ष पर तीखी भाषा का प्रयोग करते हुए हमलावर हैं...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः देश में लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी बयानबाजी जारी है… इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पद की गरिमा को भूल बैठे हैं… और विपक्ष पर तीखे शब्दों का प्रयोग करते हुए हमलावर हैं… लेकिन उनकी बातों को विपक्ष के नेता सिरे से नकार देते है… और अपने चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं… और जनता के बीच में पहुंचकर मोदी सरकार की नाकामी को गिना रहे है… बता दें लोकसभा चुनाव को लेकर देश के दूसरे सबसे अधिक सीटों वाले महाराष्ट्र में भी सियासी सरगर्मी जोंरो पर हैं… पीएम नरेंद्र मोदी एक के बाद एक रैलियां कर रहें हैं… और जनता को साधने के लिए किसी भी प्रकार का कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहें है… बता दें कि महाराष्ट्र की रैलियों में शरद पवार समेत विपक्ष के सभी नेताओं को घरेने में जुटे मोदी अपने विकास को नहीं बता रहे हैं… ना ही जनतो को यह बता रहें है कि हमने आपके लिए यह ऐजेंडा बनाया है… जिससे देश की जनता को लाभ मिलेगा उनके जीवन स्तर में सुधार आएगा… नरेंद्र मोदी के पास जनता को मुर्ख बनाने के अलावा और कोई भी ऐजेंडा नहीं बचा हैं…. बता दें महाराष्ट्र में डबल इंजन की सरकार है… लेकिन वहां के ग्रामीण इलाकों का कोई विकास नहीं है… वहां के गांव के लोग प्यास से मर रहे हैं… पानी की किल्लत हो गई  है… लेकिन सरकार के पास उस गांव को लेकर कोई ध्यान नहीं है… सिर्फ मोदी के पास जुमला है और कुछ नहीं… वर्तमान की बात छोड़कर दो हजार सैंतालीस की बात करने वाले मोदी को जनता के दुख कब दिखेंगे… यह सोचने वाली बात है….

राकांपा (सरद पवार) प्रमुख शरद पवार के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बढ़ता हमला उनके पक्ष में सहानुभूति कारक को कुंद करने के लिए एक सुविचारित कदम है…. भाजपा अपने ‘मिशन महाराष्ट्र’ उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए जातिगत ध्रुवीकरण…. और प्रतिद्वंद्वी दलों की व्यक्तिगत अपील की बाधाओं को पार करने के लिए ‘मोदी जादू’ पर भरोसा कर रही है…. लेकिन बीजेपी भूल गई है मोदी अब सिर्फ मोदी बनकर रह गए है… अब इस लोकसभा चुनाव में उनका कोई जादू नहीं चलने वाला है… वहीं  अतीत से बिल्कुल अलग हटकर…. पवार के खिलाफ मोदी का हमला कड़ा रहा है…. पहले यह हमेशा उनकी नीतियों तक ही सीमित था…. लेकिन अब पीएम ने उनकी राजनीति पर सवाल उठाए हैं…..

बता दें कि मोदी और पवार के बीच सौहार्दपूर्ण समीकरणों को देखते हुए…. कड़वे अभियान ने भाजपा और राकांपा (सपा) दोनों के भीतर कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है…. पश्चिमी महाराष्ट्र में एक चुनावी रैली में पीएम ने कहा कि महाराष्ट्र में एक ‘भक्ति आत्मा’ है…. यदि यह सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है….. तो यह बिगाड़ने वाले की भूमिका निभाने में आनंद लेता है…. महाराष्ट्र ऐसी भटकती आत्मा का कैदी और शिकार रहा है….

