पुरस्कार की राजनीति, नजर वोटों पर

मुलायम के पद्म पुरस्कार पर छिड़ी बहस

  • भाजपा और सपा के लिए महत्वपूर्ण है नेता जी
  • सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने पर हुई थी सियासत

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सरकारों द्वारा अपने चहेतों को पुरस्कारों से सम्मानित करना कोई नई बात नही है। पर जब सरकार से अलग विचारधारा वाले किसी व्यक्ति को पुरस्कृत किया जाता है तो वह चर्चा का विषय बन जाता है। ऐसी ही चर्चा आम से लेकर खास जन तक हो रही है वह है पद्म पुरस्कारों लेकर। ये चर्चा सिर्फ एक नाम को लेकर ज्यादा हो रही है वह नाम है दिग्ग्ज समाजवादी नेता दिवंगत मुलायम सिंह यादव जी का जिन्हे उनके चाहने वाले नेता जी के नाम से जानते है। पुरस्कारों पर चर्चा होना कोई नई बात नहीं होती है, पर जब ऐसे नाम ऐसी सरकार द्वारा घोषित किए जाते हो जो उस व्यक्ति का घोर विरोधी रहा हो तो ऐसी चर्चा स्वावभाविक है। ऐसे में सत्ता पक्ष की मंशा पर शक होना भी लाजिमी है कि कहीं इसका राजनीतिक लाभ उठाने की कवायद तो नहीं। सत्ता में अभी बैठे नेताओं की तो जैसै फितरत है हर वह काम जिससे उन्हें वोट मिले वो करने में वे गुरेज नहीं करते । खैर यह तो आने वाला समय बताएगा कि सत्ता पक्ष में बैठी भाजपा सरकार व उनके मुखिया इसको कैसे भुनाते हैं या राजनीतिक फायदा उठाते हैं। पर सरकार कि इस घोषणा से नेता जी के विचारों से जुड़े लोग असहज तो हो रहे है पर वे उनकों भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं।
विश्लेषक कहते हैं केंद्र सरकार की तरफ से की गई यह घोषणा उत्तर प्रदेश में भाजपा की पिछड़ों की लामबंदी और उनको और करीब लाने के मुहिम में मददगार साबित होगी। क्या लोकतंत्र की यही खूबी है कि भारतीय जनता पार्टी की उस केंद्र सरकार द्वारा पूर्व सपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जैसे नेता का नाम पद्म विभूषण के लिए चुना गया जिनकी विचारधारा भाजपा की सोच से एकदम विपरीत थी?
राम मंदिर मामले में भरतीय जनता पार्टी हमेशा मुलायम सिंह यादव पर आक्रामक रहती थी। कारसेवकों पर गोली चलाने के कारण मुलायम सिंह हमेशा बीजेपी के कट्टर राजनैतिक दुश्मन बने रहे। लेकिन इसका मुलायम सिंह यादव के व्यक्गित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, उनके सभी पार्टियों के नेताओं से अच्छे संबंध थे। अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी तक से वह अपने दिल की बात खुलकर कहते थे। इतने अच्छे संबंध तो उनके कांग्रेस की चेयरपर्सन सोनिया गांधी तक से नहीं रहे थे। मुलायम हमेशा मुसलमानों के प्रिय बने रहे। यहां तक की कई मुस्लिम नेताओं पर उनकी बिरादरी के लोग इतना भरोसा नहीं करते थे जितना मुलायम सिंह पर उनको भरोसा था। ऐसे नेता को जब मोदी सरकार में पद्म विभूषण से नवाजा जाता है तो सवाल तो उठेंगे ही।

भारत के नागरिक पुरस्कार

भारत रत्न : भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार हैं। इसे 1954 में स्थापित किया गया था। जाति, व्यवसाय, पद, लिंग या धर्म के भेद के बिना कोई भी व्यक्ति इस पुरस्कार के लिए पात्र है। यह मानव सेवा के किसी भी क्षेत्र में असाधारण सेवा या उच्चतम क्रम के प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार प्रदान करने पर, प्राप्तकर्ता को राष्टï्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक सनद (प्रमाणपत्र) और एक पदक मिलता है।
पद्म पुरस्कार : पद्म पुरस्कार वर्ष 1954 में स्थापित किए गए थे। 1977 से 1980 और 1993 से 1997 के दौरान संक्षिप्त व्यवधानों को छोडक़र, हर साल गणतंत्र दिवस पर इन पुरस्कारों की घोषणा की गई है। पुरस्कार तीन श्रेणियों में दिया जाता है, अर्थात: महत्व के घटते क्रम में पद्म विभूषण, पद्म भूषण व पद्म श्री
पद्म विभूषण : असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। पद्म विभूषण भारत में दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है।
पद्म भूषण : एक उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। पद्म भूषण भारत में तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है।
पद्म श्री: प्रतिष्ठित सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। पद्म श्री भारत का चौथा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है।

