यात्रा से आमजन को जोड़ने का पुराना है चलन
राजनैतिक दलों का वोट हासिल करने का उम्दा हथियार
- महात्मा गांधी, चंद्रशेखर , अडवानी भी निकाल चुके हैं ऐसी यात्राएं
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में यात्रा करके लोगों के बीच में अपनी बात पहुंचाने का चलन बहुत पुराना है। देश की आजादी से पहले महात्मा गांधी ने इस तरह की यात्रा से पूरे देश को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके द्वारा की गई यात्रा में दांडी मार्च, अंग्रेजों भारत छोड़ो यात्रा जैसे महत्वपूर्ण यात्राएं हैं। आजादी के बाद सरकार ने आम जनता को अपनी योजनाओं से अवगत कराने के लिए भी कई यात्राएं निकाली। इन यात्राओं का मकसद जन जागरूकता भी लाना होता है। हालांकि भारत में इस तरह की यात्रा राजनीति चमकाने के लिए ज्यादा उपयोग किया जाता हैं। देश का प्रत्येक राजनीतिकदल इस तरह की यात्रा निकाल कर अपने को आमजन से जोडक़र वोटों को अपने पक्ष करने की जुगत में लगा रहता है।
राहुल गांधी की अगुआई वाली भारत जोड़ो यात्रा 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होकर 145 दिन के बाद सोमवार को समाप्त हो गई। राहुल ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक यात्रा की। उन्होंने अपनी यात्रा से भाजपा पर कई बड़े हमले किए। राहुल ने भाजपा पर देश को बांटने और हिंसा फैलाने का भी आरोप लगाया। इस बीच कई राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि राहुल की इस यात्रा से उन्हें चुनावी फायदा मिल सकता है। राहुल से पहले हाल के दशकों में भारत में कई राजनीतिक नेताओं द्वारा पदयात्राएं की गई हैं।
1985 में कांग्रेस संदेश यात्रा
1985 में कांग्रेस संदेश यात्रा की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी) के पूर्ण सत्र में की थी। प्रदेश कांग्रेस कमेटियों (पीसीसी) और कांग्रेस नेताओं ने मुंबई, कश्मीर, कन्याकुमारी और पूर्वोत्तर से एक साथ चार यात्राओं के रूप में यात्रा की। यात्रा तीन महीने से अधिक समय के बाद दिल्ली के रामलीला मैदान में संपन्न हुई।
1990 में लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में रथ यात्रा
अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन को गति देने के लिए रथ यात्रा निकाली गई। सितंबर 1990 में शुरू हुई यात्रा ने 10,000 किमी की दूरी तय की और 30 अक्टूबर को अयोध्या में इसे समाप्त होना था। इसे उत्तर बिहार के समस्तीपुर में रोका गया और आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रथ यात्रा ने बीजेपी की चुनावी और वैचारिक पहुंच को बढ़ा दिया। जैसे-जैसे मंदिर की मांग जोर पकड़ती गई, भाजपा को भी चुनावों में फायदा होता गया।
1983 में चंद्रशेखर की भारत यात्रा
लगभग चार दशक पहले, पूर्व प्रधानमंत्री और तत्कालीन जनता पार्टी के नेता चंद्रशेखर ने भी कन्याकुमारी से एक पदयात्रा शुरू की थी। यहां से कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा भी पिछले साल 8 सितंबर को शुरू हुई थी। 6 जनवरी 1983 को शुरू होने के छह महीने बाद उस समय चंद्रशेखर को मैराथन मैन जैसा उपनाम मिला। अपने मार्च के दौरान लोगों से जुडऩे के लिए गांव-गांव से गुजरते हुए उनका कद और यात्रा के प्रति आकर्षण बढ़ता गया।हालांकि, इंदिरा गांधी की हत्या जैसी घटना ने 1984 के चुनावों में इसके प्रभाव को कम कर दिया।
1990 में कांग्रेस की सद्भावना यात्रा
इसकी शुरुआत राजीव गांधी ने 19 अक्टूबर, 1990 को की थी। दिलचस्प बात यह है कि 1 नवंबर को राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान प्रतिष्ठित चारमीनार में उसी स्थान पर तिरंगा फहराया था, जहां से राजीव गांधी ने सद्भावना यात्रा की शुरुआत की थी।
1991 में भाजपा की एकता यात्रा
इस यात्रा का नेतृत्व तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने किया था। राष्ट्रीय एकता के लिए भाजपा के समर्थन और अलगाववादी आंदोलनों के विरोध को उजागर करने की मांग की थी। यह दिसंबर में तमिलनाडु के कन्याकुमारी में शुरू हुई थी और इसने 14 राज्यों को कवर किया। आडवाणी की रथ यात्रा के बाद इसने भाजपा को चुनावों में जबरदस्त फायदा दिया।