वहीं इन सभी बयानों का पवार ने कोई जवाब नहीं दिया है…. उनका मानना है कि काटने वाला हमला एक स्पष्ट संकेतक है… कि मोदी को एहसास हो गया है कि वह जमीन खो रहे हैं…. हमले को अपने अंदाज में लेते हुए, पवार ने कहा कि “हां, मैं एक ‘अस्वस्थ आत्मा’ (अशांत आत्मा) हूं…. यह बेचैनी उन किसानों के लिए है जो मुश्किलों से जूझ रहे हैं…. मेरी बेचैनी महंगाई की मार झेल रहे आम लोगों की तकलीफों को उजागर करने की है।…. मैं लोगों की समस्याओं को उजागर करने के लिए इस बेचैनी को सौ बार भी बरकरार रखने को तैयार हूं… बता दें मोदी अपने पद की गरिमा को भूल गए हैं… और जनता को बरगलाने के लिए रोज नए-नए तरीकों का इजाद कर रहे हैं… और भरे मंच से अपने पद की गरिमा को दरकिनार कर बयान देतें हैं… वहीं इतिहास में पहली बार इस तरह की बयानवाजी देखने को मिली है…. ऐसा इतिहास में कभी भी नहीं हुआ है… जब भरे मंच से किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह की बयानबाजी की हो….

जिसको लेकर कहा जाता है कि प्यार और युद्ध में सब कुछ जायज है…. ‘भटकती आत्मा’ शब्द का प्रयोग आमतौर पर उन लोगों के लिए किया जाता है… जो अपनी इच्छा का पीछा कर रहे हैं… लेकिन बार-बार असफल हो रहे हैं…. वहीं बात मोदी पर लागू होती है… वो अपने कुर्सी के मोह में इतने बंधे हुए है कि वो अपने पद की गरिमा को भूल बैठे है…. वहीं भाजपा स्वीकार करती है कि दो हजार उन्नीस विधानसभा चुनाव के बाद पवार ने महाराष्ट्र का राजनीतिक विमर्श बदल दिया था…. वह पवार ही थे जो तीन दशक पुराने शिवसेना… और भाजपा गठबंधन को तोड़ने में सफल रहे… उद्धव ठाकरे को कांग्रेस-शिवसेना-एनसीपी गठबंधन सरकार का सीएम बनाकर उन्होंने बीजेपी का राजनीतिक अलगाव सुनिश्चित किया…. अगर उद्धव ठाकरे दो हजार उन्नीस के चुनावों के बाद जनता के जनादेश पर कायम रहते…. तो न तो ठाकरे और न ही पवार ऐसी स्थिति में आते…. जहां उनकी पार्टियाँ विभाजित हो जातीं…. उन्होंने अपने कृत्यों की कीमत चुकाई है……

आपको बता दें कि तर्क और बयानबाजी से परे, तथ्य यह है… कि ठाकरे की सेना इक्कीस सीटों पर और शरद पवार की राकांपा दस सीटों पर चुनाव लड़ रही है…. साथ में, वे राज्य की अड़तालीस लोकसभा सीटों में से इकतीस सीटें बनाते हैं…. बाकी सत्रह सीटों पर सहयोगी कांग्रेस चुनाव लड़ रही है…. अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के साथ, भाजपा को ग्यारह लोकसभा सीटों के साथ पूरे पश्चिमी महाराष्ट्र पर कब्ज़ा करने की उम्मीद थी….. लेकिन सीनियर पवार ने अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए पुराने प्रतिद्वंद्वियों के साथ टूटी हुई दूरियों को सुधारने के लिए आक्रामक तरीके से काम किया है…. माढ़ा में, पवार ने विजयसिंह मोहिते पाटिल को भाजपा छोड़कर राकांपा (सपा) में शामिल कराया…. और उन्होंने भाजपा के मौजूदा सांसद रंजीतनायक निंबालकर के खिलाफ माढ़ा से धैर्यशील मोहिते पाटिल को टिकट की पेशकश की….

