राष्ट्रपति भवन में गूंजी अहिल्याबाई की दास्तान

- शहर के दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी और प्रज्ञा शर्मा ने सुनायी दास्तान
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ल्ली। देवी अहिल्याबाई होलकर की तीन सौवीं जयंती के अवसर पर शहर के मशहूर दास्तानगो डॉ हिमांशु बाजपेयी और डॉ प्रज्ञा शर्मा ने राष्ट्र पति भवन में दास्तान ए अहिल्या सुनायीद्घ गत 29-30 मई को राष्ट्रपति भवन, संस्कृति मंत्रालय एवं साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में एक साहित्यिक सममिलन आयोजित किया गया था, जिसका विषय था: कितना बदल गया है साहित्य? सम्मिलन का शुभारंभ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया। इस सम्मिलन की सांस्कृतिक संध्या के तौर पर अहिल्याबाई के जीवन पर केंद्रित दास्तानगोई प्रस्तुत की गई।
कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्र पति भवन कल्चरल सेंटर में हुआ। दास्तानगोई की शुरुआत राघोबा की पत्नी आनंदी बाई के उस प्रसंग से होती है जहाँ वो अपनी दासी को अहिल्याबाई की मक़बूलियत का राज़ जानने को भेजती हैं। दासी उनको बताती है कि अहिल्या बाई बेहद सादा जि़ंदगी गुज़ारती हैं, ना ज़ेवर ना कोई तडक़ भडक़ मगर उनकी महान सोच और कल्याणकारी कामों की वजह से ही वो इतनी मशहूर हैं। इसके बाद अहिल्या बाई के मल्हार राव होलकर से भेंट और होलकर वंश की बहू बनने और विधवा होने का प्रसंग सुनाया। सती प्रथा के उस दौर में अपनी प्रजा की खातिर अहिल्याबाई ने ख़ुद को सती होने से रोक लिया और ख़ुद को जनहित के कार्यों में लगा दिया। उनके इंसाफ़ का किस्सा बहुत मशहूर था. उन्होंने न्याय के लिए अपने बेटे माले राव को मृत्युदंड की सज़ा सुनायी थी क्यूंकि उनके बेटे ने एक बछड़े को रथ से कुचल कर मार डाला था। दास्तान में बताया गया कि देवी अहिल्या सिफऱ् धार्मिक क्षेत्र में ही लगनशील नहीं थीं बल्कि युद्ध कला में भी माहिर थीं। उन्होंने तीन बार रामपुरा के चन्द्रावत को हराया।