सचिन को भारत रत्न देने पर भी हुई थी बहस

अलग-अलग क्षेत्रों में, जैसे कि सेना, खेल, साहित्य वगैरह में बेहतरीन प्रदर्शन करने वालों को हर साल राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाते हैं। भारत का सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार भारत रत्न है। उसके बाद पदम विभूषण, पदम भूषण व पदम श्री आता है।
बड़े नागरिक सम्मान को लेकर हमेशा से राजनीतिक गलियारें में चर्चा आम होती रही। यूपीए सरकार के समय सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न को लेकर भी राजनैतिक प्रतिक्रियाएं आई थी। तब उस समय यह बहस छिड़ी थी कि सचिन की जगह हाकी के जादूगर के नाम से मशहूर मेजर ध्यान चंद को यह सम्मान मिलना चाहिए था पर थोड़े दिन बाते हुई फिर मामला शांत हो गया। हांलाकि सचिन की उपलब्धियों पर उन्हें यह पुरस्कार दिया गया उचित ही था। ये पुरस्कार उस प्रदेश की राजनीति के लिए अच्छे हथियार बनते हैं जिस राज्य से पुरस्कार पाने वाला संबंधित होता है। उस राज्य के राजनैतिक दल इसे अपने सम्मान से भी जोड़ लेते हैं।

पुरस्कार गलत नीतियों का विरोध करने का भी माध्यम

पुरस्कार को राजनीति का ही हथियार नहीं बनाया जाता है बल्कि सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने का सशक्त माध्यम भी है। ऐसा माना जाता है कि पुरस्कार पाने वाला तार्किक रुप से बुद्धिमान होते हैं, और जब वह किसी नीति का विरोध करते हैं तो सरकार उसका संज्ञान लेती है। सरकारों पर इसका दबाव पड़ता है वह मनमानी करने से डरती हैं। ऐसी ही विरोध देश में बढ़ रही असहिष्णुता के खिलाफ कुछ साहित्यकारों ने साहित्य अकादमी सम्मान को वापस करने की घोषणा करके की थी। सर्वप्रथम हिंदी लेखक उदय प्रकाश ने सम्मानित कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में पुरस्कार वापस किया। फिर सम्मान वापस करने वालों की झड़ी लग गई।

‘ राष्ट्रीय सम्मान पर राजनीति नहीं होनी चाहिए’

बुद्धिजीवियों का अपना तर्क है। वे कहते हैं पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री जैसे राष्ट्रीय सम्मान को राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए, लेकिन इस घोषणा के दूरगामी परिणाम से इंकार भी नहीं किया जा सकता। पिछड़ों की राजनीति के प्रमुख चेहरे रहे पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण सम्मान देने की घोषणा कर लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपने प्रबल प्रतिद्वेंदी समाजवादी पार्टी के प्रमुख और मुलायम के पुत्र अखिलेश यादव के लिए मुश्किल तो खड़ी कर ही दी है। फिलहाल समाजवादी के कई बड़े नेता और मुलायम की सांसद बहू डिंपल यादव ने अपने ससुर को दिए गए पद्म विभूषण पुरस्कार को नाकाफी बताते हुए नेताजी को भारत रत्न देने की मांग शुरू कर दी है। उधर इटावा में सपा नेता शिवपाल सिंह यादव ने भी ऐसी ही मांग की है। राजनैतिक विश्लेषकों का कहना कि मोदी सरकार का मुलायम सिंह जी को पदम विभूषण देना उचित है उन्होंने सार्वजनिक जीवन में रहते हुए कई सामाजिक कार्य किए जिनसे समाज व लोगों का भला हुआ। समाजवादी पार्टी का कोई भी नेता चाहते हुए भी मुलायम को पद्म विभूषण से नवाजे जाने का विरोध नहीं कर सकता है। केंद्र सरकार की तरफ से की गई यह घोषणा उत्तर प्रदेश में भाजपा की पिछड़ों की लामबंदी और उनको और करीब लाने के मुहिम में मददगार साबित होगी। मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश में मंडल और कमंडल की राजनीति के बीच न सिर्फ कांग्रेस का यूपी से बोरिया बिस्तर समेटने में प्रमुख किरदार रहे, बल्कि अयोध्या आंदोलन में उनकी भूमिका ने हिंदुत्व की विचारधारा से जन्मी भाजपा को भी अपने राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने में मदद की थी। धुर विरोधी होने के बावजूद कई मौकों पर मुलायम और भाजपा के बीच काफी नजदीकी रिश्ते भी देखने को मिले।
इन रिश्तों ने न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश की राजनीति में भी काफी उथल-पुथल की। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी की विदेशी नागरिकता का मुद्दा उठाकर उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का विरोध हो या लखनऊ का साड़ी कांड, मुलायम ने बतौर मुख्यमंत्री पूरा मामला शांत कराकर लोकसभा चुनाव में पर्दे के पीछे से अटल बिहारी वाजपेयी के मददगार की भूमिका निभाई थी। वैचारिक व राजनीतिक दोनों ही स्तर पर विरोधी होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी कई मौकों पर मुलायम की नजदीकी खबरों की सुर्खियां बनती रहीं। 2017 में योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में भरे मंच पर सबके बीच नरेंद्र मोदी के कान के पास जाकर मुलायम के कुछ फुसफुसाने की घटना को कौन भूल सकता है?

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