‘फ्री की रेवड़ी’ बांटने से चरमराई राज्यों की Economy, कर्ज तले डूब रहा देश 

हाल के वर्षों में चुनाव जीतने के लिए चुनावी रणनीतियों में एक नया और प्रभावी तरीक सामने आया है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः हाल के वर्षों में चुनाव जीतने के लिए चुनावी रणनीतियों में एक नया और प्रभावी तरीक सामने आया है… जिससे जनता को लालच देकर मुफ्त की योजनाओं की घोषणा कर चुनाव जीतने का है… बता दें कि सत्ता में काबिज होने के बाद सत्ताधीस जनता के लिए कोई भी काम नहीं करते हैं जिससे कि आने वाले चुनावों में अपने काम के मुद्दे को लेकर जनता के बीच में जाएं और जनता से समर्थन की मांग करें… जिसके चलते राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए गरीब…. और मध्यम वर्ग के मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए इस रणनीति का उपयोग करते हैं….. इस प्रकार की योजनाओं के जरिए सरकारें विभिन्न वर्गों को वित्तीय सहायता देने का वादा करती हैं….. जिससे वे चुनावी जीत की उम्मीद जताती हैं…. हालांकि, इस प्रकार की योजनाओं से चुनावी सफलता तो मिलती है…. लेकिन इनका राज्य की आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ता है…. वर्तमान में इस रणनीति का प्रभाव इतना अधिक बढ़ चुका है…. कि वित्त विभाग ने चिंता जताई है कि अगर राज्य सरकारें इस तरह की योजनाओं को और बढ़ाती हैं….. तो केंद्र को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है…

आपको बता दें कि हाल में ही हुए चार राज्यों के चुनावों में राजनीतिक पार्टिय़ों के द्वारा मध्यम वर्गीय लोगों को फ्री की रेवड़ी बांटने का काम किया है… जिसमें खासतौर पर महिलाएं शामिल है…. बता दें कि अधिकतर महिलाएं घर पर रहती है…. और उनको अपनी जरूरतों को पूरा करने में कई तरह की परेशानियां आती है… जिसको देखते हुए सरकार वोट लेने के लिए महिलाओं को टारगेट करती है… और उनको पंद्रह सौ से लेकर दो हजार, तीन हजार तक हर माह देने का वादा करता है… वहीं चुनाव होने से पहले से ही इन योजनाओं की किस्त जनता के खाते में जाना शुरू हो जाती है… जिससे महिलाएं बहुत खुश होती है…. और चुनवा के दौरान वो उसी रेवड़ी के मद्दे नजर अपना मतदान करती है… इससे सरकार तो बन जाती है… लेकिन इसका बहुत बुरा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्ता पर पड़ता है… और राज्य के ऊपर कर्जा बढ़ता ही जाता है… जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है…. बता दें कि राजकोशीय घाटा को बढाने के लिए महंगाई बढ़ती जा रही है… जिसका बुरा असर देखने को मिल रहा है….

बता दें कि चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल जनता से तमाम लुभावने  वादे करते हैं…. वहीं दो चार हजार रूपये के झांसे में आकर जनता नाकारा सरकार को चुन लेती है…. और फिर सभी मुद्दा सिर्फ मुद्दा बनकर ही रह जाता है…. आपको बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव इसका ताजा उदाहरण है….. चुनावों से पहले, भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों ने दो करोड़ पचास लाख महिलाओं को पंद्रह सौ रुपये मासिक सहायता देने की योजना शुरू की थी….. इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आकर्षित करना था….. इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी गठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की….. जो लोकसभा चुनाव में हुई हार के बाद एक बड़ी वापसी थी…. इसी तरह की योजनाओं का पालन करते हुए, दिल्ली सरकार ने भी महिलाओं के लिए मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना शुरू की है…. इसके तहत, अट्ठारह साल से ऊपर की महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये दिए जाएंगे…. इस योजना से दिल्ली की लगभग बीस लाख महिलाएं लाभान्वित होंगी….

हालांकि, इस योजना को लेकर दिल्ली सरकार के वित्त विभाग ने गंभीर चिंता व्यक्त की है…. योजना की अनुमानित लागत लगभग चार हजार पांच सौ साठ करोड़ रुपये प्रति वर्ष है….. वहीं इस खर्च से पहले ही ग्यारह हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी का बोझ उठाने वाली सरकार के बजट पर भारी दबाव पड़ेगा…. बता दें कि दिल्ली के वित्त विभाग का मानना है कि यदि यह योजना लागू होती है…. तो वित्त वर्ष दो हजार पच्चीस और छूब्बीस में दिल्ली सरकार का बजट घाटा बढ़ सकता है….. इससे राज्य की वित्तीय स्थिति कमजोर हो सकती है…. और केंद्रीय सरकार को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता पड़ सकती है…… दिल्ली को अन्य राज्यों की तरह बाजार से कर्ज लेने की अनुमति नहीं है…… और इसे महंगे नेशनल स्मॉल सेविंग फंड का सहारा लेना पड़ता है…. इसके अलावा, दिल्ली जल बोर्ड के लिए पच्चीस सौ करोड़ रुपये के अनुदान की आवश्यकता…. और MMMSY योजना से जुड़ी लागत राज्य पर सात हजार करोड़ करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालेगी….. इन सब खर्चों के कारण, सरकार के लिए संतुलित बजट बनाए रखना मुश्किल हो सकता है….

