फिर गरमाया गंगा में तैरते शवों का मामला, 4PM के संपादक संजय शर्मा की याचिका पर एक्शन में एनजीटी यूपी-बिहार तक मचा हड़कंप
- यूपी व बिहार सरकार से कोरोना काल से अब तक की मांगी गंगा में तैरते और तटों पर दफनाए गए शवों की डिटेल
- 4PM के संपादक संजय शर्मा ने संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के लिए कोरोना प्रोटोकॉल के पालन के निर्देश जारी करने की उठायी थी मांग
- मांगी दाह संस्कार और दफनाने के लिए वित्तीय सहायता देने की जानकारी
- पूछा,नदी में मानव शवों को प्रवाहित और तटों पर दफनाने से रोकने को उठाए गए कौन-कौन से कदम
- अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह व स्वास्थ्य को दिए चार अगस्त तक तथ्यात्मक रिपोर्ट जमा करने के निर्देश
- एनजीटी के तेवर से अधिकारियों में मचा हडक़ंप, 4PM ने प्रमुखता से प्रकाशित की थी गंगा में बहते शवों की खबर
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। कोरोना काल में गंगा में बहती लाशों का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। 4PM के संपादक संजय शर्मा की याचिका पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने यूपी और बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है। एनजीटी ने दोनों राज्यों से कोरोना काल से अब तक गंगा में प्रवाहित और दफनाए गये शवों की विस्तृत जानकारी तलब की है। साथ ही गंगा किनारे शवों को प्रवाहित या दफनाये जाने से रोकने को लेकर क्या-क्या जागरूकता कार्यक्रम किये गये और अंतिम संस्कार के लिए कितनी वित्तीय सहायता दी गयी इस पर भी विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इस मामले में चार अगस्त तक राज्य सरकारों से जवाब मांगा गया है। नोटिस जारी होने के बाद यूपी से बिहार तक हडक़ंप मच गया है।
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा में तैरते शवों को लेकर एनजीटी ने सख्त रुख अपनाया है। 4PM के संपादक संजय शर्मा की संक्रमित शवों के निस्तारण के लिए उचित प्रोटोकॉल के पालन का निर्देश जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. अफरोज अहमद की पीठ ने पूछा कि उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में साल 2018 और 2019 में कोविड-19 की शुरुआत से पहले और 2020, 2021 में कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद तथा इस साल 31 मार्च तक गंगा नदी में कितने मानव शव तैरते देखे गये और कितने नदी किनारे दफनाये गये। पीठ ने पूछा, कितने मामलों में उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकारों ने शवों के दाह संस्कार या दफनाने के लिए वित्तीय सहायता दी? गंगा नदी में शवों को प्रवाहित करने या नदी के किनारे शवों को दफनाने से रोकने के लिए जन जागरुकता लाने तथा जन भागीदारी बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाये गये हैं? एनजीटी ने उत्तर प्रदेश और बिहार की सरकारों के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) और अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) को इस विषय पर तथ्यात्मक सत्यापन रिपोर्ट जमा करने को कहा है। उल्लेखनीय है कि कोरोना काल में यूपी और बिहार के अनेक हिस्सों में नदी में लाशें बहती दिखी थीं। 4PM ने इसे प्रमुखता से छापा था और अपने यूट्यूब चैनल पर इसे विस्तार से दिखाया था। इस मामले में 4PM के संपादक संजय शर्मा ने सरकार से भी मामले पर संज्ञान लेने को कहा था लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने पर उन्होंने एनजीटी में जनहित याचिका दायरकी थी।
4PM के संपादक से एनजीटी ने जागरूकता के लिए मांगे सुझाव
एनजीटी ने याचिकाकर्ता और 4PM के संपादक संजय शर्मा से कोरोना के मद्देनजर गंगा में शवों को प्रवाहित और तट पर दफनाए जाने से रोकने को लेकर लोगों को किस प्रकार जागरूक किया जाए, इसका सुझाव भी मांगा है।
राज्य सभा में भी उठा था मामला
आप के राज्य सभा सांसद संजय सिंह ने भी 4PM के संपादक संजय शर्मा के एनजीटी को दी गयी याचिका का हवाला देते हुए सभापति को पत्र लिखा था। उन्होंने पत्र में कहा था कि महामारी के दौरान उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार ने मृत देह के अंतिम संस्कार का उचित प्रबंध नहीं किया। इसके कारण लोगों ने संक्रमण से मृत लोगों की लाशों को गंगा समेत कई नदियों में बहा दिया। 4PM के संपादक संजय शर्मा द्वारा इस मामले में नोटिस भेजने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। वहीं नदी के पानी का उपयोग लाखों लोग पीने के लिए करते हैं जबकि सब्जियों की सिंचाई में इन नदियों के पानी का इस्तेमाल किया जाता है।
गंगा किनारे बसे लोगों के मेडिकल चेकअप की भी मांग
4PM के संपादक संजय शर्मा ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान एनजीटी को प्रत्यावेदन देकर यूपी व बिहार में कोरोना से मृत लोगों के अंतिम संस्कार में 15 मार्च 2020 को केंद्र सरकार द्वारा जारी प्रोटोकॉल का पालन कराने की मांग की थी। साथ ही पर्यावरण को सहेजने व बचाने के भी सवाल उठाए थे। इसके अलावा गंगा के किनारे बसे लोगों का मेडिकल चेकअप कराने की भी मांग की थी।
सरकार को भेजी थी कॉपी
लखनऊ। 4PM के संपादक संजय शर्मा ने 24 मई 2021 को एनजीटी में सारे सबूतों के साथ याचिका दाखिल की थी। इसकी कॉपी बाकायदा यूपी के तत्कालिक मुख्य सचिव को भी दी गयी थी जिसमें कहा गया था कि कोरोना के चलते नदी में शवों को प्रवाहित करने और इनके तटों पर शवों को दफनाने से नदियों का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। साथ ही इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई थी। बावजूद इसके तब सरकार ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया था। हैरानी की बात यह है कि केंद्र सरकार तक ने संसद में बताया था कि उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि कितने शवों को गंगा में बहाया गया। हालांकि केंद्र ने कोविड-19 प्रोटोकॉल के साथ शवों का उचित तरीके से अंतिम संस्कार करने के लिए राज्यों को कहा था।