Uttarakhand News : जोशीमठ में भू-धंसाव की स्थिति चिंताजनक, CBRI सर्वे में 20% में एक प्रतिशत ‘तोड़े जाने योग्य’
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ शहर में भू-धंसाव की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। अब तक कई परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जा चुका है और प्रशासन सतर्क निगरानी बनाए हुए है।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ शहर में भू-धंसाव की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। अब तक कई परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जा चुका है और प्रशासन सतर्क निगरानी बनाए हुए है। इस संकट के बीच, रुड़की स्थित सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) की ओर से किए गए ताजा सर्वेक्षण ने स्थिति की गंभीरता को और स्पष्ट किया है। CBRI इंजीनियरों ने जोशीमठ की 2,364 इमारतों का सर्वेक्षण किया, जिसमें चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं।
गढ़वाल हिमालय में अलकनंदा नदी के पास स्थित जोशीमठ शहर, जो बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब, औली और फूलों की घाटी जैसे प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थलों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है, आज भू-धंसाव की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। इस संकट के बीच, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI), रुड़की द्वारा किए गए सर्वेक्षण में जोशीमठ की इमारतों को लेकर चिंताजनक कमियां सामने आई हैं। CBRI की टीम ने हाल ही में जोशीमठ की 2,364 इमारतों का सर्वेक्षण किया, जिसमें पाया गया कि 99% इमारतें ‘गैर-इंजीनियर्ड’ हैं, यानी इनका निर्माण किसी तकनीकी दिशा-निर्देश या इंजीनियरिंग मानकों के अनुरूप नहीं किया गया। अधिकांश इमारतों ने भारतीय राष्ट्रीय भवन संहिता (National बिल्डिंग Code of India, 2016) का पालन नहीं किया है।
भू धंसाव को लेकर भूवैज्ञानिक ने क्या बोला?
CBRI ने जोशीमठ की इमारतों की एक “भवन संवेदनशीलता मानचित्र (building vulnerability map) तैयार किया है, जिसे प्रशासनिक और नीतिगत निर्णयों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. टीम का कहना है कि इस नक्शे को भूवैज्ञानिक और जल भूवैज्ञानिक मानचित्रों के साथ जोड़ने से एक समग्र जोखिम मानचित्र तैयार किया जा सकता है, जो पूरे क्षेत्र की व्यापक सुरक्षा योजना के लिए आवश्यक है.
जोशीमठ में जमीन धंसने को लेकर चिंताएं कोई नई नहीं हैं. 1976 में एक वैज्ञानिक समिति ने इस क्षेत्र को पुराने भूस्खलन क्षेत्र में स्थित बताया था और भारी निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी. 2010 में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के भूवैज्ञानिक पियूष रौतेला ने चेतावनी दी थी कि जोशीमठ में निरंतर जमीन धंसने के संकेत मिल रहे हैं, और अगर चट्टानों के नीचे से अचानक पानी निकाला गया, तो स्थिति और बिगड़ सकती है.
जोशीमठ के पुनर्विकास के लिए 1700 करोड़ रुपये किए मंजूर
जनवरी 2023 की दरारों के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने विशेषज्ञों की बैठक बुलाई और जोशीमठ के लिए एक जोखिम-संवेदनशील योजना बनाने की आवश्यकता जताई. जोशी मठ को लेकर राज्य सरकार भी चिंतित है. लगातार जोशीमठ में लोगों के विस्थापन और उनकी सुरक्षा को लेकर काम किया जा रहा है. खुद सीएम धामी इस विषय को गंभीरता से देख रहे हैं. चारधाम यात्रा मार्ग होने के चलते भी यह विषय काफी गंभीर है. इसलिए इसको और भी संवेदनशील दृष्टि देखा जा रहा है.
आपको बता दें,कि वहीं केंद्र सरकार ने जोशीमठ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करते हुए पुनर्विकास के लिए 1700 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं. जिससे जोशीमठ क्षेत्र में नए घर, सड़कें, जल निकासी और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण होगा. सरकार का कहना है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किए जा रहे निर्माण कार्य जोशीमठ को सुरक्षित और स्थिर भविष्य की ओर ले जाएंगे. यह परियोजना आपदा के बाद पुनर्निर्माण का एक आदर्श मॉडल बन सकती है.