वहीं राज्यों की बढ़ रही वित्तीय समस्याओं को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की योजनाएं….. हालांकि राजनीतिक दृष्टि से लाभकारी हो सकती हैं….. लेकिन दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता के लिए गंभीर खतरे का कारण बन सकती हैं….. यदि राज्यों की वित्तीय स्थिति अधिक खराब होती है….. तो केन्द्रीय हस्तक्षेप अनिवार्य हो सकता है…. अंततः, मुफ्त योजनाएं चुनावी सफलता दिला सकती हैं….. लेकिन इनकी बढ़ती लागत राज्य के दीर्घकालिक आर्थिक स्वास्थ्य के लिए खतरे का कारण बन सकती है…. यह राज्य सरकारों के लिए एक बड़ा दांव हो सकता है….. जो राजनीतिक लाभ की कीमत पर आर्थिक स्थिरता को चुनौती दे सकता है….

आपको बता दें कि चालू वित्त वर्ष दो हजार चौबीस और पचीस की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में धीमी विकास दर के लिए एसबीआई मुख्य रूप से पूंजीगत खर्च में कमी को जिम्मेदार बता रहा है….. सोमवार को जारी एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक….. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में राज्य व केंद्र दोनों की तरफ से इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास पर होने वाले खर्च या पूंजीगत खर्च लक्ष्य के मुताबिक नहीं किया गया…. और इसका नतीजा विकास दर पर दिखा दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर सिर्फ पांच दशमलव चार फीसदी रही, जो गत सात तिमाही में सबसे कम है…. एसबीआई का मानना है कि राज्यों की वित्तीय स्थिति दबाव में होने की वजह से चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में भी राज्यों से पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं की जा सकती है…. इस वजह से चालू वित्त वर्ष की कुल विकास दर छः से छः दशमव पांच फीसदी के भीतर सिमट सकती है….. आरबीआई के साथ आर्थिक सर्वेक्षण में चालू वित्त वर्ष में विकास दर सात प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था….

वित्तीय जानकारों का कहना है कि कई राज्य महिलाओं को मुफ्त में नकद बांटने व अन्य प्रकार की रेवड़ी दे रहे हैं….. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में देश के नौ प्रमुख राज्य एक लाख करोड़ रुपए महिलाओं को मुफ्त में नकदी देंगे…. ऐसे में दस से अधिक राज्यों का चौरासी प्रतिशत से अधिक राजस्व पेंशन, सैलरी, सब्सिडी, ब्याज भुगतान जैसे मद में खर्च हो जाएगा….. ऐसे में राज्यों के लिए दूसरी छमाही में भी पूंजीगत खर्च को बढ़ाना आसान नहीं दिख रहा है….. तभी एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के सत्रह प्रमुख राज्यों में से सिर्फ पांच राज्य पहली छमाही में पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही की तुलना में पूंजीगत खर्च के मद में अधिक व्यय कर पाए…. वहीं पहली छमाही में सत्रह में से कोई भी राज्य पूंजीगत खर्च के अपने बजट अनुमान का पचास प्रतिशत खर्च नहीं कर सका….. यहां तक कि केंद्र सरकार भी पहली छमाही में पूंजीगत खर्च के बजट अनुमान का सिर्फ सैंतीस दशमल तीन प्रतिशत ही खर्च कर पाई….

बता दें कि चालू वित्त वर्ष में केंद्र सरकार ने पूंजीगत खर्च के मद में ग्यारह दशमव ग्यारह लाख करोड़ रुपए का बजट तय कर रखा है…. छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों का प्रदर्शन पूंजीगत खर्च के मामले में बेहतर नहीं है…. बता दें कि चुनाव जीतने के लिए मुफ्त योजनाओं का ऐलान राजनीतिक दलों की एक लोकप्रिय रणनीति बन गई है…. इन योजनाओं के जरिए गरीब और मध्यम वर्गीय वोटरों को आकर्षित करने की कोशिश की जाती है…. हालांकि, इस रणनीति से चुनावी सफलता मिलती है….. लेकिन राज्य की आर्थिक स्थिति पर इसका गहरा असर पड़ता है…. वहीं स्थिति ये आ गई है कि वित्त विभाग ने चिंता जताते हुए कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो केंद्र इस मामले में हस्तक्षेप कर सकता है…. वहीं वित्त विभाग का मानना है कि यदि इस योजना को लागू किया गया…. तो वित्त वर्ष दो हजार पच्चीस और छब्बीस में दिल्ली सरकार का बजट घाटा बढ़ सकता है…. केंद्र सरकार को भी हस्तक्षेप करना पड़ सकता है…. जिससे दिल्ली की वित्तीय स्वायत्तता पर असर पड़ेगा…. दिल्ली को अन्य राज्यों की तरह बाजार से कर्ज लेने की अनुमति नहीं है…. और उसे महंगा नेशनल स्मॉल सेविंग फंड का सहारा लेना पड़ता है….

वहीं चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल जनता को फ्री रेवड़ी का प्रलोभन देकर चुनाव आसानी से जीत जाते हैं लेकिन कोई भी राजनीतिक दल जनता की बुनियादी जरूरतों की बात नहीं करते हैं कोई भी राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में बेरोजगारी, महंगाई समेत समाज में व्याप्त तमाम तरह की जटिल समस्याओं को दूर करने की बात नहीं करता है…. देश के सत्तर फीसदी लोग बेरोजगार महज तीस फीसदी लोग ही रोजगार में हैं जिनसे पूरे देश की अर्थव्यवस्था चल रही है… सरकार नए रोजगार की बात नहीं करती है…. और जनता को लालच देकर सत्ता में काबिज रहना चाहती है…. और देश को कर्ज तले डुबोती चली जा रही है…. बेरोजगारी की दर ने आसमान छू लिया है…. लेकिन सरकार सत्ता के लिए फ्री की रेवड़ी बांटने का काम कर रही है…

 

 

 

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