वहीं मराठा आरक्षण के कारण मराठा बनाम ओबीसी ध्रुवीकरण हो रहा है…. भाजपा मोदीत्व पर ध्यान केंद्रित रखना चाहती है…. जिसको लेकर बीजेपी के एक रणनीतिकार ने कहा कि पवार और ठाकरे पर मोदी का हमला उनके चुनावी आधार में सेंध लगाना और उन्हें प्रतिबंधित करना है…. एनसीपी और शिवसेना को तोड़ने के लिए ऑपरेशन लोटस की इंजीनियरिंग के बावजूद…. भाजपा सीनियर पवार और ठाकरे के चुनावी आधार को पूरी तरह से नष्ट नहीं कर पाई है….. वहीं राज्य राकांपा प्रमुख जयंत पाटिल ने कहा कि हमले की प्रकृति से पता चलता है कि भाजपा पवार और ठाकरे से डरती है…. और उन्हें एहसास हो गया है कि वे महाराष्ट्र में पवार साहब के समर्थन आधार को हिला नहीं पाए हैं…

जबकि डिप्टी सीएम अजीत पवार के नेतृत्व वाली राकांपा चौव्वन में से चालीस विधायकों…. और तीन में से एक सांसद को अपने पाले में करने में सफल रही है…. लेकिन जो बात अस्पष्ट बनी हुई है… वह है वोट बैंक में बदलाव…. इसी तरह, सीएम एकनाथ शिंदे छप्पन में से चालीस विधायकों और उन्नीस में से तेरह सांसदों को अपने पाले में करके ठाकरे को मात देने में सफल रहे हैं… लेकिन जमीनी स्तर के सैनिकों की निष्ठा का परीक्षण नहीं किया गया है…. इस संदर्भ में, पवार और ठाकरे के खिलाफ पीएम का हमला उनके नेतृत्व की विफलता को उजागर करने… और उन पर पकड़ बनाए रखने वालों को दूर करने की एक चाल है….. वहीं मोदी-पवार की दोस्ती के प्रतिद्वंद्विता में बदलने के उदाहरण बहुत हैं…. फिर भी, उन्होंने सह-अस्तित्व की कला में महारत हासिल कर ली है…..

आपको बता दें कि पिछले साल शिरडी में मोदी ने किसानों के कल्याण में पवार के योगदान पर सवाल उठाया था…. वहीं महाराष्ट्र में, कुछ लोगों ने किसानों के नाम पर राजनीति की…. एक बहुत बड़े नेता जिन्होंने दिल्ली में कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया… और उन्होंने किसानों के लिए क्या किया है कि मोदी ने पूछा कि व्यक्तिगत रूप से, मेरे मन में उनके लिए सम्मान है…. पाटिल के मुताबिक यह वही मोदी हैं जिन्होंने कृषि क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए पवार की जमकर तारीफ की थी… ऐसे उदाहरण भी बहुतायत में हैं जब मोदी और पवार ने चुनावों से पहले एक-दूसरे पर तीखे हमले किए केवल अपने राजनीतिक मतभेदों को दूर करने के लिए और बाद में एक साझा मंच साझा करने के लिए…..

वहीं भाजपा द्वारा राकांपा में विभाजन कराने के एक महीने बाद…. मोदी और पवार ने पुणे में एक पुरस्कार समारोह में एक मंच साझा किया… और एक अगस्त को लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में…. जहां प्रधानमंत्री को स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक की एक सौ तीनवीं पुण्य तिथि पर तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया गया…. बता दें कि मोदी और पवार ने एक-दूसरे का गर्मजोशी से स्वागत किया… और मुस्कुराहट साझा की… वावजूद उसके लोकसभा चुनाव में अपने पद की गरिमा भूलकर पीएम मोदी ने अपने पद की सभी हदों को पार कर चुके हैं…. और अपनी नाकामी को छुपाने के लिए विपक्ष को टारगेट कर रहे है… वहीं पीएम मोदी के नफरती अंदाज का जनता क्या जवाब देती  है यह आने वाला वक्त तय करेगा…

 

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