मानसून सत्र: संसद चल नहीं रहा… लेकिन मिनटों में हो रहे विधेयक पास
नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र की शुरूआत के बाद यह तीसरा हफ्ता है जब संसद नहीं चल रहा है। पेगासस मुद्दे को लेकर विपक्ष अपने कड़े तेवर बनाए हुए है जबकि सरकार अपने रुख पर अड़ी हुई है। लगातार विपक्ष के हंगामे के कारण सदन के संचालन में बाधा पहुंच रही है, लेकिन इस बीच विपक्ष के विरोध की परवाह किए बिना सरकार मिनटों में फटाफट कई अहम विधेयक पारित करा रही है। संसद का सत्र सुचारु रुप से नहीं चलने से विधायी कार्यों का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। दूसरे दलों की राय को अहमियत दिए बिना और चर्चा कराए बिना सरकार बिना बहस के कई अहम विधेयक मिनटों में पास करा रही है। ऐसा लग रहा है मानो विधेयक पास कराने की महज औपचारिकता पूरी की जा रही है। जबकि संसद को एक मिनट चलाने में करीब ढ़ाई लाख रुपये खर्च होते हैं और इस हिसाब से जनता के करोड़ों रूपये मानसून की बारिश की तरह बह रहे हैं।
फैक्टरिंग रेगुलेशन (अमेंडमेंट) विधेयक 2021
26 जुलाई को लोकसभा से 13 मिनट में पारित, इसमें बिल पेश करने वाला समय भी शामिल।
राज्यसभा में यह बिल 14 मिनट में पारित, केवल पांच सांसदों ने बहस में हिस्सा लिया।
द नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी इंटर्नप्नोयरशिप एंड मैनेजमेंट बिल।
26 जुलाई को लोकसभा से छह मिनट में पारित
द मरीन एड्स टू नैविगेशन बिल 2021।
27 जुलाई को राज्यसभा से 40 मिनट में पारित
जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटक्शन ऑफ चिल्ड्रन) अमेंडमेंट बिल, 2021।
28 जुलाई को विपक्ष के शोर-शराबे के बीच राज्यसभा से 18 मिनट में पारित
द इन्सॉल्वेंसी एंड बैकरप्सी कोड (अमेंडमेंड) बिल 2021।
28 जुलाई को पांच मिनट में लोकसभा से पारित ।
इनलैंड वेसल्स बिल 2021।
29 जुलाई को छह मिनट में लोकसभा से और 33 मिनट में दो अगस्त को राज्यसभा से पारित करा लिया गया।
द एयरपोर्ट इकोनॉमिक्स रेग्यूलैरिटी ऑथोरिटी (अमेंडमेंट) बिल 2021।
29 जुलाई को 14 मिनट में लोकसभा से पारित
द कोकोनट डेवलपमेंट बोर्ड (अमेंडमेंट) बिल 2021।
29 जुलाई को राज्यसभा से पांच मिनट में पारित ।
द जनरल इंश्योरेंस बिजनेस अमेंडमेंट बिल,2021।
दो अगस्त को आठ मिनट के भीतर लोकसभा से पारित ।
फटाफट विधेयक पारित होने से आम आदमी का क्या नुकसान
संसद में किसी विधेयक पर कम चर्चा होने का मतलब है संसद में लोकतंत्र का नहीं होना। बहस में विपक्ष के हिस्सा नहीं लेने का मतलब है दूसरे पक्ष का दृष्टिकोण शामिल नहीं होना। विधेयक एक बार पारित हो गया और कानून की शक्ल में बदल गया तो इसमें बदलाव लाने में फिर लंबा वक्त लग जाता है। सांविधानिक दृष्टि से देखा जाए तो इसका असर करोड़ों भारतीयों के भविष्य पर पड़ेगा।