ओलंपिक में चानू ने रचा इतिहास, भारत को दिलाया पहला पदक

  • 49 किग्रा में रजत पदक हासिल किया
  • वेटलिफ्टिंग में रजत पदक जीत खत्म किया 21 साल का सूखा, पीएम ने दी बधाई
  • वर्ष 2000 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मलेश्वरी ने जीता था कांस्य पदक

4पीएम न्यूज नेटवर्क. नई दिल्ली। टोक्यो ओलंपिक में भारत की वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने इतिहास रच दिया है। उन्होंने 49 किग्रा में रजत पदक हासिल किया है। ये दूसरी बार है जब भारत ने ओलंपिक के वेटलिफ्टिंग में मेडल जीता है। इससे पहले वर्ष 2000 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था। चानू ने क्लीन एवं जर्क में 115 किग्रा और स्नैच में 87 किग्रा यानी कुल 202 किग्रा वजन उठाकर रजत पदक अपने नाम किया है। यह भी पहली बार हुआ है, जब भारत ने ओलंपिक के पहले दिन पदक जीता। मीराबाई वेटलिफ्टिंग में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने चानू को बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट किया कि भारत मीराबाई चानू के शानदार प्रदर्शन से उत्साहित है। रजत पदक जीतने के लिए उन्हें बधाई। मीराबाई के नाम महिला 49 किग्रा वर्ग में क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकॉर्ड भी है। उन्होंने एशियाई चैम्पियनशिप में 119 किग्रा का वजन उठाया था। वहीं टोक्यो ओलंपिक में चीन की होऊ झिऊई ने स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इंडोनेशिया की ऐसाह विंडी कांटिका ने कांस्य पदक हासिल किया।

 

फिर सियासत में लौटी सोशल इंजीनियरिंगब्राह्मण समाज पर मचा घमासान

  • विधान सभा चुनाव से पहले बसपा ने दलित-ब्राह्मïण गठजोड़ पर किया फोकस
  • प्रबुद्ध सम्मेलन के जरिए ब्राह्मïणों को अपने पाले में करने की जुगत में बसपा
  • नाराज ब्राह्मïणों को लेकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के माथे पर चिंता की लकीरें

4पीएम न्यूज नेटवर्क. लखनऊ। विधान सभा चुनाव के पहले प्रदेश की सियासत में एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग लौटती दिख रही है। बसपा 2007 में मिली जीत के अपने फॉर्मूले को 2022 में एक बार फिर आजमाने की तैयारी कर रही है। वह दलित और ब्राह्मïण गठजोड़ के जरिए अपनी सियासी नैया पार लगाने की जुगत में है। बसपा के इस दांव से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई हैं। भाजपा को पता है कि यदि नाराज ब्राह्मïणों ने पार्टी से किनारा कर लिया तो उसके लिए मुश्किल हो जाएगी। लिहाजा भाजपा नेताओं ने बसपा के प्रबुद्ध सम्मेलन को लेकर हमले शुरू कर दिए हैं। वहीं अन्य पार्टियां भी भाजपा से नाराज ब्राह्मïणों को अपने पाले में करने में जुटी हैं। बसपा ने अयोध्या से अपने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को जमीन पर उतारने की कवायद शुरू कर दी है। मंच से बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने भाजपा पर राम मंदिर नहीं बनाने का आरोप लगाया। सतीश चंद्र ने कहा कि प्रदेश और केंद्र में भाजपा की सरकार थी, लेकिन राम मंदिर के लिए कुछ नहीं किया गया। अब जो कुछ भी हो रहा है, वह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से हो रहा। दरअसल, प्रदेश से लगातार सिमट रही बसपा एक बार फिर अपने पुराने फार्मूले को आजमाने जा रही है। 2007 में दलित-ब्राह्मïण गठजोड़ के कारण बसपा को यूपी चुनाव में जीत मिली थी। तब भी इस सोशल इंजीनियरिंग के कर्ताधर्ता बसपा प्रमुख मायावती के विश्वासपात्र सतीश चंद्र मिश्रा ही थे। इस बार भी इसको सफल बनाने की जिम्मेदारी सतीश चंद्र मिश्रा के कंधों पर है। ब्राह्मïणों को अपने पाले में करने के लिए बसपा अयोध्या जैसी गोष्ठियों का आयोजन प्रदेश के सभी जिलों में करेगी। साल 2007 में बसपा ने 86 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मïण उम्मीदवार उतारे थे और 41 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई थी। तब बसपा ने 403 में से 206 सीटें जीतकर पूर्व बहुमत की सरकार बनाई और मायावती मुख्यमंत्री बनीं थीं। बसपा को उम्मीद है कि भाजपा सरकार की नीतियों से नाराज ब्राह्मïण यदि उसके पाले में आ गए तो उसे सरकार बनाने में सफलता मिल जाएगी। वहीं 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने सवर्णों के साथ गैर जाटव दलित और गैर यादव ओबीसी बैंक को साधकर सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला ईजाद किया है। इसके कारण ही भाजपा ने 325 सीटें जीतकर यूपी में प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई। इस बार सबसे ज्यादा 46 ब्राह्मण विधायक चुने गए थे। फिलहाल भाजपा सवर्णों को अपना कोर वोटर मानते हुए दलितों को रिझाने के लिए आंबेडकर स्मारक बनवा रही है। इसके अलावा वह बसपा के नए दांव से परेशान भी है।

