केंद्र-राज्य की लड़ाई में पिस रहा आम आदमी
4पीएम की परिचर्चा में प्रबुद्घजनों ने किया मंथन जहां-जहां हुए चुनाव वहीं कम किए गए पेट्रोल-डीजल के दाम
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों के बीच केंद्र और राज्यों के बीच उठापटक जारी है। सवाल उठता हैं कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर केंद्र और राज्य की लड़ाई में आम आदमी क्यों पिसे? इस मुद्ïदे पर वरिष्ठï पत्रकार शीतल पी.सिंह, डॉ. राकेश पाठक, दिनेश के.वोहरा, बीजेपी प्रवक्ता अनिला सिंह, आप प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़, अर्थशास्त्री प्रो. मनीष कुमार और 4पीएम के संपादक संजय शर्मा ने एक लंबी परिचर्चा की।
प्रो. मनीष कुमार ने कहा, जो फायदा घटते हुई इंटरनेशनल क्रूड आयल की कीमतों का जनता को मिलना चाहिए वह कभी नहीं मिलता जबकि दाम बढऩे पर उसे जनता पर जरूर थोप दिया जाता है। पेट्रोलियम प्रोडक्ट को एक प्राइसिंग पॉलिसी के द्वारा तय किया जाता है। आज जो इंटरनेशनल मार्केट में हो रहा है, उसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार को लेनी पड़ेगी। राज्य सरकारों को भी अपने आर्थिक हालात सुधारने चाहिए।
दिनेश के बोहरा ने कहा, पेट्रोलियम पदार्थों को लेकर राज्यों और केंद्र के बीच जो विषय है वह नया या पुराना नहीं है। भारत की अर्थव्यवस्था रोबोस्ट नहीं है। लिमिटेड सोर्सज है, जिससे हम पैसा कमा सकते हैं। शीतल पी सिंह ने कहा, यह विपक्ष की नाकामयाबी है कि वह जनता के मुद्ïदे पर फेल है। जहां-जहां चुनाव थे, वहां दाम कम भी हुए जबकि भाजपा शासित राज्यों एमपी में 119 रुपए और बिहार में भी पेट्रोलियम पदार्थों के रेट थे। ये भी ज्यादा हैं। इसमें केंद्र की जिम्मेदारी पहले हैं मगर यहां चुनावी जिम्मेदारी ज्यादा दिखी। जब तक ये मामला चुनावी रहेगा तब तक जनता को इससे निजात नहीं मिलेगी। डॉ. राकेश पाठक ने पीएम पर व्यंग्य करते हुए कहा कि मैं मोदी सरकार से अनुरोध करता हूं कि विकास की रफ्तार को रोके नहीं जितना हो सके रेट बढ़ाए। विकास पागल हो गया है। आम आदमी को कोई तकलीफ नहीं है, जनता को महंगाई मंजूर है। प्रियंका कक्कड़ ने कहा मोदीजी आए मन की बात कह गए लेकिन मन की बात से बात नहीं बनेगी। वन नेशन वन टैक्स की बात थी तो जीएसटी में इसे शामिल करें। बुलडोजर चल रहे हैं तो इसे भी बुलडोज करें मोदीजी।
अनिला सिंह ने कहा कि 150 करोड़ की आबादी वाले देश को पीएम मोदी ही चला सकते हैं। टैक्स प्रोडेक्ट के हिसाब से लगता है। राज्य सरकारें इस मुद्ïदे पर जीएसटी में जाना ही नहीं चाहती।