ब्राह्मïण क्यों हैं अहम

चुनाव में ब्राह्मïण वोटर निर्णायक भूमिका में है। यहां ब्राह्मïणों की आबादी 12 से 13 फीसदी के बीच है। कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां ब्राह्मïणों की आबादी 20 प्रतिशत के आसपास है। यहां ब्राह्मïण मतदाताओं का रुझान उम्मीदवार की जीत और हार तय करता है। बसपा की नजर ऐसे ही ब्राह्मïण बाहुल्य विधानसभा सीटों पर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, मेरठ के अलावा ज्यादातर ऐसे जिले पूर्वांचल और लखनऊ के आस-पास के हैं, जहां ब्राह्मïण मतदाता उम्मीदवार की हार और जीत तय करने की स्थिति में हैं।

प्रदेश में 13 फीसदी ब्राह्मïण हैं और सभी हाशिये पर हैं। बसपा ब्राह्मïणों को सम्मान दिलाएगी और इसके लिए ब्राह्मïणों को एकजुट होना पड़ेगा। 13 फीसदी ब्राह्मïण और 23 फीसदी दलित अगर एक हो गया तो 2022 में बसपा की सरकार बनने से कोई रोक नहीं पाएगा।

सतीश चंद्र मिश्रा, राष्टï्रीय महासचिव, बसपा

बसपा को यह बताना होगा कि उसने भगवान राम के बारे में पहले क्यों नहीं सोचा और इतने दिनों तक रामलला टेंट में कैसे रहे जबकि सूबे में बसपा की भी सरकार रही है। बसपा पहले यह तय करे कि वह दलितों के साथ है या ब्राह्मïणों के साथ है। उसे प्रदेश की जनता को बताना होगा क्या बसपा ने दलितों का साथ छोड़ दिया है।

सिद्धार्थनाथ सिंह, कैबिनेट मंत्री, यूपी

ब्राह्मïण बुद्घिजीवी कौम है। वह केवल समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा है। योगी सरकार में ब्राह्मïïण ठगा गया, मारा गया। ब्राह्मïणों के फर्जी एनकाउंटर तक किए गए। खुशी दुबे अब तक जेल में है। ब्राह्मïण समाज अब तक ये भूला नहीं है। श्रीकृष्ण व भगवान परशुराम के वंशज एक साथ सपा के साथ आ गए हैं। इसी बौखलाहट में बसपा और भाजपा ढोंग रच रहे हैं पर उन्हें फायदा नहीं मिलने वाला है।

पवन पांडेय, पूर्व विधायक, सपा

भाजपा के शासन में ब्राह्मïण लगातार अपमानित होते रहे हैं। रायबरेली और प्रतापगढ़ में जिस तरह ब्राह्मïणों का उत्पीड़न किया गया, वह किसी से छिपा नहीं है। ब्राह्मïण यूपी सरकार से बहुत दुखी हैं। वे विधान सभा चुनाव में भाजपा को सबक सिखाएंगे।

अनुपम मिश्रा, राष्टï्रीय प्रवक्ता, आरएलडी

कांग्रेस ने ब्राह्मïण समाज को हमेशा सम्मान दिया। कई मुख्यमंत्री दिए। भाजपा सरकार में ब्राह्मïणों का उत्पीड़न जारी है। ब्राह्मïण समाज कांग्रेस के साथ है। भाजपा का ब्राह्मïण के नाम पर हिन्दुत्व प्रेम या बसपा का ब्राह्मïण सम्मेलन चुनावी हथियार है। इन दलों को इसका फायदा नहीं मिलेगा। 2022 के चुनाव में ब्राह्मïण समाज कांग्रेस को भरपूर समर्थन देगा।

प्रमोद तिवारी, वरिष्ठï कांग्रेस नेता

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